भारत एक धर्म निर्पेक्ष देश है। हमारा संविधान जाति, धर्म, संप्रदाय से उपर उठकर प्रत्येक नागरिक को समान अधिकार देता है, लेकिन फिर भी सवाल उठाया जाता है कि, क्या कोई मुस्लिम व्यक्ति देश का प्रधानमंत्री बन सकता है?
आजादी के 77 साल बाद भी आज तक कोई मुस्लिम व्यक्ति देश का प्रधानमंत्री क्यों नहीं बन सका? यह सवाल तब उठा जब ऋषि सुनक ब्रिटन के प्रधानमंत्री बने।
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भारत के अब तक के प्रधानमंत्री हिंदू, जाट और सिख रहे। हम सब जानते है कि भारत एक लोकतांत्रिक, धर्म निर्पेक्ष देश है। यहां पर हर 5 साल में चुनाव होते हैं। संविधान के आर्टिकल 84 के तहत कोई भी व्यक्ति चुनाव लड़ सकता है। जीतकर वह संसद का सदस्य बन सकता है। आर्टिकल 84 के अनुसार चुनाव लड़ने वाला व्यक्ति भारत का नागरिक होना चाहिए और उसकी उम्र राज्यसभा के लिए 30 और लोकसभा के लिए 25 साल होनी चाहिए। ऐसा कोई भी संसद सदस्य जिसे पार्लियामेंट में 272 सीट्स की मेजोरिटी मिलती है, वह महामहिम राष्ट्रपति द्वारा आर्टिकल 75 के अंतर्गत देश का प्रधानमंत्री नियुक्त किया जाता है। कुल मिलाकर संविधान के अनुसार देश में किसी भी जाति संप्रदाय या धर्म का व्यक्ति प्रधानमंत्री बन सकता है।
अगर ऐसा होता तो उच्च पद और मंत्री पद पर कोई मुस्लिम न होता। यहां यह जानना ज़रूरी है की 1947, 1966, 1972, में देश के शिक्षामंत्री मुस्लिम थे। देश के पहले शिक्षामंत्री बने मौलाना अबुल कलाम आजाद। उनके बाद कालू लाल श्रीमाली, हुमायूं कबीर, मोहम्मद करीम चांगला, और फखरुद्दीन अली अहमद देश के शिक्षामंत्री थे। 1989 में गृहमंत्री थे मुफ्ती मोहम्मद सईद। इसलिए यह कहना गलत होगा कि मंत्री पदों पर मुस्लिम नहीं थे, और कोई प्रधानमंत्री नही बन सकता। देश के सर्वोच्च राष्ट्रपति पद पर डॉक्टर जाकिर हुसैन, एपीजे अब्दुल कलाम, फखरुद्दीन अली अहमद तो उपराष्ट्रपति पद पर हामीद अंसारी के नाम सिरमौर है।
देश का प्रधानमंत्री बनने के लिए एक सच्चा भारतीय होना जरूरी है, जो जात-पात, धर्म, संप्रदाय से ऊपर उठ, भारतीय बनकर देश की बागडोर संभाले। जिसे देश का हर नागरिक अपना नेता माने। जिसे दिल से देश की प्रजा चुने और देश का भविष्य पूरे विश्वास के साथ उसके हाथों में बेझिझक दे दे।
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