हालही में ओडिशा के बालासोर में हुए ट्रेन हादसे के बाद भारतीय रेलवे ने जानमाल के नुकसान को रोकने के लिए कवायद शुरू कर दी है। रेलवे ने आमने-सामने की टक्कर और सिग्नल जंपिंग जैसी घटनाओं को रोकने के लिए ट्रेनों की शील्डिंग तकनीक से लैस किए जाने की प्लानिंग कर रहा है। इसके लिए पश्चिम रेलवे ने कवायद शुरू कर दी है। संभवना है कि इसका लाभ आने वाले साल के मार्च कर मिल सकता है।
मार्च तक कुल 90 इंजनों को किए जाने का लक्ष्य
पश्चिम रेलवे के दायरे में कुल 735 किलोमीटर का रूट आता है। इसे जल्द ही शील्ड सिस्टम से लैस करने की तैयारी की जा रही है। गुजरात में अब तक 142.7 किमी रूट पर कवर किया गया है।
पश्चिम रेलवे के सीपीआरओ, सुमित ठाकुर ने इस बारे में जानकारी देते हुए बताया कि पश्चिम रेलवे का कुल 735 किमी मार्ग में से 142.7 किमी की शील्ड सुविधा सफलतापूर्वक पूरी कर ली गई है। मार्च तक 250 किमी मार्ग को सुसज्जित करने का लक्ष्य है। साथ ही 20 इंजनों को बख्तरबंद किया गया है।
शील्ड सिस्टम कैसे रोकता है रेल दुर्घटनाएं
शील्ड सिस्टम रेलवे की एक स्वचालित ट्रेन सुरक्षा प्रणाली है। ट्रेनों, पटरियों, रेलवे सिग्नल सिस्टम और एक किलोमीटर की दूरी पर हर स्टेशन पर रेडियो फ्रीक्वेंसी पहचान उपकरण लगाए जा रहे हैं जिससे ट्रेन दुर्घटनाग्रस्त न हो या आमने-सामने की टक्कर न हो। एक ही ट्रैक पर दो ट्रेनें आने पर यह डिवाइस अलर्ट कर देगी।
इतना ही नहीं इस सिस्टम का ट्रायल भी हो चुका है। सूरत से वडोदरा सेक्शन पर शील्ड सुविधा का परीक्षण किया गया, जो सफल रहा है।
यदि कोई पायलट कोई सिग्नल जंप करता है तो शील्ड सिस्टम सक्रिय हो जाएगा। शील्ड सिस्टम एक्टिवेट होते ही ट्रेन पायलट को अलर्ट मिल जाता है। इतना ही नहीं शील्ड सिस्टम ट्रेन के ब्रेक को भी नियंत्रित करता है। यदि शील्ड सिस्टम को पता चल जाए कि ट्रैक पर दूसरी ट्रेन आ रही है तो यह पहली ट्रेन की गति को भी रोक देगा और दुर्घटनाओं से बचाएगा।
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