Shabana Azmi: बॉलीवुड में कई चेहरे ऐसे हैं जिनका चार्म उम्र के साथ-साथ कम नहीं बल्कि बढ़ता ही चला जाता है। उनमें से ही एक चेहरा है शबाना आजमी सिनेमा में 50 साल बितने के बाद भी उनका उहदा बरकरार है। शबाना का नाम आज जिस कद्र सम्मान और पहचान के साथ लिया जाता है, वहां तक पहुंचने के पीछे सिर्फ उसकी मेहनत ही नहीं, बल्कि उसके पिता की सिखाई हुई बातें भी शामिल हैं।
शबाना एक छोटे कस्बे में पली-बढ़ी थी। उसके पिता, जो खुद एक साधारण व्यक्ति थे, चाहते थे कि उनकी बेटी दुनिया में अपनी पहचान बनाए। वह शबाना को मेहनत और आत्मनिर्भरता की अहमियत सिखाना चाहते थे।
पिता ने क्यों की थी मोची बनने की बात?
शबाना ने मुंबई के सेंट जेवियर्स कॉलेज से मनोविज्ञान में स्नातक की डिग्री ली थी। इसके बाद जब शबाना ने अपने पिता से फिल्मों में जाने की बात कहीं तो उनका जवाब सुनकर वह भी दंग रह गई थी।
इस बात पर शबाना के पिता कैफी ने काह आग अगर मोची भी बनना चाहें, तो भी मुझे उसमें कोई ऐतराज नहीं, लेकिन आप मुझसे वादा कीजिए कि आप सबसे बेहतरीन मोची बनकर दिखाएंगी।
शबाना को पुणे के FTII में बेस्ट स्टूडेंट की स्कॉलरशिप भी मिली और वहां पढ़ने के दौरान ही उन्होंने दो फ़िल्में भी साइन कर ली थीं, जो ख्वाजा अहमद अब्बास की ‘फ़ासला’ और ‘परिणय’ थीं।
शबाना के अंदर उस दिन से एक नया जुनून जागा। उसने महसूस किया कि उसके पिता उसे सिखा रहे थे कि असफलता से डरने के बजाय अपनी मेहनत और काबिलियत पर भरोसा करना चाहिए।
उसने अपने पिता के शब्दों को अपनी प्रेरणा बना लिया। चाहे कितनी भी कठिनाई आई, शबाना ने कभी हार नहीं मानी।
शबाना आजमी का चार्म वक्त के साथ और भी निखरता गया। आज की जनरेशन उन्हें नीरजा, रॉकी और रानी की प्रेम कहानी, घूमर जैसी फिल्मों से पहचानती है। वक्त के साथ साथ दौर बदल गया, शबाना के किरदार बदल गए, लेकिन नहीं बदला तो वो था उनके किरदारों को जीने का अनुभाव। हिंदी सिनेमा में पांच दशक से चल रही उनकी शानदार पारी अब भी जारी है।
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