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संपूर्ण स्वास्थ्य: आधुनिक युग में शरीर, मन और आत्मा का संतुलन

स्वस्थ्य शरीर में ही स्वस्थ मन का वास होता है। इन दोनों के संयोग से ही आत्मा का संतुलन बनता है। इस बात को हम इस प्रकार से समझते हैं कि यदि आप शरीर से स्वस्थ नहीं होंगे तो आप अंदर से दुर्बल, कमजोर महसूस करेंगे और इसकी वजह से आपका मन भी दुखी रहेगा। इसलिए स्वस्थ्य मन के लिए शरीर का स्वस्थय रहना बेहद आवश्यक है। आज के दौर में देखा जाए तो इस आधुनिक युग में हमने अपनी जिंदगी में बहुत सी बीमारियों और तनाव को अनचाहा स्थान दे दिया है। जिसका बुरा असर हमारे जीवन पर पड़ रहा है। इस दौरान योग हमारे शरीर और मन को स्वस्थ बनाने में अद्वितीय उपाय साबित हो रहा है।

योग हमारे प्राचीन भारतीय संस्कृति का मूल्यवान अंग है। ये परंपरा अत्यंत प्राचीन है। इसकी उत्पत्ती हजारों वर्ष पहले हुई थी। ऐसा माना जाता है कि जब से सभ्यता शुरू हुई है तभी से योग किया जा रहा है। प्राचीनतम धर्मों या आस्थाओं के जन्म से काफी पहले योग का जन्म हो चुका था। योग हजारों सालों से संपूर्ण मानव जाति के लिए स्वास्थ्य, सुख और आत्मानुभूति का माध्यम रहा है। योग का शाब्दिक अर्थ है ‘एकीकृति होना’ अर्थात शरीर, मन और आत्मा को एकचित्त करने की कला। योग आत्मा को परमात्मा से जोड़ता है जीवात्मा का परमात्मा से मिल जाना पूरी तरह से एक हो जाना ही योग है।

योग हमारे शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने का कार्य करता है। इससे हमारा शरीर शारीरिक और मानसिक तौर पर स्वस्थ्य रहता है। प्राचीन काल से ही योग का एक स्वस्थ्य जीवनशैली के लिए अभ्यास किया जा रहा है। यह मानव शरीर के मस्तिष्क को मजबूत करता है और मांसपेशियों के लिए भी काफी लाभदायक है। भारत जगत के महान पुरुषों ने भी योग के सहारे खुद को शारीरिक और मानसिक तौर पर विकसित किया है।

योग के प्रकार

योग के चार प्रकार होते हैं। पहला “राज योग”, जिसमें सूर्य नमस्कार और पद्मासन जैसे आसन शामिल होते हैं। दूसरा “कर्म योग”, जिसका मतलब कर्म से संबंधित होता है, जैसा कर्म करेंगे वैसा ही फल प्राप्त होगा। तीसरा “भक्ति योग”, जहां आपको शांति से बैठकर ध्यान लगाना पड़ता है। सबसे आखरी में आता है “ज्ञान योग”, जहां ज्ञान योगी व्यक्ति ज्ञान के माध्यम से ईश्वर की प्राप्ति के मार्ग में प्रेरित होता है।

मानव शरीर के लिए योगाभ्यास बेहद जरूरी है। इससे शरीर, मन और आत्मा को नियंत्रण में रखने में सहायता मिलती है। यह शारीरिक और मानसिक अनुशासन का एक संतुलन स्थापित करके हमें शांति और स्थिरता की अनुभूति का एहसास कराता है। योग मानव को इहलौकिक और पारलौकिक दोनों की यात्रा कराता है। योग शरीर, मन और इंद्रियों की क्रिया है जो मन को वश में करने का मार्ग बताती है।

आसन योग नहीं है। यह योग की एक बहिर्मुखी क्रिया है जो शरीर को स्वस्थ रखती है, परंतु आसन को ही लोगों ने योग समझ लिया है। वैसे तो योग अनेक हैं और इसके सहयोग के बगैर बोधितत्व सत्य की प्राप्ति भी नहीं है। इसीलिए भक्ति के साथ योग है, ज्ञान के साथ भी योग है, क्रिया के साथ भी योग है, संकल्प के साथ भी योग है। योग एक विज्ञान है, जीवन जीने की विधि है। योग एक व्यवस्थित नियम को प्रतिपादित करता है। योग शरीर को अनुशासित रखता है। मन को उद्देश्यपूर्ण दिशा में चलने का बोध देता रहता है।

योग का अभ्यास करने से हमें कई प्रकार के फायदें होते हैं।

  1. योग हमारे शरीर, मन और आत्मा को संतुलित करके हमें संपूर्ण स्वास्थ्य प्रदान करता है।
  2. योग हमें मानसिक तनाव से राहत देता है और हमारे मन को शांत और एकचित्त करता है।
  3. योग हमारे शरीर की रोधप्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने का कार्य करता है।
  4. योगाभ्यास से हमारे शरीर में सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह होता है। यदि हम सकारात्मक रहेंगे तो हम हमारे समाज को भी सकारात्मक माहौल दे पाएंगे।
  5. योग हमें अपने आंतरिक अंतरज्ञान की प्राप्ति करने में मदद करते हैं हमें स्वयं से मिलाने और स्वयं के बारे में जानने में सहायता करता है।
  6. योग आत्मा से परमात्मा को मिलाने के लिए बहुत ही अच्छा जरिया है।
  7. योग का नियमित रूप से अभ्यास करने से हमारे शरीर का वजन कम होता है। जो हमें एक स्वस्थ और आकर्षक शरीर प्रदान करता है।
  8. योग का अभ्यास करने से हमारी ऊर्जा शक्ति में वृद्धि होती है और हम अधिक ऊर्जावान और उत्साहित महसूस करते हैं।

मन-शरीर-आत्मा का संबंध आपके खुशहाल, स्वस्थ्य और उत्साह से जीवन जीने का एक शॉर्टकट है। स्वस्थ मन, शरीर और आत्मा आपके महसूस करने के तरीके को बदल सकते हैं और हर दिन आपके दिखने के तरीके को प्रभावित कर सकते हैं। समय के साथ, यह आपके पूरे जीवन में एक प्रभाव पैदा करता है।