राष्ट्रीय लोक दल और भारतीय जनता पार्टी के बीच सीट बंटवारे की खबरों के बाद चरणसिंह चौधरी को भारत रत्न देने का ऐलान किया गया है । चरण सिंह चौधरी भारत के 5 वें प्रधानमंत्री थे। आज हम इस लेख में आपको इस महान हस्ती के जीवन काल के बारे मैं बताएँगे-
उनका जन्म और पहले की ज़िन्दगी
चरण सिंह का जन्म 1902 में उत्तर प्रदेश के मेरठ जिले के नूरपुर में एक मध्यम वर्गीय किसान परिवार में हुआ था। 1923 में साइंस में ग्रेजुएशन करके, 1925 में आगरा विश्वविद्यालय से पोस्ट ग्रेजुएशन की पढ़ाई पूरी की। कानून में भी प्रशिक्षण करने के बाद उन्होंने गाजियाबाद में अभ्यास किया। 1929 में वे वापस मेरठ चले आए और बाद में कांग्रेस में शामिल हो गए।
राजनीती में आने के बाद का दौर
फरवरी 1937 में वे 34 साल की उम्र में उत्तर प्रदेश (संयुक्त प्रांत) छपरौली (बागपत) की विधानसभा के लिए चुने गए थे। 1938 में उन्होंने विधानसभा में एक कृषि उपज बाज़ार बिल (Agricultural Produce Market Bill) पेश किया जिसका उद्देश्य व्यापारियों की लोलुपता के विरुद्ध किसानों के हितों की रक्षा करना था। इस बिल को भारत के कई सारे राज्यों ने अपनाया था।
आज़ादी की लड़ाई के दौरान वे गांधीजी की विचारधाराओं और उनकी अहिंसा से काफी प्रभावित हुए और फिर उन्होंने भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में प्रवेश किया। भारत की आज़ादी के बाद वे ग्रामीण क्षेत्रों में समाजवाद से जुड़ गए थे।
कांग्रेस छोड़ने के पहले का दौर
1952 में वह उत्तर प्रदेश के राजस्व मंत्री (Revenue Minister) थे और उनका एक प्रमुख योगदान था कि उन्होंने जमींदारी प्रथा को खत्म किया। इसके साथ-साथ वे भूमि सुधार अधिनियम भी लाए। वह नेहरू के समाजवाद (socialism) के विरोधी थे। यह और बाकी कई कारणों के रहते उन्होंने 1967 में कांग्रेस छोड़ दी और भारतीय लोक दल के नाम से अपनी स्वतंत्र पार्टी बनाई।
भारतीय लोक दल के बाद का दौर
1967 में संयुक्त विधायक दल गठबंधन के नेता चुने जाने के बाद पहली बार वे उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने। और फिर सन 1970 में वह दूसरी बार मुख्यमंत्री बने। 1979 में वह भारत के प्रधान मंत्री बने। स्वतंत्रता दिवस के पावन पर्व पर राष्ट्र के नाम भाषण देते हुए उन्होंने भारत भविष्य की बातें की थी। उसमें उन्होंने पाकिस्तान की परमाणु महत्वकांक्षा को भारत के लिए एक बड़ा खतरा बताया था। आगे यह भी कहा कि यदि भारत को विश्व अर्थव्यवस्था में प्रतिस्पर्धी बनना है तो भारतीय श्रम कानूनों (Indian Labour Laws) को रिफाइन करना होगा।
एक राजनितिक होने के अलावा वह एक लेखक भी रह चुके हैं। उन्होंने अपने जीवन में कुछ किताबें लिखी जिसमें से प्रमुख किताबें इकॉनमी ऑफ़ इंडिया और भारत के भविष्य के ऊपर ही थी। उनकी तीन किताबों का नाम है “India’s Economic Policy – The Gandhian Blueprint”, “Economic Nightmare of India – Its Cause and Cure”, और “Cooperative Farming X-rayed” .
क्यों नहीं रह पाए वह प्रधानमंत्री
अफ़सोस की बात यह है कि इतने बुद्धिमान व्यक्ति को ज़्यादा समय के लिए हम हमारे प्रधानमंत्री के रूप में नहीं देख पाए। 1979 में प्रधानमंत्री बने और जनवरी 14, 1980 में वह प्रधानमंत्री पद से हट गए। चरण सिंह ने केवल 23 दिनों के कार्यकाल के बाद 20 अगस्त 1979 को भारत के प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था। ऐसा इसलिए क्योंकि लोकसभा में बहुमत साबित करने से ठीक पहले इंदिरा गांधी ने उनकी सरकार से अपना समर्थन वापस ले लिया था। सिंह एकमात्र ऐसे प्रधानमंत्री हैं जिन्होंने संसद का सामना नहीं किया।
29 मई 1987 को चौधरी चरण सिंह का निधन हो गया था। उत्तरी भारत के कृषक समुदायों के साथ उनके आजीवन जुड़ाव के कारण नई दिल्ली में उनके स्मारक का नाम किसान घाट रखा गया।
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