Netflix पर प्रसारित हो रही हीरामंडी एक ऐसी सीरीज है, जिसमें तत्कालीन भारतीय संस्कृति में तवायफों के रोल को दर्शाया गया है। “ये बदनाम गलियां है यहां, दौलत के बदले मिलती है मुहब्बत…”
तवायफों के आलीशान कोठों में अमीर, उमराव और शहर के रईस,ओहदेदार लोग आते थे और इनके नृत्य संगीत पर आफरीन होते थे। इन तवायफों ने जहां इन कोठों पर अपनी कला बेची, वहीं इनके आलीशान रहन सहन, इनकी कामसूत्र की अदाओं से लुभाने की रीत के लोग दीवाने थे। नवाबों, अमीरों के बेटों को यहां शादी से पहले सेक्स की पूरी जानकारी के लिए भेजा जाता था। ताकि वे अपना दांपत्य जीवन सुखमय बना सके और पत्नि को खुश कर सके। नवाबों, उमरावो, रईसों के यहां शादियों और जलसे के वक्त इन तवायफों को नाच गान के लिए बुलाया जाता था।
संजय लीला भंसाली की इस सीरीज “हीरामंडी” में जहां इन बातो का ज़िक्र है। वहीं इनके आजादी के संघर्ष के दौरान के विशेष योगदान को भी दर्शाया गया है। इतिहास में गुमनाम रही अभिनेत्री नरगिस की मां जद्दन बाई, सिद्धेश्वरी देवी,रसूलन बाई, अजीजुन बाई, होससैनी, गौहर जान बाई जैसी कई नामी अनामी तवायफों ने आज़ादी के लिए अपना योगदान दिया।
यहां यह उल्लेखनीय है कि इस फिल्म में 650 साल पुराने सूफी गीत का उपयोग किया गया है। वह गीत है, अमीर खुसरो का लिखा गीत….
“सकल बन फूल रही सरसों,बन बन फूल रही सरसों,अंबुवा फूटे टेसू फूटे, कायल बोले डार डार….।” छाप तिलक सब छीनी री, मोसे नैना मिलाय के…जैसे सूफी गीत उन्होंने हजरत निजामुद्दीन औलिया के लिए लिखे थे। उन्होंने फारसी,अवधि में कई सूफी गीत लिखे हैं ,जो आज भी उसी शिद्दत से गाए जाते है।
यूं,संजय लीला भंसाली की हीरामंडी सीरीज अपने आप में उस दौर के लखनऊ ,वाराणसी, लाहौर की तवायफों की शानो शौकत, उनके समाज ,और आज़ादी के रोल को दर्शाती बेहतरीन कहानी है।
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