( ब्रजेश राजपूत )
01-08-22
गजल का नाम लेते ही जेहन में नाम आता है जगजीत सिंह का। जगजीत सिंह को इस दुनिया से गये तीन महीने बाद ग्यारह साल हो जायेंगे मगर लगता ही नहीं कि वो इस संसार में नहीं है क्योंकि हर दूसरे तीसरे दिन उनकी आवाज में गायी गजल सुनने या गुनगुनाने को मिल जाती है। ऐसे में जब पत्रकार राजेश बादल अपनी किताब का नाम कहां तुम चले गये दास्तान ए जगजीत लिखते हैं तो मन में ऐतराज सा जागता है और दिल कहता है जगजीत कहीं नहीं गये वो यहीं हैं।
जगजीत सिंह की जिंदगी से जुड़े किस्सों की ये किताब की जरूरत लंबे समय से महसूस की जा रही थी। क्यूंकि जगजीत सिंह ने गजल को प्राइवेट पार्टियां और कुछ खास लोगों की बैठक से निकाल कर बडे मंच और फिल्मी पर्दो तक पहुंचाया फिर आम जनता के इस प्रिय गायक की जिंदगी पर लिखा पढा जाने लायक इतना कम क्यूं हैं। ये किताब इस कमी को कुछ हद तक पूरी करती है। राजस्थान के श्रीगंगानगर के सिख अमर सिंह और बच्चन कौर के सात बच्चों के परिवार में आठ फरवरी 1941 को जगमोहन का जन्म होता है। जिसका नाम परिवार के गुरुजी के कहने पर जगजीत सिंह हो जाता है। और यही जगजीत श्रीगंगानगर के स्कूली पढ़ाई कर कालेज में पढने जालंधर जाता है और बाद में मुंबई पहुंचकर फिल्मों में गायन में किस्मत आजमाते आजमाते हुये फिल्म और गायकी की दुनिया में बेशुमार नाम कमाता है। जगजीत सिंह को उनके पिता ने बचपन से ही गुरु वाणी और शबद गाने के लिये शास्त्रीय संगीत की शिक्षा और संस्कार डलवाए थे। यही वजह थी कि जब जगजीत की गायकी की रेंज बहुत विस्तृत और कई दफा चौंकाने वाली होती है। लोग कहते हैं कि इस जगजीत को तो हमने पहले कभी सुना ही नहीं। जगजीत के मुंबई के संघर्ष के किस्से उस दौर के साथी उनसे किये वायदे सब कुछ को इस किताब में अच्छे से पिरोया गया है। लेखक ने बताया है कि उस दौर के सभी बड़े कलाकार जगजीत को अपने घर की प्राइवेट पार्टियों में गवाने के लिये तो बुलाते थे मगर काम नहीं देते थे। जगजीत ने मुंबई में अपने शुरुआती दिन इन्हीं पार्टियों में गाकर नाच कर गुजारे। वो अपने दोस्तों से कहते थे यार ऐसी पार्टियों में इसलिये जाता हूं कि खाना पीना मिल जाता है ओर थोडी बडे लोगों से पहचान बढ जाती है मगर काम मिलना कठिन होता है। मगर उनकी प्रतिभा ज्यादा दिन छिपी नहीं रह सकी। पहले कुछ फिल्मी गाने एक दो फिल्म में थोडा बहुत काम ओर बाद में वो जब गजल की दुनिया में उतरे तो जगजीत कर ही लौटे। जगजीत को गुलजार गजलजीत सिंह ही कहा करते थे। इस किताब में जगजीत सिंह के पारिवारिक जीवन के सुख दुख का भी बेहद संजीदगी से चित्रण किया गया है। चित्रा से मुलाकात, चित्रा की पुरानी जिंदगी, इस जोडी के जवान बेटे विवेक की मौत के बाद परिवार में आया गम और उस गम से उबरना जगजीत सिंह की जिंदगी के इन उतार चढाव को भी लेखक ने विस्तार से लिखा है जो कई जगह दिल को छू जाता है।
जगजीत सिंह की सबसे बडी उपलब्धि यही रही कि उन्होने गजल गायकी में ढेर सारे प्रयोग कर उसे इतना आसान और कर्णप्रिय कर दिया कि अमीरों की गजल आम जनता की हो गयी। जगजीत के सारे अलबमों की खासियत उनकी आसान और सुरीली गजलें रहीं जो आज भी गुनगुनायी जा रहीं है। इस किताब में जगजीत की गायकी के अलावा उनकी जिंदादिली और उदारता के भी किस्से हैं। जगजीत कैसे मुंबई की सड़कों पर मदद करने निकलते थे और बेटी की शादी के नाम पर कार्यक्रम का निमंत्रण देने वालों को मिठाई के डिब्बे में रूपये लेकर विदा कर देते थे। जगजीत सिंह का हार्स रेसिंग का प्रेम उनके नये गायकों और शायरों से रिश्ते की भी इस किताब में विस्तार से की गयी है। राजेश बादल ने जगजीत की जिंदगी से जुडे अनेक लोगों से मिलकर जो किस्से कहानियां जुटाये हैं वो इस किताब की जान है। जगजीत सिंह के पुराने रिकार्ड्स और अलबम के बारे में भी लेखक ने अच्छी जानकारी जुटाई गयी है।
दरअसल लेखक राजेश बादल ने अपने राज्यसभा टीवी के दिनों में जगजीत सिंह पर जब फिल्म बनाई थी उस दौरान हुयी उनकी रिसर्च इस किताब के काम आयी ओर इस किताब की भाषा भी बहुत कुछ चित्र वाली है। इस किताब में जगजीत सिंह की जिंदगी से जुडे कुछ अच्छे और दुर्लभ फोटोग्राफ भी हैं। इस तरह से राजेश बादल की ये किताब कहां तुम चले गये जगजीत सिंह के चाहने वालों के लिये बेशकीमती तोहफे से कम नहीं है।
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