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Saturday, November 23   1:07:20

International Men’s Day: पुरुषों में लगातार बढ़ती आत्महत्या दर चिंताजनक

भारत में अक्सर कई चीजों पे चर्चाएं की जाती हैं, लेकिन देश में बढ़ते पुरुषों के सुसाइड रेट के बारे में कोई बात नहीं करना चाहता। भारत में पुरुष सुसाइड रेट महिलाओ से 2.5 गुना ज्यादा हैं। यदि हम 2021 की बात करें तो ये 1 लाख 64 हजार 33 था और हर साल पुरुष सुसाइड रेट बढ़ता ही जा रहा हैं। इसका सबसे मुख्य कारण हैं पुरुषों पर किए जा रहे डोमेस्टिक वॉयलेंस। जिस पर हमारे संविधान में पुरुषों के लिए कोई खास कानून नहीं हैं। इसकी एक वजह उनका कम बात करना, अपनी बातें सबके सामने न करना है। इसकी वजह से वे एंक्साइटी और डिप्रेशन का शिकार बन जाते हैं।

2019 के WHO की रिपोर्ट की मानें तो हर साल 7 लाख से ज्यादा पुरुष सुसाइट कर लेते हैं, और हर साल सुसाइट के अकड़ों में 70% पुरुष होते हैं। वहीं एक दूसरी रिपोर्ट के अनुसार दुनिया में 301 मिलियन पुरुष एंजाइटी, 280 मिलियन पुरुष डिप्रेशन, 40 मिलियन पुरुष बाइपोलर के शिकार हैं और ये अकड़े अपने आप में डरा देने वाले हैं। पर एसे क्या हैं जो आज हालात इतने गंभीर है।

हमारा समाज पुरुषों को बचपन से ही सिखाया जाता है कि जो पुरुष किसी की मदद लेता है वो कमजोर होता है और उसकी समाज में कोई इज्जत नहीं होती। इसी वजह से अक्सर देखा जाता है कि पुरुष किसी भी बारे में बात करने से कतराते हैं। समाज में यदि पुरुष अपनी मेंटल हेल्थ की बात करे तो उनका मजाक बनाया जाता है जिसके कारण 40 प्रतिशत पुरुष अपनी बातें किसी से शेयर नहीं करते। यदि उन्हें सही रास्ता न मिले तो वे गलत कदम भी उठा लेते हैं।

जब पुरुष दिमागी तौर पर परेशान होते हैं, लेकिन वे किसी को अपने हालातों के बारे में नहीं बता पाते हैं तो वे शराब और ड्रग्स का सेवन शुरू कर देतै हैं। देखते ही देखते वे इन चीजों के एडिक्ट हो जाते हैं। जब नशा ज्यादा हावी हो जाता है तो लोग अपनी सुदभुद खोकर सुसाइड जैसे गलत कदम उठा लेते हैं।

पुरुषों के बढ़ते सुसाइड के आंकड़ों में फाइनेंशियल प्रोब्लम्स भी एक कारण है। इससे सुसाइड की संभावना 20 प्रतिशत बढ़ जाती है। भारत में ही नहीं बल्कि पूरे विश्व में पैसों की तंगी के चलते सुसाइड रेट बढ़ता जा रहा है। 2018 से 20 के बीच 25 हजार सुसाइड हुई जिनमें 9 हजार 140 बेरोजगारी और 12 हजार 91 लोन के चलते की गई। पुरुषों को हमेशा परिवार के फाइनेंशियल सपोर्ट के रूप में देखा जाता है। वे परिवार में सबकी जरूरतें पूरी करते हैं, लेकिन जब पैसों के कारण वे इसे पूरा नहीं कर पाते तो वे सुसाइड करके अपनी जिम्मेदारी से मुक्त होने की कोशिश करते हैं।

ऐसा नहीं है कि सरकार ने पुरुषों के सुसाइड रेट को कम करने की कोशिश नहीं की। लेकिन इतना असर देखने को नहीं मिला। सरकार को इसके लिए मेंटल हेल्थ एरिया में इन्वेस्ट करना होगा। भारत में 1 करोड़ लोगों के लिए केवल 3500 साइकोलॉजिस्ट हैं। जिनपर सरकार को काम करना चाहिए और लोगों को भी ध्यान देना चाहिए। यदि आपके आसपास कोई ऐसा हो जो दिमागी तौर पर ठीक नहीं हैं तो उनकी मदद करनी चाहिए।