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Thursday, December 26   7:25:00
Farmers love their bulls

किसानों का अपने बैल से प्यार: एक अटूट बंधन

देश में आधुनिक संसाधनों के आने के बाद खेतों में बैलों से जुताई की परंपरा आज कहीं खो गई है। एक वक्त हुआ करता था जब किसान बैलों को अपने परिवार की तरह प्यार करता था और आज वो जमाना है जब खेतों से बैल कहीं गायब ही हो गए हैं। आज खेतों में ज्यादा और अच्छी फसलों के लिए किसान कई तरह के कैमिकल प्रयोग कर रहे हैं जिससे अब कोई भी फल हो या सब्जी कुछ भी खाने लायक नहीं बची है। जिसे लोग अपना स्वास्थ्य बेहतर बनाने के लिए ग्रहण करते थे आज वहीं चीज हमारे स्वास्थ्य की दुश्मन बन गई है। लेकिन, क्या आपको पता हैं कि पहले के जमाने में किसान अपनी फसल अच्छी करने के लिए कौन सी तरकीब प्रयोग करते थे।

जब किसान अपने खेतों को बैलों के सहारे जोता करते थे तब दोनों में ही एक प्रेम भावना छिपी होती थी। हल खीचते वक्त यदि बैल पेशाब करता था या उस स्थिति में होता था तो किसान थोड़ी देर के लिए हल बंद कर देता था और वहीं एक जगह खड़ा हो जाता था। इससे बैल भी आराम से अपना रोज का अनुष्ठान कर पाता था और खेतों में भी बैल के पेशाब और गोबर से अच्छी खाद मिल जाती थी। जो फसलों के लिए जरूरी हुआ करती थी। आज वो प्रथा कहीं गुम हो गई है। जीवों के प्रति यह पूर्वजों की गहरी करूणा ही थी जिसे आज सभी अनपढ़ करार देते हैं।

उस दौर का देशी घी इतना शुद्ध हुआ करता था कि वो आज के हिसाब से आराम से 2000 रुपये किलो तक बिक सकता था। तीज त्योहार के दिनों में तो उस दौर में किसान किलो भर देशी घी अपने बैलों को ही पिला देते थे।

उस दौर में खेती की कोई शिक्षा नहीं थी। लेकिन, पुवर्जों को अनुभव इतना की यदि टिटोडी नाम का पक्षी जो अंडे जमीन पर देता है, यदि जुताई के दौरान उसके अंडे के बीच में आगए तो उसकी पुकार सुन कर किसान वह जमीन खाली छोड़ देता था। वहीं यदि किसान को खाना खाने घर आना हो तो पहले वह अपने बैलों के लिए भोजन-पानी की व्यवस्था करता था उसके बाद वह खुद खाना खाता था।

जिस दौर में आज हम जी रहे हैं वहां इंसानों की अहमियत नहीं तो इन बेजुबानों की परवाह करने की तो बात ही नहीं उठती। आज के जमाने में बूढ़े हो गए बैल-गाय को कसाइयों के पास भेज दिया जाता है। जबकि हमारे पुर्वजों के दौर में ये सब शर्मनाक सामाजिक अपराध माना जाता था। साढ़ कितना भी बूढ़ा क्यों न हो जाए किसान मरते दम तक उसकी सेवा में रहता था। उस समय के तथाकथित अनपढ़ किसान का मानवीय तर्क यह था कि वो इतने साल अपनी मां का दूध पीता था और उसकी कमाई खाता था, अब उसे बुढ़ापे में कैसे छोड़ सकता है?

वहीं जब उसका सांड मर गया तो किसान बहुत रोया, किसान को रोता देख उसके घर वाले उसके बच्चे भी बहुत रोए। बैल जिंदगी भर किसान की गूंगी भाषा समझता रहा कि वह क्या कहना चाह रहा है।

पुराने भारत का ज्ञान और संस्कृति केवल किताबों तक सीमित नहीं थी, बल्कि यह लोगों के जीवन का अभिन्न अंग था। वेदों और उपनिषदों के ज्ञान, शिक्षा और विद्या के महत्व, कलाओं और विज्ञानों में प्रगति, और आध्यात्मिक चेतना के कारण पुराना भारत इतना पढ़ा लिखा और सम्पूर्ण था। यह ज्ञान और संस्कृति आज भी प्रासंगिक है और हमें जीवन जीने का सही मार्ग दिखाती है।