वाराणसी से एक दर्दनाक घटना सामने आई है, जिसमें गुजराती समुदाय की कुछ महिलाएं पुलिस द्वारा अपनी पटरी दुकानों से हटाए जाने के बाद सर्किट हाउस पहुंची और अपनी व्यथा सुनाई। ये महिलाएं, जो कई वर्षों से सड़क किनारे छोटे-छोटे कारोबार चला रही थीं, अब भूख और बेरोजगारी के कारण सड़कों पर आकर अपनी आवाज़ उठाने को मजबूर हैं।
हम मोदी के गांव से हैं, भीख नहीं मांगते, मेहनत करके खाते है
महिलाओं ने यह कहते हुए अपनी स्थिति को बताया, “हम मोदी के गांव (गुजरात) से हैं। हम भीख नहीं मांगते, मेहनत करके अपना पेट भरते हैं। लेकिन आज मोदी के संसदीय क्षेत्र में हमारी रोजी-रोटी छीन ली जा रही है। हमें अब भीख मांगने पर मजबूर किया जा रहा है। चार दिन से हमारे बच्चों के पास खाना नहीं है, चूल्हा तक नहीं जल रहा है।” उनका यह बयान बयां करता है कि जिस सरकार के तहत वे काम कर रहे थे, अब उसी सरकार से अपनी रोजी-रोटी छीनने का आरोप लगा रही हैं।
किसी भी सरकारी अधिकारी से मदद की उम्मीद नहीं
ये महिलाएं अपने छोटे-मोटे कारोबार से अपने परिवार का पेट पालती थीं। पुलिस द्वारा उन्हें हटाए जाने के बाद से उनका जीवन संकट में आ गया है। रविवार को 15-20 महिलाएं सर्किट हाउस पहुंची और अधिकारियों से मिलने की कोशिश की, लेकिन उन्हें सिपाही ने रोक लिया और कहा कि अधिकारी अभी गए हैं। महिलाओं का कहना है कि वे 10 मिनट पहले आतीं तो शायद उन्हें मदद मिल जाती।
तीन पीढ़ियों से काशी में रह रही महिलाएं
लक्ष्मी और कलावती नामक दो महिलाएं बताती हैं कि उनका परिवार तीन पीढ़ियों से काशी में रह रहा है। उनका परिवार गुजरात के विभिन्न गांवों से आकर काशी के पांडेयपुर इलाके में बस गया था। वे पिछले कई सालों से सड़क किनारे कपड़े, खिलौने, बर्तन और अन्य सामान बेचकर अपना गुजर-बसर कर रही थीं, लेकिन अब पुलिस ने उन्हें यह काम भी नहीं करने दिया। इस कारण उनका परिवार भूखा मरने की कगार पर है।
सिक्योरिटी कारणों से हटाया गया कारोबार
इस घटना के पीछे पुलिस का कहना है कि यह जगह सुरक्षा के लिहाज से संवेदनशील है, क्योंकि यहां वीआईपी मूवमेंट होता है और ट्रैफिक की समस्या भी उत्पन्न हो रही थी। एसीपी कैंट, विदुषा सक्सेना ने बताया कि इस क्षेत्र में भारी ट्रैफिक और जाम की स्थिति को देखते हुए उन महिलाओं को वहां से हटाया गया और कहा गया कि वे कहीं और कारोबार करें।
क्या यह सरकार की जिम्मेदारी नहीं बनती?
यह घटना सिर्फ इन महिलाओं के लिए ही नहीं, बल्कि पूरे समाज के लिए एक गंभीर सवाल है। क्या एक मेहनतकश व्यक्ति को अपनी रोजी-रोटी कमाने से रोकना सही है? मोदी जी का संसदीय क्षेत्र होने के बावजूद इन महिलाओं को न तो कोई सहारा मिला और न ही उनका दर्द सुना गया। आखिरकार, एक सरकार का उद्देश्य जनता की भलाई और उनके रोजगार के अवसरों को सुरक्षित रखना होता है। जब बेरोजगारी और गरीबी की मार पहले ही लोगों पर भारी हो, तो ऐसे कदम और अधिक पीड़ा का कारण बनते हैं।इन महिलाओं की स्थिति हमें यह याद दिलाती है कि विकास और सुरक्षा का मतलब यह नहीं होना चाहिए कि गरीब और मेहनतकश वर्ग को उनके जीविकोपार्जन से वंचित किया जाए। क्या यह नहीं माना जाना चाहिए कि मेहनत और ईमानदारी से कमा रहे लोग भी सम्मान के साथ जीने का हक रखते हैं? अगर सुरक्षा कारणों से किसी इलाके में कारोबार करना प्रतिबंधित है, तो क्या सरकार के पास कोई वैकल्पिक उपाय नहीं होना चाहिए ताकि इन महिलाओं के परिवारों को भूखा न रहना पड़े?
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