CATEGORIES

January 2025
M T W T F S S
 12345
6789101112
13141516171819
20212223242526
2728293031  
Saturday, January 18   2:00:50

बेटी से बहू बनी बेटी की कहानी “वो सुबह कभी तो आयेगी”

एक लड़की जब जन्म लेती है तो उसे जन्म से ही माता पिता पराई अमानत मान लेते है। थोड़ा बड़ी होते ही तीन जन्मों के लिए उसे तैयार करना शुरू कर दिया जाता है।

कहते हैं एक लड़की के तीन जन्म होते हैं पहला जब वो पैदा होती है, दूसरा जब उसकी शादी होती है और तीसरा जब वो पहली बार मां बनती है। वैसे तो पुरुषों को एक जन्म भारी पड़ता है, लेकिन लड़कियां ये तीनों जन्म हंसते-हंसते काट लेती हैं।

लड़की की उम्र होते ही शादी कर दी जाती है। जब वो सपनों की पोटली बांधे ससुराल की दहलीज पर कदम रखती है , तब उसके जेहन में कई सवाल हलचल मचा रहे होते हैं ,पति कैसा होगा ? सास ससुर कैसे होंगे ? लेकिन सपनों के उलट जब असलीयत सामने आती है तो , वह टूटसी जाती है।

पुरुष प्रधान समाज में पति को परमेश्वर कहा जाता है। पत्नि के लिए पति ही सब कुछ होता है। लड़की शादी के बाद अपने पति में ही पिता और दोस्त का चेहरा ढूँढती है। वो अपना सुखदुख उससे बांटना चाहती है, लेकिन कहीं न कहीं एक डर सताता है की “वो क्या सोचेंगे ” ? ——–इसी सोच के साथ वो घुट-घुट के जीने पर मजबूर हो जाती है।

शादी से पहले वह किसी राजकुमारी की तरह आराम से उठती थी,मां को चाय बनाने के ऑर्डर दिया करती थी, वही लड़की शादी के बाद आर्डर देने वाली नहीं बल्कि आर्डर लेने वाली बन जाती है। ससुर, ननद, पति, देवर सभी घर की बहू से यहीं उम्मीद लगाए बैठते हैं कि अब सुबह जल्दी ही गरम-गरम नाश्ता मिलेगा।

उस पर भी अगर लड़की जॉब या बिजनेस भी कर रही हो तब तो जिम्मेदारियों का बोझ दुगना हो जाता है और यदि एक बच्चा भी हो गया हो तो लड़की पूरी तरह अपनी खुवाइशों और सपनों को,अपनों को समर्पित कर देती है।

एक ओर घर पर सभी का ख्याल रखना। यदि बच्चा है तो उसकी जरूरतों की सारी चीजे पहले से तैयार कर के जाना। और फिर ऑफिस जा कर अपने कर्तव्यों का पालन करना। इन सब के जंजाल में पड़कर एक लड़की की जिंदगी वहीं खत्म हो जाती है। और जब वह थक हार कर घर आती है तो अपने बच्चे को गोद में लेकर उसकी सारी तकलीफे छूमंतर हो जाती है। थककर घर आने के बाद भी वो अपने घर पर पूरे परिवार के साथ समय बिताती है। शाम के खाना बनाकर टेबल पर पहुंच जाती है। अपने बच्चे को खिलाती पिलाती है।

दिन कहां खत्म हो जाता है, पता ही नही चलता। जब दुनिया नींद की आगोश में होती है, तब वह बिस्तर के एक कोने पर लेटी हुई मलाल करती रहती है कि क्या यही है ज़िंदगी? आजाद सोच के साथ जीने की चाहत लिए अंधेरे कमरे में वह कैद होकर रह जाती है। जहां से निकल पाना असम्भव है। शादी के वक्त साथ में लाई सपनो की पोटली तो जैसे हवा ही हो गई है। “वो सुबह कभी तो आएगी….” की आस में अंधेरे के छटने और नए सूरज के उगने का इंतजार रह जाता है। इस नई सुबह की आस में वह फिर से दिन उगते ही जिंदगी की गाड़ी ढकेलने लगती है।