CATEGORIES

May 2024
MTWTFSS
 12345
6789101112
13141516171819
20212223242526
2728293031 
May 17, 2024

प्रेस क्लब ऑफ इंडिया के सामने पहाड़ जैसी चुनौतियां

25-05-22

— written by Rajesh Badal

‘प्रेस क्लब ऑफ इंडिया’ के चुनाव हो गए। अपनी स्थापना के साठ साल में शायद पहली बार इतनी गहमागहमी और हंगामाखेज सरगर्मियां देखी गईं। यही नहीं, इस बार के चुनाव पर देश भर के पत्रकार संगठनों तथा प्रेस क्लबों की बारीक नजर थी। चुनाव परिणामों ने भी समूची पत्रकार बिरादरी को चौंकाया। पूर्व अध्यक्ष उमाकांत लखेड़ा और उनके पैनल ने शानदार वापसी की। सारे पदों पर उनके सहयोगी जीते। पहली बार ऐसा हुआ है, जब प्रतिपक्षी पैनलों का एक भी पदाधिकारी नहीं जीता।

असल में इस जीत के पीछे उमाकांत लखेड़ा का पहला कार्यकाल माना जा सकता है। कोरोना के भयावह दौर में उनका एक नया रूप दिखा। सदस्यों की सहायता का उन्होंने कोई अवसर नहीं छोड़ा। उस समय क्लब की अपनी अंदरूनी माली हालत भी लगातार लॉकडाउन के कारण खस्ता थी। ऐसे में उन्होंने सदस्यों पर बकाया की वसूली का अभियान छेड़ा। सदस्यों ने इसमें दिल खोलकर सहयोग किया। देखते ही देखते लगभग ढाई करोड़ रुपये जमा हो गए। यह एक रिकॉर्ड है। सैकड़ों सदस्यों, उनके परिवार वालों, यहां तक कि उनके घरेलू कर्मचारियों तक को मुफ्त कोरोना टीके लगवाए गए। उन दिनों एक-एक टीका हजार से दो हजार रुपये में मिल रहा था। उससे पहले वाली प्रेस क्लब कार्यकारिणी ने भी बड़ी संख्या में पैदल घर लौटने वालों को खाने के पैकेट बांटे थे। सलाम प्रेस क्लब के किचिन कर्मचारियों को, जो कठोर लॉकडाउन के दिनों में भी खाने के पैकेट तैयार करने के लिए कई किलोमीटर पैदल चलकर आते रहे।

बहरहाल! प्रेस क्लब की जो नई कार्यकारिणी चुनकर आई है, उसने पिछले कार्यकाल में पत्रकारों के हितों और अधिकारों के लिए भी पूरे कार्यकाल में गतिविधियां जारी रखीं। जब पेगासस मामले में पत्रकारों की जासूसी के नाम आए तो विरोध में प्रेस क्लब एकजुट था। जब संसद की रिपोर्टिंग पत्रकारों के लिए सीमित की गई, तब भी प्रेस क्लब ने सार्थक भूमिका का निर्वाह किया। क्लब में एक आधुनिकतम मीडिया सेंटर भी बनाया गया है। ऐसे अनेक अवसर हैं, जब ईमानदार पेशेवर पत्रकारों को इस संस्था से जुड़े होने पर गर्व हुआ है। देश के अनेक प्रेस क्लबों के साथ प्रेस क्लब ऑफ इंडिया के जीवंत रिश्ते बनाने की दिशा में भी पहली बार गंभीर काम हुआ है।

लेकिन इसका अर्थ यह नहीं है कि इस कार्यकारिणी का कोई काम अधूरा नहीं रहा है। प्रेस क्लब के नए भवन का काम अभी भी लटका हुआ है। एक अच्छे पुस्तकालय की अभी भी जरूरत है। दिल्ली से बाहर के सदस्य पत्रकारों के लिए इंडिया इंटरनेशनल सेंटर की तर्ज पर ठहरने के लिए आवास सुविधा आवश्यक है। प्रेस क्लब के पास अपने कम से कम एक दर्जन कमरे होने चाहिए। कम से कम पांच सौ लोगों के बैठने की व्यवस्था वाला एक बड़ा आधुनिकतम ऑडिटोरियम भी क्लब के पास नहीं है।

अक्सर शाम के वक्त सदस्यों के बैठने के लिए स्थान कम पड़ जाता है। कुर्सियों की मारामारी होती है। एक हॉल की जरूरत है। इसके अलावा अतिथि व्याख्यानों का सिलसिला भी शुरू किया जाना चाहिए। दिल्ली में आए दिन राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय विद्वानों का जमावड़ा होता रहता है। इनका लाभ सभी सदस्य पत्रकारों को मिलना चाहिए। प्रोफेशनल वर्कशॉप लगाई जानीं चाहिए। देश के प्रतिष्ठित पत्रकारों-संपादकों के नाम पर फेलोशिप दी जानी चाहिए। इससे सदस्यों के बीच गहन शोध को बढ़ावा मिलेगा। कई देशों में प्रेस क्लब और संगठन इस तरह की गतिविधियां संचालित करते हैं। केवल बार और रेस्टोरेंट चलाना भर प्रेस क्लब का मकसद नहीं है मिस्टर मीडिया!