CATEGORIES

May 2024
MTWTFSS
 12345
6789101112
13141516171819
20212223242526
2728293031 
May 18, 2024

अनुकंपा और भक्त के प्रति स्नेह का नाम… आदिदेव महादेव

06 Mar. Vadodara: भगवान शिव की लीला अपरम्पार है।भगवान शिव की कई कथाएं कर व्रत है ,जो भक्तो को शिवमय करती है।

कहा जाता है कि पिता के घर पुत्री को आमंत्रण ना हो तो पुत्री को नहीं जाना चाहिए, इस बात को सिद्ध करती है भगवान शिव की यह कथा।

भगवान शिव का विवाह दक्ष प्रजापति की पुत्री सती से हुआ था।यह विवाह सती के, शिव के प्रति प्रेम एवम भक्ति के कारण हुआ था।लेकिन इस विवाह से दक्ष प्रजापति खुश नही थे।वे अपनी अन्य पुत्रियों और दामादों को शिव और सती के मुकाबले ज्यादा प्यार करते थे ,और सम्मान देते थे।लेकिन इससे शिव और सती को कोई फर्क नहीं पड़ता था।

एक समय की बात है, कनखल में रहते दक्ष प्रजापति ने एक भव्य यज्ञ का आयोजन किया। जिसमें अपनी सभी पुत्रियों और दामादो को बुलाया।सभी के लिए यज्ञशाला में विशिष्ट आसन थे, लेकिन उन्होंने सती को इस यज्ञ में आने का आमंत्रण नहीं भेजा, और शिव का स्थान भी नहीं रखा था।

इधर जब सती को पता चला कि उनके पिता एक भव्य यज्ञ कर रहे हैं, तो उन्होंने भगवान शिव से कहा कि वे पिता के वहां जाना चाहती है, और दामाद के रूप में भगवान शिव भी उनके साथ चलें। लेकिन भगवान शिव ने उन्हें समझाया कि तुम्हारे पिता ने हमें आमंत्रण नहीं भेजा है, इसलिए हमें नहीं जाना चाहिए। लेकिन सती ने अपनी बात नहीं छोड़ी, और कहा कि पिता के घर पुत्री को जाने के लिए आमंत्रण की जरूरत नहीं है। यह कहकर वे अपने पिता दक्ष प्रजापति के महल में यज्ञ सभा में पहुंची। यज्ञ सभा में उन्होंने देखा कि सभी के लिए आसन है, लेकिन भगवान शिव के लिए कोई आसन नहीं है।

इससे वे बहुत नाराज हुई, और पिता से कहा कि पति के ना कहने के बावजूद भी यहा आकर उन्होंने गलती की है। वे वापस नही जाएंगी , यही पर देहत्याग करेंगी। उन्होंने योग से अपने दाहिने पैर के अंगूठे से अग्नि प्रज्वलित की और उसी अग्नि में विलीन हो गई। और यज्ञ भंग किया। शिव ने उनके साथ नंदी को भेजा था।

नंदी ने आकर शिवजी को सारी घटना कह सुनाई। शिव क्रोधित होकर दक्ष प्रजापति के समारोह में पहुंचे, पूरी यज्ञशाला और सभी कुछ तहस नहस कर दिया।वे सती के मृत देह को कंधे पर लेकर विषादयुक्त हो त्रिलोक में भटकने लगे। उनकी इस दशा से देवतागण दुखी हुए, और भगवान विष्णु से इसका उपाय पूछा। भगवान विष्णु स्वयं शिवजी के पीछे पीछे गए और सती के अंगों को बाण से नष्ट करने लगे। जहां जहां यह अंग गिरे वहां वहां आज शक्तिपीठ है।शिवजी अत्यंत दुखी थे ,वे सबसे अलिप्त होकर तपस्यालीन हो गए।