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Sunday, December 22   11:55:07

प्रेरणा 2024: दिव्यांगजनों की उपलब्धियों को सलाम, एशिया का सबसे बड़ा महोत्सव तैयार

MSU तकनीकी एवं इंजीनियरिंग संकाय के उभरते इंजीनियर्स”’ प्रेरणा 2024 ”की मेज़बानी करने के लिए पूरी तरह तैयार हैं। यह एशिया का सबसे बड़ा दिव्यांग महोत्सव है, जहां भारत के पहले पैरालंपिक स्वर्ण पदक विजेता मुरलीकांत पेटकर और अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त ड्रमर सौरभ गधवी ने अपनी उपस्थिति की पुष्टि की है। यह महोत्सव 21-22 सितंबर को आयोजित किया जाएगा, जिसमें दिव्यांग प्रतिभाएं अपनी संघर्षगाथा और जीत की कहानियां सुनाएंगी, जो सभी को प्रेरणा देने का काम करेंगी।

छात्र स्वयंसेवक पार्थ वारिया ने बताया, “अल्फ़ाज़ एक प्रेरणादायक टॉक शो है, जिसमें दिव्यांग हस्तियों को आमंत्रित किया जाता है ताकि वे अपने संघर्ष और अनुभव साझा कर सभी प्रतिभागियों को प्रेरित कर सकें।”

मुरलीकांत पेटकर ने 1972 की समर पैरालंपिक्स में जर्मनी के हाइडलबर्ग में स्वर्ण पदक जीता था। उन्होंने 50 मीटर फ्रीस्टाइल स्विमिंग में 37.33 सेकंड का विश्व रिकॉर्ड बनाया था। उसी खेल में उन्होंने भाला फेंक, प्रिसीजन जावेलिन थ्रो, और स्लैलम में भी भाग लिया और सभी तीन प्रतियोगिताओं में फाइनलिस्ट रहे। 2018 में उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया गया।

ड्रमर सौरभ गधवी अपने अनोखे ढंग से ड्रम बजाने के लिए प्रसिद्ध हैं। उन्होंने मात्र 10 साल की उम्र में ड्रम बजाना शुरू किया था और 2019 में अपने बैंड के साथ मैनचेस्टर में अंतरराष्ट्रीय दौरा किया। उन्हें गुजरात सरकार द्वारा स्वरोज़गार दिव्यांग कलाकार पुरस्कार से सम्मानित किया गया है।

इस महोत्सव में एक और प्रतिष्ठित हस्ती समीर कक्कड़ भी शामिल होंगे, जिन्होंने लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड्स, इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्ड्स और यूनिक वर्ल्ड में रिकॉर्ड बनाए हैं। 2019 में वह पहले दिव्यांग अंतरराष्ट्रीय ड्राइविंग लाइसेंस धारक बने थे। 2007 में उन्हें तत्कालीन राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद द्वारा वर्ष के सर्वश्रेष्ठ उद्यमी के पुरस्कार से नवाज़ा गया था।

प्रेरणा 2024 जैसा महोत्सव न केवल दिव्यांगजनों के संघर्षों को सामने लाने का एक सशक्त मंच है, बल्कि यह समाज को यह बताने का भी अवसर है कि आत्मशक्ति और दृढ़संकल्प किसी भी शारीरिक बाधा से कहीं अधिक ताकतवर होते हैं। ऐसे आयोजन समाज में समानता और समावेशन के संदेश को गहरा करते हैं। दिव्यांगजनों की प्रेरणादायक कहानियां हमारे समाज को यह सोचने पर मजबूर करती हैं कि असली विकलांगता शारीरिक नहीं, बल्कि मानसिक होती है।