आज है श्रावण मास का पहला सोमवार, यानि भगवान भोलेनाथ का भक्ति पर्व।
“त्रयंबकम यजामहे सुगंधिम पुष्टिवर्धनम उर्वारुकमेव बंधनान मृत्योरमुक्षिय मामृतात “और ओम नमः शिवाय,हर हर महादेव जुड़े मंत्रों के साथ भगवान शिव की पूजा अर्चना की जाती है।
शास्त्र कहते है कि,” शिवो भूत्वा शिवम् यजेत”यानि ज्ञानदेव शिव की पूजा के लिए भक्त ज्ञान पिपासु होना चाहिए।हिमालय के कैलाश पर्वत पर शिव जी श्वेत धवल गिरिश्रुंग पर विराजमान है।
जिसका अर्थ है ज्ञानी की बैठक शुद्ध होनी चाहिए, जिसके लिए शुद्ध चरित होना आवश्यक है। शिवजी पूजन के समय विष्णु भगवान सहस्त्र कमल अर्पित कर रहे थे, उस वक्त एक कमल कम पड़ने पर भगवान विष्णु ने अपना नेत्र कमल अर्पण किया था, इस रूपक का अर्थ है कि ज्ञान के देव शिव को प्रेम के देव विष्णु की प्रेम नजर की आवश्यकता होती है। अर्थात,बिना प्रेम का ज्ञान जगत को निरानंदी बनाता है। यहां यह उल्लेखनीय है कि सभी धर्म कथाएं एक रूपक होती है,जिनका गूढ़ार्थ समझना आवश्यक होता है।
यह तो शिव को समझने की शुरुआत है। उनके रूप, रंग, उनके आभूषण का गूढ़ अर्थ जबतक समझ में नहीं आयेगा, शिवपूजन अधूरा रहेगा।
शिवजी के इन्ही रूपो को जानने के लिए कीजिए इस श्रृंखला के अगले लेख का इंतजार।
More Stories
The Readers Digest के बेहतरीन 86 साल के सफर का अंत, डिजिटल युग में पत्रिका ने ली अंतिम सांस
आज की बड़ी खबरें – ईरान के राष्ट्रपति इब्राहिम रईसी का हेलिकॉप्टर क्रैश में निधन, 8 राज्यों की 49 सीटों पर वोटिंग
वडोदरा में Madhav Group of companies पर IT के छापे