CATEGORIES

May 2024
MTWTFSS
 12345
6789101112
13141516171819
20212223242526
2728293031 
May 12, 2024

ड्रैगन की ओर इशारा करता स्मोक अटैक

पाकिस्तान के खस्ताहाल होने के बाद उसके आका ने भारत के विरुध्द भितरघातियों की पीठ पर हाथ रखकर चालें चलना शुरू कर दीं है। संसद में स्मोक अटैक के लिए स्वयंभू बुध्दिजीवियों के गिरोहों के माध्यम से नई तरह के नक्सलियों को मैदान में उतार दिया गया है। पाकिस्तान की सीमा से फैलाये जाने वाले आतंक पर लगाम कसने के कारण अब चीन को खुद ही मोर्चा सम्हालना पड रहा है। वामपंथी विचारधारा को हथियार बनाकर सन् 2024 के चुनावों के पहले गृहयुध्द का वातावरण तैयार किया जाने लगा है जिनमें विचारधारा के कथित संघर्ष की पटकथा पर काम हो चुका है। अब तो केवल मंचन हेतु कलाकारों का प्रशिक्षण चल रहा है।

दुनिया में भारत की बढती धाक से बौखलाये शी जिनपिंग ने अपने सुरक्षित भविष्य के लिए भितरघातियों सक्रिय करना शुरू कर दिया है। कुछ राजनैतिक दलों के मुखिया चीन की इस विचारधारा को देश के अंदर हमेशा से ही संरक्षित करते रहे है। लाल सलाम करने वालों ने कभी जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में देश के टुकडे-टुकडे करने वाले मंसूबों को फैलाने हेुत छात्रों का उपयोग किया तो कभी सडकों पर तानाशाही के साथ किसानों के वेश में अपने कार्यकर्ता उतारे। कभी न्याय की मांग के साथ अधिकारों को नारा बुलंद करवाया तो कभी हक की लडाई के नाम पर अराजकता फैलाई।

अनेक रिपोर्ट्स में चीन के व्दारा वित्तीय सहायता पाने वाले राजनैतिक दलों का खुलासा होने के बाद भी आरोपी सफेदपोशों की बेशर्मी चरम सीमा की ओर बढने लगी है। नई संसद में की गई आतंकी वारदात में विधायिका को ही दोषी ठहराया जा रहा है जबकि इस पूरे घटनाक्रम में केवल और केवल कार्यपालिका ही दोषी है। सरकारी अधिकारी-कर्मचारियों की लापरवाहियों, मनमानियों और अनियमितताओं के इस जीते जागते उदाहरण के बाद भी सत्ता सुख के लोलुपों व्दारा सरकार को ही उत्तरदायी ठहराया जा रहा है। विपक्ष के व्दारा इस्तीफे की मांग का अर्थ निश्चय ही मंत्रियों के व्दारा खुद सुरक्षा की गेट-डियूटी देने में की गई कर्तव्यहीनता ही प्रतीत होती है।

शायद ही कोई ऐसी सरकार होगी जो लोकतंत्र के मंदिर को ही नस्तनाबूद करने के लिए सहयोगी की भूमिका में उतरी हो। संवैधानिक व्यवस्थाओं की जटिलताओं की जानकारी कार्यपालिका की तुलना में विधायिका को उसी अनुपात में होना संभव नहीं है। सेवाकाल के लम्बे सोपान और अनेक सरकारों के साथ काम करने का अनुभव रखने वाले अधिकारियों के हाथों में लगभग सभी राजनैतिक दलों को कद्दावर नेताओं की दु:खती नस होती है जिसका वे समय-समय पर उपयोग करके अपनी मंशा पूरी करते रहते हैं। देश के संविधान में खुलेआम हत्या करने वाले को सजा देने के लिए भी हत्याकाण्ड के प्रमाणों की आवश्यकता होती है। दोषी भले ही बच जाये परन्तु निर्दोष को सजा नहीं होना चाहिए, इसी आदर्श वाक्य को कानूनी भाषा में प्रस्तुत करके अनेक आपोपियों को बचाया जाता रहा है।

