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Saturday, March 1   1:12:08

दिल का दर्द लफ्जों में पिरोने वाले शायर, साहिर

आज हम बात करेंगे एक ऐसी शख्शियत की,जिसने बॉलीवुड को खूबसूरत, अविस्मरणीय गीतों का खजाना दिया। जी हां,वो शख्शियत है साहिर लुधियानवी।

साहिर लुधियानवी एक ऐसा व्यक्तित्व, जिसका जीवन संघर्षमय रहा ,गरीबी के दौर से गुजरे, प्यार परवान ना चढ़ सका,लेकिन ये सभी दर्द उनके गीतों की रूह बन गए। और ये गीत,नगमे,गजले,शेर ने महफिलें लूट ली। उनके गीत लोगो के दिल को आज भी झिंझोड़ते है।
प्रसिद्ध शायर गीतकार साहिर लुधियानवी का का जन्म लुधियाना में धनवान माता पिता सरदार बेगम और फायल मोहम्मद के घर 8 मार्च 1921 को हुआ।उनका मूल नाम अब्दुल हयि फजल मोहम्मद था। वे महज 6 महीने के थे तभी उनके माता-पिता के बीच मनमुटाव हुआ, और वे अलग हो गए। और फिर जिंदगी ने उन्हें धन दौलत से नहीं नवाजा।
तखल्लुस साहिर था ,अतः वे साहिर लुधियानवी के नाम से प्रसिद्ध हुए।
प्रेम के मामले में हारे साहिर का दर्द उनकी रचनाओं में झलकता है। 1939 में कॉलेज की पढ़ाई के दौरान अमृता प्रीतम से उन्हें प्रेम हुआ। कॉलेज में वह अपने शेरो शायरी के लिए बहुत मशहूर थे । अमृता उनकी प्रशंसक थी, लेकिन क्योंकि वे मुस्लिम थे और गरीब भी थे ,इसलिए अमृता प्रीतम के परिवार ने इस प्यार को नहीं अपनाया। लेकिन, दोनो के बीच की कोशिश उम्रभर रही। अमृता प्रीतम ने उनके प्रति अपने प्यार को स्वीकार किया है। उनकी कर्मभूमि लाहौर और मुंबई रही। मुंबई में सुधा मल्होत्रा उनकी जिंदगी में आई, लेकिन यह प्यार भी शादी तक नहीं पहुंचा।उन्होंने ताउम्र शादी नही की।बाद में शराब की लत और सिगरेट उन्हें अंदर से खोखला बनाती गई। विषाद, निष्फल प्रेम,और गरीबी ने उन्हें तोड़ दिया।

1943 में जब वे लाहौर में थे, तब उनका पहला काव्य संग्रह “तल्खियां” प्रसिद्ध हुआ। बाद में वे लाहौर और फिर मुंबई में कई पत्रिकाओं के संपादक रहे। मुंबई की उर्दू पत्रिका शाहराह और प्रीतलड़ी के वे संपादक रहे।देश की आजादी और स्वतंत्रता को लेकर काफी भावुक थे ।उन्होंने आजादी की राह में कई गीत लिखे, जो काफी प्रसिद्ध हुए। जिसमे प्यासा, फिर सुबह होगी ,के गीत काफी परिचित है।
उनके अनेकों गीत आज भी हम गुनगुनाते है,मसलन… अल्लाह तेरो नाम ईश्वर तेरो नाम, चलो एक बार फिर से अजनबी बन जाए हम दोनों, मैं पल दो पल का शायर हूं, यह दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है ,ईश्वर अल्लाह तेरो नाम, कभी-कभी मेरे दिल में ख्याल आता है ,कभी खुद पे कभी हालात पे रोना आया ,गम और खुशी में फर्क ना महसूस हो जहां जैसे अनेकों गीत आज की पीढ़ी भी पसंद करती है।
,”दबेगी कब तलक आवाज ,हम भी देखेंगे”..लाहौर की पत्रिका में छपी उनकी इस कविता से नाराज़ पाकिस्तान सरकार ने उन्हें देश छोड़ने मजबूर किया।
“दुनिया ने तजरबात ओ हवादिस की शक्ल में,
जो कुछ मुझे दिया है,वो लौटा रहा हूं मैं”
महज़ 59 साल की उम्र में हार्ट अटैक के कारण 25 अक्टूबर 1980 को मुंबई में उनका निधन हो गया।आज वे भले ही हमारे बीच नहीं हैं,पर उनकी लेखनी से निकले गीत,शेर,गजले हमेशा हमें उनसे जोड़े रखेगी।