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World Heritage Day: वड़ोदरा का यह 160 साल पुराना पेड़ है कई सारी बिमारियों का इलाज, जानें इसका इतिहास

पूरी दुनिया में हेरिटेज डे हर साल 18 अप्रैल को मनाया जाता है। हेरिटेज शब्द सुनते ही हमारे दिमाग में बड़ी-बड़ी, काफी सालों पुरानी इमारतों की तस्वीर आ जाती है। हम हेरिटेज हमेशा इमारतों में ढूँढ़ते हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि सिर्फ इमारतें ही नहीं, प्रकृति भी हेरिटेज में गिनी जाती है? अगर हम हमारे पुराने पेड़ों की बात करें तो वह भी उस जगह की धरोहर है। वह भी एक हेरिटेज है।

ऐसा ही प्रकृति से लगाव रखने वाला वड़ोदरा शहर भी एक हेरिटेज पेड़ का घर है। हम बात कर रहे हैं वड़ोदरा के कमाटी बाग में एक पेड़ की जो 160 सालों से भी पुराना है। इस पेड़ का नाम है “हलदरवो” जो एक गुजराती शब्द है। वहीँ हिंदी भाषा में इसे ‘हल्द्वान’ या ‘हल्दू’ भी कहा जाता है। इन नामों को पढ़कर आपको यह तो समझ आ ही गया होगा कि यह सब हल्दी को लेकर रखे गए हैं। इसकी वजह है कि इस पेड़ के अंदर का जो लकड़ा है वह पीले रंग का है।

यह पेड़ दरअसल साउथ ईस्ट एशिया को बिलोंग करता है। यह पेड़ ज़्यादातर वहां पाया जाता है जहाँ सूखे हुए, पतझड़ वाले जंगल हो। इस पेड़ के पत्ते हार्ट के आकर के हैं, जिसके ऊपर फिर इसका साइंटिफिक नाम भी रखा गया है। इसके पत्ते और इसके बीज-फल, सब एक दवाई की तरह काम करते हैं।

कमाटी बाग 140 साल पुराना है, और यह पेड़ 160 साल। यानी कमाटी बाग से भी ज़्यादा पुराना यह पेड़ है। पहले शायद यहाँ एक जंगल हुआ करता था। और फिर जब यह गार्डन बना तो जो यहां के नेटिव पेड़ थे उन्हें वैसा का वैसा ही छोड़ दिया गया। यह अंदाज़ा इसलिए लगाया जा रहा है क्यूंकि यह पेड़ किसी गार्डन में नहीं पाया जाता।

जैसा कि पहले बताया था कि इस पेड़ के पत्तों, फल-बीज और तने का इस्तेमाल दवाइयों के रूप में भी किया जाता है। तो ऐसी कौनसी बीमारियां हैं जिसे यह पेड़ ठीक कर सकता है ? तो आपको बता दें कि इसका जो तना है उसे हमारी डाइजेशन के लिए इस्तेमाल किया जाता है। एसिडिटी से लेकर अल्सर तक, इसके बार्क का उबला हुआ पानी सारी पेट की परिशानियाँ दूर कर सकता है।

वैसी ही इसके जो पत्ते हैं वह हमारे फीवर को कम करने के लिए इस्तेमाल होते हैं। स्किन की कोई भी बीमारी को इसके फूल और बीज ठीक कर सकते हैं। इनका पाउडर बनाकर इस्तेमाल करने से यह बीमारी दूर होती है।

कमाटी बाग़ में यह हल्दू के सिर्फ 2 या 3 पेड़ मौजूद है। बाकी वड़ोदरा में भी इसकी संख्या कम ही है। क्यूंकि यह एक देसी पेड़ है, हमारे यहाँ का लोकल पेड़ है, इसलिए यह धरती को भी नुकसान नहीं पहुंचाता है। आजकल जो हम बाहर के देशों से पेड़ लेकर आते हैं वह हमारी धरती को कहीं न कहीं नुक़सान पहुंचाते हैं। इसलिए इस हेरिटेज डे हमें कोशिश करनी चाहिए कि हमारे जो नेटिव पेड़-पौधे हैं उन्हें हम सुरक्षित रखें।