CATEGORIES

November 2024
M T W T F S S
 123
45678910
11121314151617
18192021222324
252627282930  
Saturday, November 23   6:59:28
kamil bulke

हिंदी के तुलसीदास, रामभक्त हिंदी के भेखधारी फादर कामिल बुल्के, “भारतीय संस्कृति, भाषा,को समर्पित व्यक्तित्व”

जन्म से विदेशी लेकिन भारत भूमि पर हिंदी भाषा और भारतीय संस्कृति को समर्पित फादर कामिल बुल्के को सादर प्रणाम करते है।

विदेशी होने के बावजूद सच्चा देशभक्त, हिंदुस्तानी संस्कृति को समर्पित रामभक्त के नाम से जाने जाते फादर डॉक्टर कामिल बुल्के की आज पुण्य तिथि है।जिन्हें प्यार से बाबा बुल्के भी पुकारा जाता है। उन्होंने अपना पूरा जीवन भारतीय संस्कृति,संस्कृत और हिंदी भाषा को समर्पित किया।वे भगवान राम के परम भक्त थे।

यूरोप के शांत और हरी भरी घाटियों की समृद्धि से संपन्न देश बेल्जियम के एक छोटे से गांव में एडोल्फ बुल्के और मारिया के घर उनका जन्म हुआ। सातवें महीने में जन्मे कामिल की बचने की उम्मीद बहुत ही कम थी, पर मौत से जिंदगी जीत गई।पारिवारिक परंपरा अनुसार उन्हें उनके बड़े चाचा कामिल का नाम मिला।प्रथम विश्वयुद्ध के समय उनके पिता भी फौज में भर्ती हो गए।बचपन मुश्किलों में बीता।कामिल बुल्के को चर्च बहुत पसंद था।वे रोज वहा जाते।

कामिल तब इंजीनियर बनना चाहते थे ।पढ़ाई भी शुरू की पर एक दिन उनके अंदर संन्यासी बनने की भावना उदित हुई ,और परिवार की उन्हें मंजूरी मिली। उनमें जीवनदर्शन को लेकर कई सवाल थे। इन सवालों को खोजने उन्होंने कई भाषाएं सीखी। 1934 तक वे धर्मगुरुओं द्वारा सम्मानित हो चुके थे।उन्होंने हिंदुस्तान आने का फैसला किया। उस समय भारत में ब्रिटिश शासन था।वे जब मुंबई बदरगाह पहुंचे तो उन्होंने धरती को प्रणाम किया और रांची के लिए रवाना हुए।

उन्होंने दार्जिलिंग और गुमला में बच्चो को पढ़ाया।वे क्लास में बच्चो के साथ बैठकर बच्चों के साथ हिंदी,भोजपुरी ,अवधि सीखे।हिंदी,संस्कृत के प्रति उनकी ममता विशेष थी।रामचरित मानस ने उनके जीवन की दिशा ही बदल दी। 1939 में उन्हें मिशन ने फादर का पद दिया। इलाहबाद यूनिवर्सिटी से उन्होंने प्रोफेसर धीरेंद्र शास्त्री के मार्गदर्शन में “रामकथा उत्पत्ति और विकास”विषय के साथ एम फिल किया।

हिंदी में शब्दकोश और शोध कार्य के लिए उनका विशिष्ट योगदान रहा। 40,000 शब्दों के पर्याय और अंग्रेजी शब्दों के साथ हिंदी शब्दकोश 5 साल की कड़ी मेहनत के बाद लिखा। आज भी यह शब्दकोश उतना ही महत्वपूर्ण है। अब तक इसके कई संस्करण प्रकाशित हो चुके हैं।रांची की सेंट जेवियर्स कॉलेज के हिंदी विभाग के अध्यक्ष रहे डॉक्टर फादर कामील बुल्के हिंदी के तुलसीदास,रामभक्त,रामकथा लेखक के रूप में जाने गए।

उनकी उम्र 65 वर्ष की हो चुकी थी, शरीर ने जवाब देना शुरू कर दिया था ,लेकिन फिर भी वह जिंदगी से 5000 घंटे अपने कार्य को पूरा करने के लिए मांग रहे थे। पर निश्चित नियति के आगे कोई कुछ नहीं कर सकता ।उन्होंने अपनी आखिरी सांस तक हिंदी को जिया। 72 वर्ष की आयु में दिल्ली की AiiMs हॉस्पिटल में 17 अगस्त 1982 के दिन उन्होंने इस फानी दुनिया से विदा ली।हिंदी भाषा और संस्कृति को समर्पित ऐसा युगपुरुष का जाना देश के लिए एक बहुत बड़ा लॉस है।उनके हिंदी के प्रति योगदान का देश ऋणी रहेगा।

रांची उनकी कर्मभूमि रही इसीलिए 18 मार्च 2018 के रोज दिल्ली से उनके अवशेष रांची ले गए,जिनका लोगो ने आंसू भरी आंखों से स्वागत किया।इन अवशेषों को कॉलेज के परिसर में ही अंतिम विराम दिया गया।