गीता जयंती, भारत की महान सांस्कृतिक और आध्यात्मिक धरोहर, का वह पावन दिन है जब श्रीमद्भगवद्गीता का उपदेश भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को कुरुक्षेत्र के युद्धभूमि में दिया था। यह दिन मार्गशीर्ष माह की शुक्ल पक्ष की एकादशी को मनाया जाता है। गीता न केवल एक धार्मिक ग्रंथ है, बल्कि यह जीवन जीने की कला और जीवन के गूढ़ रहस्यों को समझाने वाला अद्वितीय ग्रंथ है।
श्रीमद्भगवद्गीता का महत्व
गीता जीवन के हर पहलू को छूती है—धर्म, कर्म, योग, और भक्ति। इसमें 700 श्लोक हैं, जिनमें श्रीकृष्ण ने अर्जुन के मन में उठे हर संदेह का समाधान करते हुए उन्हें कर्तव्यपथ पर चलने की प्रेरणा दी। यह ग्रंथ हमें सिखाता है कि हर परिस्थिति में हमारा कर्तव्य क्या है और हमें कैसे अपने कर्मों का निर्वाह करना चाहिए।
श्रीकृष्ण के उपदेश: जीवन के लिए मार्गदर्शक
- कर्म का सिद्धांत (कर्मण्येवाधिकारस्ते)
श्रीकृष्ण ने अर्जुन को बताया कि व्यक्ति को सिर्फ कर्म करने का अधिकार है, लेकिन फल की चिंता नहीं करनी चाहिए। यह सिखाता है कि मेहनत और ईमानदारी से काम करना ही हमारे जीवन का मुख्य उद्देश्य होना चाहिए। - स्वधर्म का पालन
श्रीकृष्ण ने कहा कि स्वधर्म का पालन करना ही सच्चा धर्म है। हर व्यक्ति को अपने कर्तव्यों को पूरी निष्ठा से निभाना चाहिए, चाहे परिस्थितियां कितनी भी कठिन क्यों न हों। - संतुलित जीवन का महत्व
गीता हमें सिखाती है कि न तो अधिक भोग में लिप्त होना चाहिए और न ही कठोर तपस्या में। जीवन में संतुलन बनाए रखना ही सच्चा योग है। - भय को त्यागें
श्रीकृष्ण ने अर्जुन को सिखाया कि भय और शंका को त्यागकर, मन को स्थिर करके जीवन के कठिन निर्णय लेने चाहिए। आत्मविश्वास और धैर्य से हर समस्या का समाधान संभव है। - अहम त्याग और समर्पण
भगवान ने कहा कि हर कार्य में ईश्वर को समर्पित भावना होनी चाहिए। अपने अहंकार को त्यागकर और सभी में ईश्वर को देखने का भाव रखने से ही सच्ची भक्ति प्राप्त होती है।
गीता जयंती का उत्सव
इस दिन मंदिरों और आश्रमों में गीता पाठ का आयोजन किया जाता है। भक्तजन श्रीकृष्ण को समर्पित भजन-कीर्तन करते हैं और उनके उपदेशों का स्मरण करते हैं। गीता का प्रचार-प्रसार करते हुए इसे लोगों के जीवन में अपनाने के लिए प्रेरित किया जाता है।
आधुनिक जीवन में गीता की प्रासंगिकता
आज के व्यस्त और तनावपूर्ण जीवन में गीता के उपदेश पहले से कहीं अधिक प्रासंगिक हैं। यह हमें न केवल मानसिक शांति देती है, बल्कि जीवन के हर संघर्ष से लड़ने की प्रेरणा भी।
निष्कर्ष
गीता जयंती हमें यह याद दिलाती है कि जीवन में धर्म, कर्म और ज्ञान का संतुलन बनाए रखना कितना आवश्यक है। श्रीकृष्ण के उपदेश हमें सिखाते हैं कि सही मार्ग पर चलकर ही जीवन को सार्थक बनाया जा सकता है। आइए, इस पावन दिन पर हम सभी गीता के उपदेशों को अपने जीवन में अपनाने का संकल्प लें और जीवन को नई दिशा दें।
“यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत। अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्॥”
(जब-जब धर्म की हानि होती है और अधर्म बढ़ता है, तब-तब मैं अपने आप को प्रकट करता हूं।)
जय श्रीकृष्ण!
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