नलिनी रावल
आज का दिन गुजरात के मोरबी के ईतिहास का काला दिन साबित हुआ। मोरबी में आए जलजले की आज 44वीं बरसी है।
11 अगस्त 1979 का दिन तत्कालीन राजकोट जिले के मोरबी के ईतिहास का काला,दुर्दांत पन्ना था। आज से 44 साल पहले मोरबी के लोगों के लिए, जलजला हजारों की मौत की खबर लेकर आया। ऊपरी इलाके में हुई भारी बारिश और बाढ़ के चलते मोरबी के मच्छू डेम 2 में उसकी क्षमता से तीन गुना पानी आ जाने से डैम ढह गया। 4 किलोमीटर लंबे मच्छु डैम की दिवारे टूट गई,और लाखों क्यूसेक पानी बह चला निचले इलाकों की ओर।
केवल 20 मिनट में ही 12 से 30 फीट ऊंचे पानी के सैलाब ने शहर को तबाह कर दिया।” पानी आया, पानी आया” का शोर गूंजता, लोग कुछ समझते उससे पहले डैम का पानी 1800 से 25 हजार लोगों के जीवन का काल बन गया। इस झलझले ने 1979 के समय के अनुसार 100 करोड़ का अंदाजित नुकसान किया। फसलों और उत्पादन पर दुष्प्रभाव पड़ा। मच्छु डैम 2 टूटने की खबर सबसे पहले अमेरिका को लगी थी।
सन 1975 में चीन के बाकियों बांध टूटने की विस्तृत जानकारी 2005 में प्राप्त हुई, लेकिन उससे पहले मोरबी के मच्छु डैम 2 के टूटने की खराब दुर्घटना के रूप में इसका गिनीज बुक ऑफ़ वर्ल्ड में नाम लिया गया। सरकारी दावों के अनुसार इसे प्राकृतिक दुर्घटना करार दिया गया, लेकिन No one had a tuung to speak के लेखक टॉम वूटेन और उत्पल सांडेसरा ने इन दावों को खारिज करते हुए कहा कि मच्छु डैम के कमजोर निर्माण और संदेशव्यवहार की अकुशलता इस दुर्दांत दुर्घटना का कारण बनी थी।
आज मोरबी के मच्छु डैम जल से लेकर 44 वीं बरसी पर उस सैलाब से प्रभावित हुए और जान गवाने वाले लोगों के लिए VNM परिवार श्रद्धांजलि अर्पित करता है।
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