देश की आजादी के बाद जब रियासतों का विलय हुआ, तब छत्तीसगढ़ में 14 रियासतें थीं। राजपरिवार सक्रिय रूप से राजनीति में थे या फिर हार-जीत का समीकरण महल से तय हुआ करता था, लेकिन समय के साथ अब चंद ही राजपरिवार राजनीति में सक्रिय हैं।
छत्तीसगढ़ में कुल 90 विधान सभा सीट है । सरकार बनाने के लिए बहुमत का आँकड़ा 46 है। प्रदेश में पहले चरण में 7 नवंबर को कबीरधाम जिला, नक्सल प्रभावित बस्तर क्षेत्र और राजनांदगांव जिले की 20 सीटों पर वोट डाले गए, वहीं दूसरे चरण में बाक़ी इलाकों की 70 सीटों पर 17 नवंबर को वोटिंग कराई गई। मतों की गिनती बाक़ी 4 राज्यों के साथ आज तीन दिसंबर को हो रही हैं।
इस बार छत्तीसगढ़ विधानसभा का चुनाव बेहद ही रोमांचक रहने की उम्मीद है। सत्ताधारी कांग्रेस और बीजेपी के लिए यह चुनाव कई कारणों से प्रतिष्ठा का सवाल बन गया है । उसके साथ ही इस बार यहाँ आम आदमी पार्टी, गोंडवाना गणतंत्र पार्टी, सर्व आदिवासी समाज के साथ बीएसपी और पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी द्वारा स्थापित जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ भी अपनी राजनीतिक ज़मीन बनाने की कोशिश में है,लेकिन सीधा मुक़ाबला कांग्रेस और बीजेपी में ही है।
छत्तीसगढ़ से कांग्रेस को फिर से प्यार मिलता है या बीजेपी को अपना पुराना प्यार वापस मिल जाता है, इसी के इर्द-गिर्द पूरा चुनाव घूम रहा है। छत्तीसगढ़ के राजनीतिक हालात और समीकरणों को समझने के लिए प्रदेश की सियासत के अलग-अलग पड़ाव पर नज़र डालने की ज़रूरत है, एक लंबे आंदोलन के बाद मध्य प्रदेश से अलग होकर एक नवंबर 2000 को ही छत्तीसगढ़ नया प्रदेश बना है।
तत्कालीन कांग्रेस नेता अजीत जोगी प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री बने थे, वे तीन साल तक बतौर कांग्रेस नेता प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे। अलग राज्य बनने के बाद दिसंबर 2003 में यहां पहला विधान सभा चुनाव हुआ, इसके साथ ही छत्तीसगढ़ की राजनीति में बीजेपी के वर्चस्व का सिलसिला शुरू हो गया। अगले 15 साल या’नी तीन कार्यकाल तक प्रदेश की सत्ता पर बीजेपी अकेले बहुमत के साथ क़ाबिज़ रही, उसके बाद पिछले विधान सभा चुनाव या’नी 2018 में प्रचंड जीत के साथ बीजेपी नेता रमन सिंह के युग का अंत कर कांग्रेस को सत्ता पाने में सफलता मिली।यहाँ से कांग्रेस नेता भूपेश बघेल के युग की शुरूआत हुई।
जब 2018 में नतीजे सामने आए, तो हर कोई चौंक गया था। ऐतिहासिक प्रदर्शन करते हुए कांग्रेस ने बीजेपी के डेढ़ दशक की बादशाहत को खत्म कर दिया था।कांग्रेस तीन चौथाई से भी अधिक सीटों पर जीतने में सफल रही थी।वहीं बीजेपी महज़ 15 सीटों पर सिमट गयी थी। कांग्रेस का वोट शेयर 43% और बीजेपी का 33% रहा,दोनों के बीच वोट शेयर का फ़ासला 10% रहा था। प्रदेश विधान सभा चुनाव में दोनों पार्टियों के बीच वोट शेयर में यह अब तक का सबसे अधिक फ़ासला था ।जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ को 5 और बीएसपी को 2 सीटों पर जीत मिली । रिकॉर्ड जीत दिलाने वाले दिग्गज नेता भूपेश बघेल की अगुवाई में छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की सरकार बनी और यहीं से भूपेश बघेल के युग की शुरूआत भी हुई।
