मध्य रात्रि अक़्सर कहवे की पनाह में होती हूँ । सदियों से प्रेम के देवता को ठुकराई हुई प्रेमिकाएं अपने धैर्य की परीक्षाएं देने को विवश जान पड़ती हैं . तुम होते तो देख पाते की रातरानी अब मेरी खिड़की से भीतर झांकते हुए महमहाने लगी है। इधर बूंदों की झड़ियाँ लगी हुई हैं बीते दो दिनों से …गली के कुत्तों के चंद पिल्ले भीगी थरथराती देह में किसी शेड के नीचे आश्रय पाकर बेतरह रुदन कर रहे हैं … ..
अनगिनत दृश्य अवचेतन मन में धंसे पड़े हैं और चेतना शून्य-सी इस काया में दर्द ने छोड़ रखे हैं गहरे नीले निशान । कोई स्वप्न है, जो रह – रहकर पीछा कर रहा है रूठी हुई इन तमाम रातों का ..मैं एक ही दौड़ में उस हरी पहाड़ी की सबसे आख़िरी चोटी पर चढ़ जाना चाहती हूँ जहां से कोई मुझे अपने पास न बुला सके और मैं ज़ोर -ज़ोर से आवाज़ें लगाकर उस अदृश्य शक्ति को अंधेरे का रहस्य बता सकूँ , जहां मनुष्यता भी एक समय के पश्चात अपने साये को खो देती है ।
स्त्री के अपमान को कहीं सिद्ध नहीं किया जा सकता । जिधर देखो, हस्तिनापुर का साम्राज्य बिखरा पड़ा है । सत्य और असत्य के युद्ध में अभिमन्यु हर काल में चक्रव्यूह में फंसते रहेंगें और हिडिम्बा प्रेम की सूली पर अपने बेटों की बलि चढ़ाती रहेगी ।
नए दिन के उगने के साथ कोई नई बात नहीं होती । जगत में व्याप्त कोई दुःख दूर नहीं होता । निराशा केवल वस्त्र बदलकर आशा की कौंध जगाती है । जो उम्मीद दिलाता है- वही सबसे पहले हाथ छुड़ाकर दूर खड़ा होकर तमाशा देखता है । कदाचित वो कभी ये जान ही नहीं पाता कि – उसने कितना सघन अपराध किया है। तुम किसी का कष्ट भले न मिटा पाओ किंतु उसकी जलन को दुगुना करने से अपने ईश्वर को भी रूष्ट कर देते हो..
आगामी कुछ वर्ष लगेंगे इस आघात से उबरने के लिए कि – प्रेम एक छलावे से बढ़कर और कुछ भी नहीं । एक पुकार ऐसी है -जो अपने पीछे – पीछे उस निर्जन तक खींचकर ले जाती है मनुष्य को, जहाँ व्यक्ति स्वयं की पहचान ही खो देता है .. उसका अस्तित्व पूरी तरह से धूमिल हो जाता है । ऊपर से मज़बूत दिखने वाली औरतें नीरवता में अपने नितांत अकेलेपन को भोगते हुए सबसे अधिक कमज़ोर पाई गई हैं ।
हमें किसी झील या तालाब के ठहरे जल में कंकड़ फेंकने से सदा बचे रहना चाहिए ताकि अकस्मात उठने वाले उन बेशुमार भँवरों के श्राप से बचा जा सके । शामों -सुबह किसी निरीह को अपनी प्रार्थनाओं में सदा याद किया जाना चाहिए ताकि यकायक रोगी को
किसी को आराम मिल सके । तुम्हें तो पता होना चाहिए था कि -प्रेम में अपने कहे से मुकरना अवसरधर्मिता का परिचायक माना जाता है ।
बरसती इन रातों में पक्षियों , वनस्पतियों , और जीव-जंतुओं एवं तमाम ज़रूरतमंदों के लिए हमें नित्य आश्रय की विनती अवश्य करनी चाहिए ताकि इस अंधकार भरी धरती पर किंचित मनुष्यता बची रहे…
कहीं किसी छोर पर …
Voice artist, film critic, casual announcer in All India Radio Bilaspur, moderator, script writer, stage artist, experience of acting in three Hindi feature films, poetess, social worker, expert in stage management, nature lover, author of various newspapers, magazines and prestigious newspapers of the country and abroad. Continuous publication of creations in blogs
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