CATEGORIES

December 2024
M T W T F S S
 1
2345678
9101112131415
16171819202122
23242526272829
3031  
Friday, December 20   10:48:17

विवादों, आरोपों और राजनीतिक नाटकों के बीच समाप्त हुआ संसद का शीतकालीन सत्र

18वीं लोकसभा का शीतकालीन सत्र 20 दिसंबर को समाप्त हो गया, जो 25 नवंबर से शुरू हुआ था। इस सत्र में कुल 20 बैठकें हुईं, जिनमें लगभग 105 घंटे की कार्यवाही चली। लोकसभा की कार्यक्षमता 54% और राज्यसभा की 41% रही। इस दौरान चार महत्वपूर्ण बिल पेश किए गए, लेकिन कोई भी पारित नहीं हो सका। इनमें सबसे चर्चित था “एक देश, एक चुनाव” के लिए प्रस्तावित 129वां संविधान संशोधन बिल, जिसे समीक्षा के लिए एक जॉइंट पार्लियामेंट्री कमेटी (JPC) के पास भेजा गया।

सत्र के दौरान कई महत्वपूर्ण मुद्दों पर विपक्ष ने सरकार को घेरा। सबसे पहले अडाणी मामले पर हंगामा हुआ, जिसके बाद मणिपुर और किसानों के मुद्दे भी संसद में गूंजे। सत्र के आखिरी दिनों में, अंबेडकर के सम्मान को लेकर जमकर विवाद हुआ। 19 दिसंबर को तो मामला धक्का-मुक्की तक पहुँच गया, जिससे दो भाजपा सांसद घायल हो गए। राहुल गांधी के खिलाफ  FIR दर्ज की गई, जिससे राजनीतिक माहौल और भी गरमा गया।

राजनीतिक नाटक का नया मोड़

सत्र के अंतिम दिन 20 दिसंबर को, भाजपा सांसद निशिकांत दुबे ने आरोप लगाया कि राहुल गांधी ने संसद परिसर में भाजपा सांसदों को धक्का दिया, जिससे विवाद और बढ़ गया। इसके जवाब में कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी ने बीजेपी पर झूठी  FIR  दर्ज कराने का आरोप लगाया और कहा कि राहुल गांधी कभी भी किसी को धक्का नहीं दे सकते। प्रियंका ने यह भी कहा कि बीजेपी इस मुद्दे को गुमराह करने के लिए उठा रही है, जबकि असली मुद्दे देशहित से जुड़े हैं, जैसे अडाणी और अंबेडकर का सम्मान।

वहीं, भाजपा ने राहुल गांधी के खिलाफ सख्त कार्रवाई की मांग की। पार्टी ने कहा कि राहुल ने संसद में अभद्र व्यवहार किया, जो निंदनीय है। यह घटना उस समय हुई जब संसद के गेट पर कांग्रेस नेताओं ने प्रदर्शन किया, और बीजेपी ने इसे विपक्ष की गुंडागर्दी करार दिया। दिल्ली में एनडीए सांसदों ने भी कांग्रेस के खिलाफ प्रदर्शन किया।

संसदीय कार्यवाही का हश्र: क्या यह लोकतंत्र के लिए ठीक है?

संसद में हुई इस घटनाक्रम ने पूरे देश का ध्यान अपनी ओर खींचा। सवाल उठता है कि क्या इस तरह के हंगामे लोकतंत्र की गरिमा को नुकसान नहीं पहुँचाते? जहां एक तरफ सरकार पर विपक्ष के मुद्दों को दबाने का आरोप लगता है, वहीं विपक्ष पर भी संसद के भीतर शालीनता की कमी के आरोप लगाए जा रहे हैं। एक लोकतांत्रिक व्यवस्था में संवाद और चर्चा के बजाय इस तरह के विवाद सटीक समाधान की बजाय राजनीति के तामझाम को बढ़ाते हैं।

इस पूरे घटनाक्रम से यह साफ है कि भारतीय राजनीति में आरोप-प्रत्यारोप और शोर-शराबा अब संसद की कार्यवाही का हिस्सा बन चुका है। जबकि देश की जनता को वास्तविक मुद्दों पर चर्चा और समाधान की जरूरत है, हमें उम्मीद करनी चाहिए कि भविष्य में हमारे जनप्रतिनिधि अधिक जिम्मेदारी और परिपक्वता से कार्य करेंगे।

यह सत्र एक ओर जहां कई अहम मुद्दों के बावजूद अपनी कार्यक्षमता में विफल रहा, वहीं दूसरी ओर हंगामों और विवादों का सिलसिला चलता रहा। इस सत्र के समापन ने यह स्पष्ट कर दिया कि भारतीय राजनीति में अब शांति और सहमति से ज्यादा हंगामा और आरोपों का दौर चल रहा है। हमें उम्मीद है कि आने वाले समय में संसद में शांति और स्थिरता लौटे, ताकि लोकतंत्र की मजबूत नींव पर हम एक साथ खड़े रह सकें।