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May 18, 2024

सदियों से इस्तेमाल हो रहे भारतीय मसाले बन सकते हैं कैंसर का इलाज, IIT Madras की स्टडी हुई पेटेंट

दुनिया में किसी की मौत होने के कई कारण होते हैं। कोई अकस्मात में मरता है तो कोई बिमारी से मरता है। अगर बिमारी से मौत होने की बात करें तो पहले नंबर पर कार्डियोवैस्कुलर (cardiovascular) डिजीज का नाम आता है। उसके बाद सबसे ज़्यादा लोग कैंसर (cancer) से मरते हैं। कहा जाता है कि कैंसर का कोई इलाज नहीं है। इतने सालों से कैंसर पर चल रहे रिसर्च से अभी तक सिर्फ कुछ हद तक ही कैंसर को ठीक करने का इलाज पता लगा पाए हैं।

लेकिन, हालही में IIT मद्रास ने एक रिसर्च की है जिसमें यह सामने आया है कि भारतीय मसाले कैंसर जैसी जानलेवा बिमारी को ठीक करने वाली दवाई बन सकते हैं। जानकारी के हिसाब से रविवार (25 फरवरी) से इसका क्लिनिकल ट्रायल शुरू हो चुका है। कहा जा रहा है कि 2028 तक ये दवाइयां मार्केट में भी मिल सकती हैं।

रिसर्चर्स ने दावा किया है कि भारतीय मसाले लंग कैंसर सेल, ब्रेस्ट कैंसर सेल, कोलन कैंसर सेल, सर्वाइकल कैंसर सेल, ओरल कैंसर सेल और थायरॉइड कैंसर सेल में एंटी कैंसर एक्टिविटी दिखाते हैं। ये मसाले नॉर्मल सेल में सेफ रहते हैं। रिसर्चर्स फिलहाल इसकी लागत और सेफ्टी की चुनौतियों पर काम कर रहे हैं।

बता दें कि जानवरों पर इसकी टेस्टिंग हो चुकी है। और परिणाम पॉजिटिव आया है। कई स्टडी में यह सामने आया है कि मसालें कैंसर को ठीक कर सकते हैं लेकिन, उन दवाइयों का कितना डोज़ लगेगा, वो ट्रायल के बाद ही साफ़ हो पायेगा।

IIT मद्रास की चीफ साइंटिफिक ऑफिसर जॉयस निर्मला ने कहा, “फिलहाल कैंसर का जो ट्रीटमेंट होता है, उसमें काफी साइड इफेक्ट होते हैं, लेकिन हमारा टारगेट है कि हम कैंसर का सस्ता और कम साइड इफेक्ट वाला ट्रीटमेंट तैयार करें। हमारा देश विश्व में सबसे ज्यादा मसाले प्रोड्यूस करने वाला देश है। हमारे देश में काफी सस्ते में मसाले तैयार होते हैं। हम चाह रहे हैं कि इन दवाओं को इंजेक्शन के जरिए न देना पड़े। मरीज दवाओं को निगल सकें।”

वहीं दूसरी ओर IIT मद्रास के केमिकल इंजीनियरिंग डिपार्टमेंट के प्रोफेसर आर नागर्जन ने कहा, “कैंसर की दवाई बनाने के लिए इनके मॉलिक्यूलर लेवल पर स्टेबिलिटी सबसे महत्वपूर्ण होती है। हमारी लैब में हमने स्टेबल प्रोडक्ट तैयार किया है। लैब में रिसर्च जारी रहेगी। जानवरों की स्टडी में पॉजिटिव रिजल्ट मिलने के बाद अब हम क्लिनिकल ट्रायल के फेज में जा रहे हैं।”