इस बार सीधे तौर से कांग्रेस ने चेहरे की घोषणा नहीं की है, लेकिन प्रदेश की जनता में यह संदेश ज़रूर है कि फिर से बहुमत आने पर भूपेश बघेल की दावेदारी ही सबसे ज़्यादा रहेगी।अनौपचारिक तौर से कांग्रेस का चेहरा भूपेश बघेल ही रहेंगे और उनके बर-‘अक्स चेहरे की कमी बीजेपी की सबसे बड़ी कमज़ोरी इस चुनाव में साबित हो सकती है। ऐसे तो बीजेपी के पास रमन सिंह जैसा कद्दावर नेता हैं, जो 15 साल तक प्रदेश सरकार की कमान भी संभाल चुके हैं।हालांकि बीजेपी का शीर्ष नेतृत्व का जो रवैया पिछले कुछ महीनों से रहा है, उसको देखते हुए कहा जा सकता है कि 70 साल के रमन सिंह की जगह पर पार्टी कोई और नए चेहरे पर दाग लगा सकती है।
छत्तीसगढ़ एक ऐसा राज्य है, जहाँ महिला मतदाताओं की संख्या पुरुष मतदाताओं से ज़्यादा है। यहाँ सेवा मतदाताओं को छोड़कर कुल मतदाता दो करोड़ तीन लाख साठ हज़ार दो सौ चालीस हैं,इनमें पुरुष मतदाताओं की संख्या एक करोड़ एक लाख बीस हज़ार आठ सौ तीस है, जबकि महिला मतदाताओं की संख्या एक करोड़ दो लाख 39 हजार चार सौ दस है।इन आँकड़ो से समझा जा सकता है कि प्रदेश की सत्ता पर कौन सी पार्टी विराजमान होगी, यह बहुत हद तक महिला मतदाताओं के रुख़ पर निर्भर करता है।
हालांकि पिछली बार शराबबंदी के वादे से कांग्रेस को महिला मतदाताओं का भरपूर समर्थन मिला था, लेकिन भूपेश बघेल सरकार इस वादे को अब तक पूरा नहीं कर पायी। अब देखना होगा कि इस बार के चुनाव में महिला मतदाताओं का इस मसले पर क्या रुख़ रहता है।
कांग्रेस के सामने सत्ता विरोधी लहर की चुनौती ज़रूर है, लेकिन पार्टी को भूपेश बघेल सरकार की कल्याणकारी योजनाओं से इसके नुक़सान को कम करने में मदद मिल सकती है। राजीव गांधी किसान न्याय योजना, राजीव गांधी ग्रामीण भूमिहीन कृषि मजदूर कृषि न्याय योजना, गोधन न्याय योजना जैसी योजनाओं के साथ ही बेरोज़गारी भत्ता और पुरानी पेंशन स्कीम का वादा पूरा करना कांग्रेस के लिए लाभदायक साबित हो सकता है।
वहीं बीजेपी भूपेश बघेल सरकार को शराब बिक्री, कोयला परिवहन, जिला खनिज फाउंडेशन कोष के उपयोग और लोक सेवा आयोग भर्ती में भ्रष्टाचार के मुद्दे पर घेरने में जुटी है।बीजेपी धर्मांतरण, सांप्रदायिक हिंसा और झड़पों को लेकर कांग्रेस पर हिंदू विरोधी होने का आरोप लगा रही है,इससे वोटों का अगर धर्म के आधार पर ध्रुवीकरण हुआ तो कांग्रेस को नुक़सान उठाना पड़ सकता है।
छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव में आदिवासी बहुल क्षेत्रों की अहम भूमिका होगी। इन क्षेत्रों की एक तिहाई सीटें जीत हार का फैसला तय करेगी।
छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनाव के बीच चुनाव जीतने के लिए मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने अपना मास्टर स्ट्रोक की घोषणा कर दी है ।2018 की तरह फिर से 2023 में किसानों की कर्ज माफी का वादा किया गया है।इसके बाद फिर छत्तीसगढ़ का चुनाव घूम फिर कर किसानों पर अटक गई है,कर्ज माफी से राज्य के लाखों किसानों को फायदा होगा।
बात अगर एग्जिट पोल के आंकड़ों की करें तो छत्तीसगढ़ में सभी 8 पोल कांग्रेस की दोबारा सत्ता में वापसी करवा रहे हैं। इनमें से पांच पोल में भाजपा सत्ता से 4 से 6 सीट दूर दिख रही है। पोल ऑफ पोल्स में भाजपा को 39, कांग्रेस को 48 और अन्य को 3 सीटें मिलने का अनुमान है।
अब देखना सिर्फ यही है कि छत्तीसगढ़ में एग्जिट पोल के आंकड़े सही साबित होते हैं या यहां कोई उलट फेर देखने मिलता है!!
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