लोकसभा सत्र के दौरान सत्ता पक्ष और विपक्ष के नेताओं के बीच मारपीट होना आम बात है, लेकिन अक्सर ये लड़ाई-झगड़े हिंसक रूप भी ले लेते हैं। इस वक्त जब संसद में बजट सत्र चल रहा है तो सत्ता पक्ष के सांसद अनुराग ठाकुर और विपक्ष के नेता और कांग्रेस सांसद राहुल गांधी के बीच ऐसी ही कुछ तस्वीरें सामने आई।
दरअसल, लोकसभा में राहुल गांधी के भाषण का जवाब देते हुए अनुराग ठाकुर ने राहुल गांधी की जाति को लेकर टिप्पणी की, जिसके बाद लोकसभा में हंगामा हो गया और विपक्ष ने अनुराग ठाकुर के बयान की कड़ी आलोचना की। इस बीच प्रधानमंत्री मोदी ने ट्वीट कर अनुराग ठाकुर के भाषण का वीडियो शेयर किया तो मामला और बिगड़ गया है। फिलहाल विपक्ष ने इस मामले में प्रधानमंत्री के खिलाफ लोकसभा में विशेषाधिकार हनन प्रस्ताव का नोटिस पेश कर दिया है और उन पर संसदीय विशेषाधिकार हनन का समर्थन करने का आरोप लगाया है।
इस मुद्दे पर कांग्रेस सांसद चरणजीत सिंह चन्नी ने भी इस मामले में प्रधानमंत्री के खिलाफ लोकसभा में विशेषाधिकार हनन प्रस्ताव का नोटिस सौंपा है, लेकिन कांग्रेस के लिए इस प्रस्ताव को पारित कराना आसान नहीं होगा, क्योंकि इस तरह की मंजूरी लोकसभा में प्रस्ताव के लिए अध्यक्ष की सहमति की आवश्यकता होती है, जो कांग्रेस के लिए एक समस्या हो सकती है।
क्या है विशेषाधिकार का उल्लंघन ?
विधानसभा और संसद के सदस्यों को कुछ विशेष अधिकार प्राप्त होते हैं, सदन के अंदर जब इन विशेष अधिकारों का उल्लंघन होता है या इन अधिकारों के विरुद्ध कोई कार्य किया जाता है तो इसे विशेषाधिकार का उल्लंघन कहा जाता है। जब सदन का कोई सदस्य कोई ऐसी टिप्पणी करता है जिससे संसद की प्रतिष्ठा को ठेस पहुंचती है तो ऐसी स्थिति में उस सदस्य पर संसद की अवमानना और विशेषाधिकार हनन का मुकदमा चलाया जा सकता है। इस मामले में लोकसभा अध्यक्ष से की गई लिखित शिकायत को विशेषाधिकार हनन का नोटिस कहा जाता है।
कौन देता है अनुमति ?
नोटिस पर स्पीकर की मंजूरी के बाद ही यह प्रस्ताव सदन में लाया जा सकता है। यह प्रस्ताव संसद के किसी भी सदस्य द्वारा पेश किया जा सकता है। लोकसभा नियम पुस्तिका के अध्याय 20 के नियम 222 के साथ-साथ राज्यसभा में अध्याय 16 के नियम 187 विशेषाधिकार को नियंत्रित करते हैं। जिसके मुताबिक, सदन का कोई भी सदस्य अध्यक्ष या स्पीकर की सहमति से विशेषाधिकार हनन के संबंध में सवाल उठा सकता है। संसद सदस्यों को दिए गए विशेषाधिकारों का मूल उद्देश्य सत्ता के दुरुपयोग को रोकना है। भारत की संसदीय प्रणाली में बहुमत का शासन है, लेकिन अल्पमत वोट वाले विपक्षी सदस्य भी जनता द्वारा चुने जाते हैं, इसलिए कोई भी सदस्य सत्ता पक्ष से डरे बिना जनता के लिए अपनी आवाज उठा सकता है।
अब तक पेश किए गए सबसे महत्वपूर्ण विशेषाधिकार प्रस्तावों में से एक 1978 में इंदिरा गांधी के खिलाफ था। तत्कालीन गृह मंत्री चरण सिंह ने आपातकाल के दौरान जातियों की जांच कर रहे एक न्यायाधीश द्वारा की गई टिप्पणियों के आधार पर उनके खिलाफ यह प्रस्ताव पेश किया था। इसके बाद इंदिरा गांधी का सांसद पद रद्द कर दिया गया और उन्हें सत्र चलने तक जेल भेज दिया गया।
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