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May 10, 2024

बांग्ला नाट्य साहित्य एवं रंगमंच का इतिहास: समीक्षक प्रो.रजनीकांत शाह

बांग्ला नाट्य साहित्य एवम्‌ रंगमंच: एक अद्भुत और ज्ञानवर्धक अंतरयात्रा अध्येता: रजनीकान्त एस.शाह

नाटक और रंगमंच के प्रति मनुष्य का बहुत पहले से सहज आकषैण रहा है। यह विधा मनोरंजन के उपरांत मूल्यवान मानवजीवन जीने के लिए कभी माँ बनकर तो कभी पिता बनकर तो कभी गुरु बनकर सही दिशा दिखाती है। हँसते हँसते तो, कभी रुलाते हुए जीवन के प्रति सही बोध कराती है। इसीलिए तो इसे पाँचवां वेद’ कहा गया है। ऐसी साहित्यिक विधा के विषय में ज्यादा जानकारी हासिल करने की जिज्ञासा का मानव मन में होना बहुत स्वाभाविक ही है। जिस प्रदेश विशेष से यह विधा जुड़ी हुई है वह गुजरात से लंबी भौगोलिक दूरी बनाए हुए है। यह विधा अपने डैने फैलाए न जाने कितने बरसों से अनथक उड़ान भरे हुए है।

डॉक्टर रानू मुखर्जी लेखिका (बांग्ला नाट्य साहित्य एवं रंगमंच के इतिहास) और प्रोफेसर रजनीकांत शाह

विदुषी डॉ. रानू जी ने कठोर एवं दीर्घकालीन अध्यवसाय करके. बांगला नाटय साहित्य एवं रंगमंच का इतिहास ‘ नाट्यप्रेमी एवं रंगमंच को समर्पित पाठकों को उपलब्ध कराया है। रानू जी आपकी ज्ञाननिष्ठा की अनुमोदना के लिए शब्द कम पड़ते हैं। यह एक शोधकार्य ही है , जो भविष्य के जिज्ञासुओं तथा नाटक एवं रंगमंच के विद्यार्थियों के लिए जिसका तेज कभी भी धुंधला पड़नेवाला नहीं है. ऐसा नित्य तेजोमय आकाशदीप है। आपको नाटक के संस्कार एवं रुचि आपके पिताजी की ओर से
विरासत के रूप में प्राप्त हुई है। आपने बाल्यकाल से ही रवीन्द्रनाथ ठाकुर , गिरीश कर्नार्ड , मनोज बसु जी आदि के नाटक देखे और पढे हैं। इस नाट्य दर्शन एवम्‌ अध्ययन ने नाटक के
प्रति आपकी रुचि , प्रीति और उत्कंठा को बढ़ाया है।

आपने. बांग्ला नाटय साहित्य के प्राप्त महासागर सद्श ख़जाने का विशद अवगाहन करके अनूठे मोती चुनकर हम पाठकों को उपलब्ध कराया है- बांग्ला नाट्य साहित्य के अध्येताओं को आपका यह अनमोल प्रदान है। आपकी अध्ययन निष्ठा इस बात का भी प्रमाण है कि आप रहती हैं वडोदरा- गुजरात में और आपकी सहायक सामग्री सुदूर पश्चिम बंगाल में , फ़िर भी आपने अपना अध्ययनयज्ञ जारी रखा और अदभुत ज्ञानकोश देकर गागर में सागर भरने का बहुत ही उत्कृष्ट कार्य किया है।

नाट्यसम्राट शिशिरक॒मार भादुडी के नाटक के प्रति समर्पण भाव के द्वारा बंगालियों के नाटक विधा के प्रति पागलपन की हद तक के लगाव की प्रतीति आपने आपकी नाटक के प्रति जो लगन है उसका परिचय दिया है। अभिनय और रंगमंच दोनों परस्पर अभिन्‍न रूप से जुड़े हुए हैं। इन क्षेत्रों में लेखक और रंगकर्मियों ने जमकर अपनी प्रतिभा के दर्शन कराये गए हैं। आपने अपने इस अध्ययन को पाँच अध्यायों में विभाजित करके प्रत्येक अध्याय के साथ न्याय किया है।

