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हिजाब, किताब और अब हलाल: कर्नाटक कैसे बन रहा सांप्रदायिक विवादों का गढ़?

2 April 2022

हिजाब, किताब के बाद कर्नाटक में अब नया विवाद खड़ा हो गया है। ये विवाद मीट यानी मांस से जुड़ा हुआ है। जिसे हलाल मीट कहते हैं। कुछ संगठनों ने इस पर प्रतिबंध लगाने के लिए सरकार को आज तक का अल्टीमेटम दिया है। आज गुड़ी पड़वा है। मतलब आज से ही हिंदू नव वर्ष का आगाज होता है। कल यानी तीन अप्रैल को कर्नाटक में होसा-तड़ाकू उत्सव होगा। इस दिन देवी-देवताओं को मांसाहार का भोग लगाया जाता है और फिर उसके प्रसाद का लोग सेवन करते हैं।

अब आप सोच रहे होंगे कि जब देवी-देवताओं को मांसाहार का ही भोग लगाया जाएगा तो मीट पर प्रतिबंध लगाने की बात क्यों हो रही है? दरअसल, विरोध करने वाले ‘हलाल’ मीट के खिलाफ हैं। आइए समझते हैं हलाल मीट क्या है और क्यों इसका विरोध हो रहा है?

इसके पहले जान लीजिए कैसे कर्नाटक सांप्रदायिक विवादों का गढ़ बन रहा?

चर्च का सर्वे : 2021 की बात है। कर्नाटक सरकार ने आदेश जारी किया कि अब सभी चर्च के सर्वे करवाए जाएंगे। इसमें चर्च से जुड़ी सभी जानकारी होगी। मसलन कितने चर्च हैं, उसकी जमीन, पता, कहां-कहां से चर्च ऑपरेट किया जा रहा है? पादरी का नाम और पता? जैसी जानकारियां इसके जरिए पता करने की बात कही गई। ईसाई समुदाय ने इसका विरोध किया। वहीं, भाजपा ने तर्क दिया कि बड़े पैमाने पर धार्मिक परिर्वतन के मामले सामने आए हैं। इसे रोकने के लिए ये सर्वे जरूरी है।

किताब विवाद : कर्नाटक में 2021 से ही किताब विवाद चल रहा है। सबसे पहले राज्य सरकार ने कक्षा एक से लेकर दसवीं तक के पाठ्यक्रम से उस हिस्से को हटवाया, जिसमें कहा गया था कि हिंदू धर्म के चलते भारत में जैन और बौद्ध धर्म आगे नहीं बढ़ पा रहा है। फिर सरकार ने स्कूलों में श्रीमद्भगवत गीता पढ़ाने के लिए आदेश जारी किया। जिसका मुस्लिम समुदाय से जुड़े लोगों ने विरोध किया।

हाल ही में सरकार ने स्कूली पाठ्यपुस्तकों को संशोधित करने का फैसला किया है। संशोधन के बाद टीपू सुल्तान की महिमा सहित कुछ और चैप्टर्स को हटाया जाएगा। इसके अलावा कश्मीर का इतिहास, बाबा बुदनगिरी और दत्तपीठ के बारे में पढ़ाया जाएगा। कर्नाटक में बाबा बुदनगिरी और दत्तपीठ हिंदुओं और मुसलमानों के बीच विवाद की वजह रहे हैं।

हिजाब विवाद : स्कूल-कॉलेजों में लड़कियों के हिजाब पहनने पर कर्नाटक सरकार ने रोक लगा दी। इसके बाद ये मामला पहले हाईकोर्ट और फिर सुप्रीम कोर्ट पहुंचा। हाई कोर्ट ने कहा कि स्कूल-कॉलेजों में निर्धारित ड्रेस कोड का पालन होना चाहिए। ये भी कहा कि इस्लाम में हिजाब की अनिवार्यता कहीं नहीं है। अब मामला सुप्रीम कोर्ट में चल रहा है।

अब मीट विवाद : अब कर्नाटक में हलाल मीट पर प्रतिबंध लगाने की मांग की जा रही है। कहा गया है कि जानवरों को तड़पाकर मारा जाता है। इस तरह से मारे गए जानवरों का मांस अशुद्ध होता है और उसे देवी-देवताओं को नहीं लगाया जा सकता है।
हलाल मीट का विवाद आने के बाद बेंगलुरू की वकील और पोषण-आहार कार्यकर्ता क्लिफ्टन रोजारियो का बयान सामने आया। वह कहती हैं, ‘जानवरों को झटके से मारा गया हो या हलाल किया गया हो। इससे उनके मांस की पौष्टिकता पर कोई असर नहीं पड़ता। जानवरों को मारे जाने की प्रक्रिया का पूरा मामला धार्मिक है।’


इस्लाम के जानकार प्रोफेसर इमाम-उल-मुंसिफ के एक लेख का उदाहरण भी दिया जा रहा है। इसमें इमाम लिखते हैं, ‘इस्लाम में हलाल की कोई अहमियत नहीं है। इसके पक्ष में दलील देने वाले सिर्फ गुमराह कर रहे हैं। बल्कि, मेरे हिसाब से झटके से जानवर को मारने की प्रक्रिया कहीं ज्यादा मानवीय है क्योंकि उसमें जानवर को किसी तरह का ज्यादा दर्द नहीं होता।’

वहीं, दूसरी ओर इस्लाम के कुछ जानकार कहते हैं कि हलाल इसलिए किया जाता है कि गर्दन के चारों ओर की नसें कट जाने पर जानवर का खून बह जाए। हलाल समर्थकों का तर्क है कि पैगंबर मोहम्मद ने कहा है कि यदि मांस के भीतर खून सूख जाएगा तो उससे कई बीमारियां हो सकती हैं। मांस से सारा खून बह जाने से खाने पर इंसान को बीमारी नहीं होती।