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कांग्रेस के साथी कृषि कानूनों के कलर की बजाय कंटेंट पर चर्चा करते तो किसानों तक सही बात पहुंचती- प्रधानमंत्री

10 Feb. New Delhi: आज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी राष्ट्रपति के अभिभाषण के धन्यवाद प्रस्ताव पर लोकसभा में जवाब दे रहे हैं। उन्होंने अपने सम्बोधन के दौरान कृषि कानूनों की बात करते हुए कहा, ‘इस कोरोना काल में 3 कृषि कानून भी लाए गए। ये कृषि सुधार का सिलसिला बहुत ही जरूरी है। बरसों से हमारा कृषि क्षेत्र चुनौतियां महसूस कर रहा था, उसे उबारने के लिए हमने प्रयास किया है। भावी चुनौतियों से हमें अभी से निपटना होगा। मैं देख रहा था कि यहां पर कांग्रेस के साथियों ने चर्चा की कि वे कानून के कलर पर बहस कर रहे थे। ब्लैक है या व्हाइट। अच्छा होता कि वे उसके कंटेंट पर, उसके इंटेंट पर चर्चा करते ताकि देश के किसानों तक भी सही बात पहुंच सकती।’

‘अधीर रंजन चौधरी ने भी भाषण किया और लगा कि वे बहुत अभ्यास करके आए होंगे। लेकिन प्रधानमंत्री बंगाल की यात्रा क्यों कर रहे हैं, वे इसमें ही लगे रहे। दादा के ज्ञान से वंचित रह गए। खैर, चुनाव के बाद आपके पास मौका होगा तो…ये अर्थात बंगाल कितना महत्वपूर्ण प्रदेश है, इसलिए तो कर रहे हैं। आपने इतना पीछे छोड़ दिया, इसलिए हम इसे प्रमुखता देना चाहते हैं।’

आगे प्रधानमंत्री अपने सम्बोधन में कहते हैं, ‘जहां तक आंदोलन का सवाल है। वे गलत धारणाओं के शिकार हुए। (हंगामा होने लगा तो प्रधानमंत्री बोले…) मेरा भाषण पूरा होने के बाद सब कीजिए, आपको मौका मिला था। आप किसानों के लिए कुछ गलत शब्द बोल सकते हैं, हम नहीं बोल सकते। जब बीच में रोक-टोक होने लगी तो मोदी बोले… देखिए मैं कितनी सेवा करता हूं। आपको जहां रजिस्टर करवाना था, वहां हो गया।’

सम्बोधन को जारी रखते हुए मोदी ने कहा कि इस सदन में 15 घंटे से भी ज्यादा चर्चा हुई है। सदस्यों ने चर्चा को जीवंत बनाया है। सभी सदस्यों का आभार व्यक्त करता हूं। मैं विशेष रूप से महिला सांसदों का आभार व्यक्त करता हूं। उनकी भागीदारी भी ज्यादा थी। रिसर्च करके बातें रखने का उनका प्रयास था। अपनी बातों को तैयार करके उन्होंने इस सदन और चर्चा को समृद्ध किया है। इसलिए उनकी तैयारी, उनके तर्क और उनकी सूझबूझ के लिए मैं विशेष रूप से महिला सांसदों का अभिनंदन व्यक्त करता हूं।

प्रधानमंत्री कहते हैं कि कुछ लोग कहते थे कि इंडिया वॉज़ मिरैकल डेमोक्रेसी। हमने यह भ्रम तोड़ा है। हमारी हर सोच, हर पहल, हर प्रयास लोकतंत्र की भावना से भरा होता है। अनेक चुनाव आए, सत्ता परिवर्तन हुए। परिवर्तित सत्ता व्यवस्था को भी स्वीकार करके सब आगे बढ़े। हम विविधिताओं से भरा देश है। क्या कुछ नहीं है… विविधिताओं से भरा हुआ। इसके बावजूद भी हमने एक लक्ष्य, एक राह अपनाकर इसे करके दिखाया। आज जब हम भारत की बात करते हैं तो स्वामी विवेकानंद जी की बात को याद करूंगा। Every nation has a message to deliver, A mission to a destination we reach. यानी हर राष्ट्र की एक नियति होती है, जिसे वह प्राप्त करता है।

मोदी ने कहा कि कोरोना में भारत ने जिस तरह अपने आप को संभाला और दुनिया की संभलने में मदद की, वह एक टर्निंग पॉइंट है। वेद से विवेकानंद तक, जिस परंपरा से हम पले-बढ़े हैं, सर्वे भवन्तु सुखिन:, इस कोरोना काल ने यह कर दिखाया है। एक के बाद एक जनसामान्य ने ठोस कदम उठाए। जब दूसरा विश्व युद्ध खत्म हुआ था, तो दुनिया को दो युद्ध झकझोर चुके थे।

मानव जाति और मानव मूल्य संकट के घेरे में थे। दुनिया में एक नई व्यवस्था ने आकार लिया। शांति के मार्ग पर चलने की शपथ ली गई। सैन्य नहीं, सहयोग के मंत्र को लेकर दुनिया के अंदर विचार प्रबल होते गए। यूएन बना। संस्थान बने। भांति-भांति के मैकेनिज्म तैयार हुए ताकि दुनिया को शांति की दिशा में ले जाया जा सके। अनुभव कुछ और निकला कि दुनिया में शांति की बात तो हर कोई करने लगा। पोस्ट वर्ल्ड वॉर शांति की बातों के बीच भी हर कोई अपनी सैन्य शक्ति बढ़ाने लगा। वर्ल्ड वॉर के पहले जो दुनिया के पास शक्ति थी, वह कई गुना बढ़ गई। छोटे-मोटे देश भी इस स्पर्धा मे आने लगे।

मोदी ने कहा कि इनोवेशन, रिसर्च इसी कालखंड में हुए। पोस्ट कोरोना भी एक नया वर्ल्ड ऑर्डर नजर आ रहा है। पोस्ट कोरोना के बाद दुनिया में संबंधों का वातावरण आकार लेगा। हमें तय करना है कि हम वर्ल्ड वॉर के बाद मूकदर्शक के रूप में दुनिया को देखते रहें। आज कोरोना के बाद नया वर्ल्ड ऑर्डर बनेगा। दुनिया ने जिस तरह संकट को झेला, वह इस बारे में सोचने को मजबूर होना है। ऐसे में भारत दुनिया से कटकर नहीं रह सकता। हमें भी एक मजबूत प्लेयर के रूप में उभरना होगा। लेकिन सिर्फ जनसंख्या के आधार पर हम दुनिया में अपनी मजबूती का दावा नहीं कर पाएंगे। वो एक ताकत है, लेकिन सिर्फ इससे नहीं चलेगा। भारत को सशक्त, समर्थ होना होगा। इसका रास्ता है आत्मनिर्भर भारत।

भारत की आत्मनिर्भरता पर बात करते हुए कहा, ‘भारत जितना आत्मनिर्भर बनेगा, जिसकी रगों में सर्वे भवन्तु सुखिन: का मंत्र जड़ा है, वह विश्व के कल्याण के लिए बड़ी भूमिका अदा कर सकेगा। इसलिए हमारे लिए आवश्यक है कि हम आत्मनिर्भर भारत के विचार को बल दें। हम ये मानकर चलें कि ये किसी शासन व्यवस्था का विचार नहीं है। ये किसी राजनेता का विचार नहीं है। आज हिंदुस्तान के किसी कोने में वोकल फॉर लोकल सुनाई देता है। यह आत्मनिर्भर भारत के लिए बहुत काम आ रहा है।’