प्रथम प्रकरण विषय प्रवेश में आपने अनुवाद युग और हरचन्द्र घोष,काली प्रसन्‍न सिंह, रामनारायण आदि का अध्ययन करके बांग्ला नाटक पर संस्कृत नाटक, शेक्सपियर आदि के प्रभाव की चचा करते हुए किर्ति विल्लास और भद्रार्जुन के मौलिक नाटकों के बारे में महत्‌ जानकारी प्रदान की है।

दूसरे अध्याय: बांग्ला नाटक के आदि पर्व के बारे में विचार करते हुए सामाजिक नाटक की यात्रा करते हुए रामनारायण तकैरत्न, माईकेल मधुसूदन दत्त, दीनबंधु मित्र के प्रदान से गुजरते हुए ओपेरा या गीताभिनय के क्षेत्र का अध्ययन करने केलिए मनमोहन बसु, मिर मशरफ हुसेन के प्रदान का अध्ययन प्रस्तुत किया है।

तीसरे अध्याय: बांग्ला नाटक का मध्ययुग में देशभक्ति तथा रोमांटिक नाटक के क्षेत्र को अमीर बनानेवाले ज्योतीन्द्रनाथ ठाकुर , किरणचंद्र बंदौपाध्याय , हरलाल राय , उपेन्द्रनाथ दास , उमेशचन्द्र गुप्त तथा प्रमथनाथ मित्र के प्रदान का मूल्यांकन प्रस्तुत किया है।

चौथे अध्याय: गिरिशचन्द्र घोष के अंतगत गिरिश युग. , गिरिशचन्द्र घोष, अमृतलाल बसु, द्विजेन्द्रलाल राय , क्षिरोदप्रसाद विद्याविनोद और विश्वकवि रवीन्द्रनाथ ठाकुर के ऐतिहासिक प्रदान का दस्तावेज़ आपने प्रस्तुत किया है।

पांचवे अध्याय में आपने बंगाल की धरती के नाट्यकला एवम्न रंगमंच को समर्पित एवम्‌ प्रसिद्ध नाट्यव्यक्तित्वों का विस्तृत परिचय देकर पाठकों का नाट्यविधा एवम्‌ रंगकर्मियों से अंतरंग परिचय कराया है।

कुल मिलाकर आपका यह अवगाहन आपकी ज़ाननिष्ठा के प्रति ईमानदारी का प्रतिदान है। मुझे प्रसन्‍नता तो इस बात की है कि हमें घर बैठे इतना बड़ा ज्ञानकोश प्राप्त हुआ है। आपकी इस ज्ञान साधना के लिए आपको बहुत बहुत बधाई। आपके कर्मठ व्यक्तित्व से हमेशा यह उम्मीद बनी रहेगी कि आप ऐसी ही साधना करती रहें और साहित्य के अनेक अगोचर पक्षों को उद्घाटित करके आपके ज्ञानकोश से ज्ञानतृषितों की ज्ञानतृषा को तृप्त करैं। एकबार नहीं बारबार इस ग्रंथ के अध्ययन से नव नवनीत पाठकों को मिलता रहेगा।

यह अध्ययन ग्रंथ ऐसे शोध छात्रों एवम्‌ अभ्यासियों के लिए दिशादर्शक सिद्ध होगा जो नाटक के क्षेत्र में, नाटककारों के या रंगकर्मियों के साहित्य का स्वतंत्र या दो भाषाओं के नाट्यसाहित्य, नाट्यकला और रंगकर्मियों का तुलनात्मक अध्ययन करना चाहेंगे। इस प्रकार इस अध्ययन ग्रंथ ने अनुसंधान की अनदेखी दिशा के दवार खोल दिये हैं।

इस श्रद्धा के साथ ज्ञान के उज्ज्वल पथ पर आप न केवल आगे बढ़ती रहें बल्कि साहित्य के क्षेत्र की अज्ञात क्षितिजों को आप ज्ञान के प्रकाश से आलोकित करती रहें यहीं शुभकामना।