Akshaya Tritiya: अक्षय तृतीया, हिंदू कैलेंडर में एक महत्वपूर्ण त्योहार है, जो वैशाख मास की शुक्ल पक्ष की तीसरी तिथि को मनाया जाता है। इसे त्रेता युग और सत्य युग की शुरुआत का दिन माना जाता है। इस दिन भगवान विष्णु ने नर-नारायण अवतार लिया था और भगवान परशुराम का जन्म हुआ था। लेकिन, जैन धर्म में अक्षय तृतिया का पर्व मनाने की परंपरा बिल्कुल अलग है।
जैन धर्म के अनुसार इस दिन को श्रमण संस्कृति के साथ युग का प्रारंभ माना जाता है। भरत क्षेत्र में युग का परिवर्तन भोग भूमि व कर्मभूमि के तौर पर हुआ था। भोग भूमि में कृषि व कर्मों की कोई आवश्यकता नहीं। उसमें कल्प वृक्ष होते थे, जिनके मांगी गई हर मुराद पूरी होती थी।
जैन धर्म की मान्यता के अनुसार, भगवान ऋषभनाथ जिन्हें प्रथम तीर्थंकर के रूप में माना जाता है ने एक साल की तपस्या करने के बाद वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि अर्थात अक्षय तृतीया के दिन इक्षु रस (गन्ने का रस) से अपनी तपस्या का पारण किया था। इस लिए जैन समुदाय में यह दिन विशेष माना जाता है। इसी मान्यता को लेकर हस्तिनापुर में आज भी अक्षय तृतीया का उपवास गन्ने के रस से तोड़ा जाता है। यहां इस उत्सव को पारण के नाम से जाना जाता है। हिन्दू धर्मावलंबी भगवान ऋषभनाथ को भगवान विष्णु का अवतार मानते हैं।
इस दिन को जैन धर्म की स्थापना का भी दिन माना जाता है। अक्षय तृतीया के अवसर पर जैन धर्म के अनुयायी भगवान ऋषभनाथ की पूजा-अर्चना करते हैं, व्रत रखते हैं, दान-पुण्य करते हैं, और जय जिनेंद्र मंत्र का जाप करते हैं।
इस दिन किए जाने वाले कुछ प्रमुख अनुष्ठान:
भगवान ऋषभनाथ की प्रतिमाओं का अभिषेक: जैन मंदिरों में भगवान ऋषभनाथ की प्रतिमाओं का अभिषेक किया जाता है।
व्रत: जैन धर्म के अनुयायी अक्षय तृतीया का व्रत रखते हैं।
दान-पुण्य: गरीबों और जरूरतमंदों को भोजन, वस्त्र, और दान-दक्षिणा दी जाती है।
मंत्र का जाप: जैन धर्म के अनुयायी मंत्र का जाप करते हैं।
अक्षय तृतीया जैन धर्म के अनुयायियों के लिए एक महत्वपूर्ण त्योहार है जो उन्हें भगवान ऋषभनाथ के जीवन और शिक्षाओं को याद करने और उनका पालन करने की प्रेरणा देता है।
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