हिन्दू धर्म में किसी भी नई चीज़ के घर में आते ही उसकी पूजा की जाती है। साथ ही कोई भी शुभ काम शुरू करने से पहले नारियल फोड़ा जाता है। जैसे कि अगर हमारे घर में कोई नई गाड़ी आती है तो उसकी पहले कुमकुम, चंदन, चावल, और फूलों के हार से पूजा की जाती है। उसके बाद गाड़ी के पहियों के आगे नारियल फोड़ा जाता है, उसके बाद ही गाडी चलाना शुरू किया जाता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि कोई भी शुभ कार्य प्रारंभ करने से पहले नारियल क्यों फोड़ा जाता है?
हिन्दू धर्म में कभी-कभी भगवान को प्रसन्न करने के लिए बलि दी जाती है। हालांकि कई लोगों को ऐसा करना सही नहीं लगता था इसलिए किसी इंसान की बलि चढ़ाने के बजाए नारियल की बलि चढाने की प्रथा शुरू हुई। नारियल को बलि का स्वरुप समझा जाता है। इसके बहार का हिस्सा इंसान का सिर, दो होल इंसान की आँखें और एक नाक का प्रतीक है। इसलिए नारियल की बलि चढ़ाई जाती है।
वहीं दूसरी ओर अगर इसको शुभ अवसर पर फोड़ने की बात करें तो नारियल का जो पानी होता है वह नेगेटिविटी को दूर करता है। कहते हैं कि नारियल फोड़ने से उस काम में आने वाली सारी बाधाएं दूर हो जाती है। पहले नारियल को छिला जाता है। यह हमारी आंतरिक इच्छाओं और भौतिकवादी इच्छाओं का प्रतीक है जिन्हें हमें त्यागने की जरूरत है। उसके बाद बचता है नारियल का कड़क हिस्सा। तो नारियल का जो बहार का कड़क हिस्सा होता है, वह हमारे ईगो को दर्शाता है। और अंदर का सॉफ्ट, सफ़ेद पार्ट, शांति का प्रतीक होता है। इसलिए जब नारियल फोड़ा जाता है तो ऐसा मानते हैं कि हम हमारे ईगो को साथ में नष्ट करते हैं। और फिर जो अंदर से पानी बाहर निकलता है, वह आस पास की और हमारे अंदर की सारी नकारात्मक शक्तियों और ऊर्जाओं को नष्ट कर देता है। आखिर में उस सॉफ्ट सफ़ेद हिस्से को प्रसाद के रूप में चढ़ाकर खाया जाता है।
कथाओं के अनुसार जब विष्णुजी धरती पर आए थे तो वह एक नारियल का पेड़, लक्ष्मीजी और कामधेनु गाय को साथ लेकर आये थे। यह भी एक वजह है कि नारियल को इतना पवित्र क्यों माना जाता है और उसे भगवान को क्यों चढ़ाया जाता है। और इसलिए कोई भी शुभ कार्य करने से पहले हिन्दू धर्म में नारियल फोड़ा जाता है।
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