रूस ने गुरुवार को यूक्रेन के खिलाफ युद्ध शुरू कर दिया है। रूसी सेना यूक्रेन में ताबड़तोड़ बमबारी कर रही है। इतना ही नहीं उसने यूक्रेन के शहरों में कब्जा करना भी शुरू कर दिया है। उधर पूरी दुनिया रूस को तत्काल अपने कदम पीछे खींचने के लिए कह रही है। अमेरिका ने तो रूस को खुलेआम धमकी दी है। लेकिन अब रूस मानने को तैयार नहीं है। पश्चिमी देशों को इस बात की चिंता है कि युद्ध की आग पूरे यूरोप में फैल सकती है। आज हम जानने की कोशिश करते हैं कि आखिर इस झगड़े की जड़ क्या है?
दरअसल, इस झगड़े का वजह NATO (नॉर्थ अटलांटिक ट्रीटी ऑर्गेनाइजेशन) को माना जा रहा है। यूक्रेन नाटो का सदस्य बनना चाहता है और अमेरिका समेत अन्य देश इसका समर्थन करते हैं। जबकि रूस चाहता है कि यूक्रेन नाटो से दूर रहे। रूस चाहता है कि यूक्रेन अथवा अन्य सोवियत संघ के विघटन के बाद बने देशों को कभी नाटो में शामिल होने की मंजूरी न दी जाए। लेकिन अमेरिका समेत पश्चिमी देशों ने कभी इसे स्वीकार नहीं किया।
रूस की NATO से नरफरत क्यों है, यह जानना भी जरूरी है। दरअसल 1939 से 1945 के बीच द्वितीय विश्व युद्ध के बाद सोवियत संघ पूर्वी यूरोप से सेनाएं जमाए था। 1948 में उसने बर्लिन को भी घेर लिया। इसके बाद अमेरिका सोवियत संघ की इस नीति को रोकने के लिए आगे आया। उसने 1949 में NATO का गठन किया। इसमें तब 12 देश शामिल किए। यह देश अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, कनाडा, इटली, नीदरलैंड, आइसलैंड, बेल्जियम, लक्जमबर्ग, नॉर्वे, पुर्तगाल और डेनमार्क थे। आज NATO में 30 देश शामिल हैं।
यूक्रेन पहले सोवियत संघ का हिस्सा था। 1 दिसंबर 1991 को यहां जनमत संग्रह हुआ, जिसमें 90 फीसदी लोगों ने यूक्रेन को अलग करने के पक्ष में वोट दिया। अगले दिन रूस के निवर्तमान राष्ट्रपति बोरिस येल्तसिन ने यूक्रेन को एक अलग देश के तौर पर मान्यता दे दी। तब क्रीमिया को भी यूक्रेन में शामिल रखा गया था।
2008 में यूक्रेन के NATO में शामिल होने की बात चली। अमेरिका ने इसका समर्थन किया। लेकिन रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर (Vladimir putin) पुतिन इसके विरोध में आ गए। इसके बाद NATO ने जॉर्जिया और यूक्रेन को शामिल करने का ऐलान किया। लेकिन रूस ने जॉर्जिया पर हमला कर दिया और 4 दिन में ही उसके दो इलाकों पर कब्जा कर लिया। हालांकि, 2010 में राष्ट्रपति चुने गए विक्टर यानुकोविच ने यूक्रेन के NATO में शामिल होने के प्रस्ताव को खारिज कर दिया।
2019 के चुनाव में यूक्रेन में वोलोदिमीर जेलेंस्की (Volodymyr Zelensky) राष्ट्रपति चुने गए। NATO में शामिल होने की कोशिशें एक बार फिर तेज कर दीं। यूक्रेन के नाटो में शामिल होने की कोशिशें देखते ही रूस भी प्लानिंग में जुट गया। नवंबर 2021 में सैटेलाइट तस्वीरों में यूक्रेन की सीमा पर रशियन आर्मी नजर आई। तब से दोनों देशों के बीच कोल्ड वार जारी था, जो आखिरकार युद्ध में तब्दील हो गया।
रूस के बाद यूक्रेन यूरोप का दूसरा सबसे बड़ा देश है। यूक्रेन के पास काला सागर के पास अहम पोत हैं और इसकी सीमा चार नाटो देशों से मिलती है। यूरोप की जरूरत का एक तिहाई नेचुरल गैस रूस ही सप्लाई करता है और एक प्रमुख पाइपलाइन यूक्रेन से होकर गुजरता है। ऐसे में यूक्रेन पर कब्जे से पाइपलाइन की सुरक्षा मजबूत होगी। इस विवाद की एक वजह आर्थिक है क्योंकि रूस यूनियन का खर्च अपनी दूसरी सबसे बड़ी इकोनॉमी यानी यूक्रेन के बिना नहीं उठा सकता है। कुछ लोग यह राय भी रखते हैं कि रूस चाहता है कि सोवियत संघ के सभी देशों पर उसका कब्जा हो।
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