राष्ट्रद्रोहियों को फांसी के फंदे से बचाने के लिए रात में भी न्यायालय के दरवाजे खोलने पडते हैं जबकि राष्ट्रभाषा में आवेदन देने वाले को उच्च और उच्चतम न्यायायल की चौखट से ही भगा दिया जाता है। गोरों की गोद में बैठकर लिखे गये संविधान ने जहां देश की सांस्कृतिक विरासत को पलीदा लगाया है वहीं अपराधियों की सुरक्षा हेतु अनेक दरवाजे खुले छोड दिये हैं। इन्हीं अव्यवस्थाओं का फायदा उठाकर कभी आंतकवादियों पर कसने वाले शिकंजे को मानवाधिकार का उलंघन बताया जाता है तो कभी समाज में जहर फैलाने वालों को अभिव्यक्ति की आजादी का कवच पहना दिया जाता है। द्ूर-दराज के पिछडे इलाकों को चिन्हित करके चीन की शह पर वहां नक्सलियों की फौज सक्रिय हो जाती है। कथित बुध्दिजीवियों के गिरोह डेरा डालकर स्थानीय लोगों को कट्टरता का पाठ पढाने लगते हैं और फिर निरीहों के कंधों पर बारूद रखकर सुलगा दी जाती है। इस बार तो राष्ट्रभक्तों के नाम का उपयोग करके आतंक की एक नई विधा परोसी गई है।

वायरस की खेती करने वाला ड्रैगन अब दुनिया को लाल करने में जुट गया है। अनेक मोर्चों पर भारत से पछाड खाने के बाद चीन ने भारत की वर्तमान सरकार को उखाड फैंकने के लिए राष्ट्रप्रेम की चासनी में लपेट कर जहरीले कैप्सूल खिलाने शुरू कर दिये हैं। इन कैप्सूल्स की खेपों को बंगाल सहित पूर्वोत्तर राज्यों से निरंतर भेजा जा रहा है। संसद पर वर्तमान हमले का घटनाक्रम और आरोपियों की मानसिकता चीख-चीखकर चीन के षडयंत्र को उजागर कर रही है। षडयंत्रकारियों व्दारा घातक ट्रेलर दिखाकर फिल्म के प्रीमियर की तारीख तय करने की संभावना से भी इंकार नहीं किया जा सकता। यह सुरक्षा में चूक नहीं है बल्कि कर्तव्यनिष्ठा को तिलांजलि दे चुके उन अधिकारियों-कर्मचारियों का चरित्र-चित्रण है जो सरकारी खजाने से मिलने वाले पैसों को पगार नहीं बल्कि भत्ता मानते हैं। उत्तरदायित्वों की पूर्ति के लिए मिलने वाले वेतन को जनसेवकों से सरकारी अधिकारी बन चुके लोगों ने स्वयं का अधिकार मान लिया है।

समुचित प्रमाणों के बाद भी आरोपी को सेवा से निष्काषित करने के लिए सरकारों को एडी-चोटी का जोर लगाना पडता है। कभी कारण बताओ नोटिस पर प्रश्नचिन्ह लगाये जाते हैं तो कभी विभागीय जांच को चुनौती देकर समय गुजारा जाता है। कभी उच्चस्तरीय कमेटी की मांग की जाती है तो कभी न्यायालय में गुहार लगाई जाती है। कुल मिलाकर देश की आंतरिक व्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए आम आवाम को एक साथ खडा होना पडेगा, वर्तमान हालातों की राजनीतिविहीन समीक्षा करना होगी और निर्धारित करने होंगे सिध्दान्तविहीन हो चुके दलों को निष्काषित करके पारदर्शी मापदण्ड। तभी चीन जैसे घातक, ब्रिटेन जैसे कुटिल और अमेरिका जैसे मौकापरस्त से बचा जा सकेगा। अन्यथा पाकिस्तानी षडयंत्रों के साथ-साथ चीनी चालों सहित कनाडा के मंसूबे निरंतर उडान भरते रहेंगे।

इस अत्याधिक संवेदनशील मुद्दे पर भी राजनैतिक आरोपों-प्रत्यारोपों का बाजार गर्म हो रहा है। कभी सर्जिकल स्ट्राइक को सबूत मांगे जाते हैं तो कभी सेना को हतोत्साहित करने का प्रयास किया जाता है। राष्ट्रीय हितों पर दलगत दंगल निरंतर चरम की ओर बढ रहा है जबकि ड्रैगन की ओर इशारा करता स्मोक अटैक स्वयं ही अपनी व्यथा-कथा सुना रहा है परन्तु उसकी आवाज तो नक्कारखाने में तूती बनकर ही रह गई है। इस बार बस इतना ही। अगले सप्ताह एक नई आहट के साथ फिर मुलाकात होगी।