रमजान इस्लामिक कैलेंडर का नौवां महीना है, जिसे मुसलमानों द्वारा पवित्र माना जाता है। यह एक महीने का उपवास, प्रार्थना, और आत्म-संयम का समय होता है। रमजान में रोजा-नमाज और कुरआन पढ़ने के साथ जकात और फितरा देने का भी काफी महत्व है। जकात इस्लाम के 5 स्तंभ में से एक है।
रमज़ान कैलेंडर 2024 रमज़ान की तारीखें 11 मार्च से 9 अप्रैल तक निर्धारित करता है। 2024 में, रमज़ान 12 मार्च 2024 से शुरू हो गया है। रमजान के महीने में ईद की नमाज से पहले फितरा और जकात देना हर हैसियतमंद मुसलमान का फर्ज होता है। चलिए जानते हैं आखिर फितरा और जकात होता क्या है।
इस्लाम के अनुसार जिन मुसलिमों के पास इतना पैसा या संपत्ति हो कि वह उसके अपने खर्च पूरे वहन कर सकता हो और किसी और की भी मद की स्थिति में हो तो वह दान करने का पात्र बन जाता है। रमजान में इस दान को दो रूपों यानि फितरा और जकात में दिया जाता है।
जानें क्या है जकात
यदि कोई संपन्न मुसलमान जकात देता है तो वह एक दम से गोपनीय रूप में दिया जाता है। आर्थिक रूप से कमजोर जकात लेने वाले व्यक्ति को ये एहसास नहीं होना चाहिए कि उसे सार्वजनिक रूप से दान देकर जलील किया जा रहा है। ऐसे में जकात का महत्व कम हो जाता है। इस्लाम में रमजान के पाक महीने में हर हैसियतमंद मुसलमान पर जकात देना जरूरी बताया गया है। आमदनी से पूरे साल में जो बचत होती है, उसका 2.5 फीसदी हिस्सा किसी गरीब या जरूरतमंद को दिया जाता है, जिसे जकात कहते हैंऑ। यानी अगर किसी मुसलमान के पास तमाम खर्च करने के बाद 100 रुपये बचते हैं तो उसमें से 2.5 रुपये किसी गरीब को देना जरूरी होता है। जकात में 2.5 फीसदी देना तय होता है जबकि फितरे की कोई सीमा नहीं होती।
फितर का महत्व
इंसान अपनी हैसियत के हिसाब से कितना भी फितरा दे सकता है।अल्लाह ताला ने ईद का त्योहार गरीब और अमीर सभी के लिए बनाया है। गरीबी की वजह से लोगों की खुशी में कमी ना आए इसलिए हर संपन्न मुसलमान को जकात और फितरा देना अनिवार्य होता है।
जकात और फितरे में बड़ा फर्क यह है कि जकात देना रोजे रखने और नमाज पढ़ने जैसा ही जरूरी होता है, वहीं फितरा देना इस्लाम के तहत जरूरी नहीं है। जकात में 2.5 प्रतिशत देना तय होता है जबकि फितरे की कोई सीमा नहीं है। इंसान अपनी हैसियत के अनुसार कितना भी फितरा दे सकता है।
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