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The Power of Childhood Friendships: दोस्ती और ज़िन्दगी का अटूट रिश्ता

“यारों दोस्ती बड़ी ही हसीन है, यह न हो तो क्या फिर बोलो यह ज़िन्दगी है।”

आपने यह तो सुना ही होगा कि दोस्ती हो तो जय-वीरू, कर्ण-दुर्योधन, कृष्ण-अर्जुन, और कृष्ण-सुदामा जैसी हो। दोस्ती शब्द सुनते ही मन को सुकून मिलता है और एक अलग सी ख़ुशी का एहसास होता है। लेकिन, यह दोस्ती होती क्या है ? दोस्ती का मतलब होता है दो लोगों के बीच का एक ऐसा निःस्वार्थ रिश्ता जो सालों साल बिना किसी तकरार के और सिर्फ भरोसे पर टिका हो।

हम ज़िन्दगी के हर मोड़ पर, हर पड़ाव पर दोस्त बनाते हैं। स्कूल में, ट्यूशन क्लास में, कॉलेज में, ऑफिस में, बहार किसी इवेंट में कोई दोस्त बना लिया और ऐसी अन्य और पड़ाव पर दोस्त बनते हैं। हर दोस्त हमें एक पर्सनालिटी देकर जाता है। हालाँकि जिसका कंट्रीब्यूशन हमारी ज़िन्दगी में सबसे ज़्यादा और सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है, वह है “बचपन के दोस्त।”

बचपन के दोस्त हमारी वो साइड जानते हैं जो किसी ने कभी नहीं देखी होती। बचपन के दोस्त हमें एक अपनेपन की भावना का अनमोल तोहफा देते हैं। दोस्ती हमारे शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर गहरा असर डालती है। रिसर्च के मुताबिक सात वर्ष से कम उम्र के बच्चों के लिए दोस्ती करना एक महत्वपूर्ण विकासात्मक लक्ष्य है। प्रीस्कूल और शुरुआती स्कूल के दौरान विकसित हुई दोस्ती बच्चों को सोशल, कॉग्निटिव, कम्युनिकेटिव और इमोशनल डेवलपमेंट से संबंधित स्किल सीखने और प्रैक्टिस करने के लिए महत्वपूर्ण कॉन्टेक्स्ट प्रदान करती है।

अपनी बचपन की दोस्ती को निभाना सीखकर, बच्चे सीखते हैं कि दूसरों के नजरिये के प्रति संवेदनशील कैसे बनें, बातचीत के मानक नियमों का प्रयोग कैसे करें, और आयु-उपयुक्त व्यवहार का गठन क्या होता है। दोस्ती से बच्चों में अपनेपन और सुरक्षा की भावना पैदा होती है और तनाव कम होता है। बाल मनोवैज्ञानिकों का मानना है कि बचपन की दोस्ती बच्चों के जीवन की गुणवत्ता और उनके वातावरण में बदलावों के साथ तालमेल बिठाने की क्षमता में भी योगदान करती है।

कैसे संभालें अपनी बचपन की दोस्ती

एक दोस्ती को निभाने के लिए सबसे ज़्यादा ज़रूरी चीज़ होती है कम्युनिकेशन। अगर आप अपनी बचपन की दोस्ती को लम्बे समय के लिए निभाना चाहते हो, तो अपने दोस्त से नियमित तौर पर आपको बातें करते रहना पड़ेगा। लेकिन एक और बात है। सिर्फ कम्युनिकेशन काफी नहीं होता। ओपन कम्युनिकेशन बहुत ज़रूरी होता है। आपको आपके इंटेंशन्स क्लियर रखने होंगे और अपने दोस्त से हर चीज़ ओपनली शेयर करनी होगी। ऐसा करने से दोस्ती और गहरी होती है। दूसरा, चाहे आप कितने ही व्यस्त क्यों न हो, लेकिन अपने दोस्त के लिए आपको समय निकालना ही होगा। तीसरा और सबसे ज़रूरी, अगर आपका दोस्त कोई अच्छा काम करता है तो उसे सपोर्ट करना आपका फ़र्ज़ है। और अगर कोई गलत काम करता है तो उसे रोकना आपकी ड्यूटी है। ऐसा करने से एक दूसरे पर भरोसा बढ़ता है और दोस्ती के लम्बे समय तक टिकने की संभावनाएं बढ़ जाती है।

हालाँकि ऐसा सब करने से दोस्ती रहेगी, लेकिन दोस्ती के पवित्र रिश्तें को कायम रखने के लिए एक दूसरे के प्रति अंडरस्टैंडिंग होना और गलती होने पर माफ़ी देना महत्त्वपूर्ण होता है।

पेरेंट्स कैसे कर सकते हैं बच्चों की मदद

कहते है ना कि बच्चे जो भी सीखते हैं वह ज़्यादातर अपने माँ बाप को देखकर सीखते हैं। इसलिए बहुत ज़रूरी है माँ बाप का बच्चों के लिए एक अच्छी दोस्ती का उदहारण सेट करना। अगर माँ बाप अपने अच्छे बुरे किस्से बच्चों को सुनाएंगे तो बच्चे उनसे कुछ सीख पाएंगे और अपनी दोस्ती निभाते वक़्त थोड़ी सी सावधानी रखेंगे। माँ बाप को यह भी समझना पड़ेगा कि उनके बच्चों की अपनी एक पर्सनालिटी होती है। इसलिए वह अपने हिसाब से दोस्त बनाएंगे। माँ बाप को बस अपने बच्चों के ऊपर भरोसा होना चाहिए।

ज़िन्दगी अगर समुद्र है तो दोस्ती चाँद। चन्द्रमा की ग्रेविटी की वजह से ही तो लहरें बनती हैं। तभी तो जब दोस्ती होती है, ज़िन्दगी में तब ही हलचल मचती है और मस्ती होती है। वरना ज़िन्दगी सूनी हो जाती है।