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May 7, 2024

“एक देश एक चुनाव” बिल को लेकर NDA के सामने चुनौतियां

एक देश एक चुनाव बिल को कानून बनाने का मुद्दा इन दिनों चर्चा में है।सामान्य नागरिक के रूप में हमारी सीधी समझ के अनुसार लोकसभा और विधानसभा के चुनाव एक ही समय करने की यह कवायत है। लेकिन ,इस विषय को अच्छी तरह समझना,इसको कानून बनाने के लिए जरूरी बदलाव,चुनौतियां क्या होगी? यह जानना भी जरूरी है।

जहां तक “एक देश एक चुनाव” की बात है तो, यह सिस्टम विश्व के कई देशों में है। आज़ादी के बाद भारत में भी एक देश एक चुनाव की प्रक्रिया अमली थी।आजादी के बाद चार चुनाव इसी व्यवस्था के अंतर्गत हुए थे। 1952, 1957, 1962, और 1967 में लोकसभा और विधानसभा सभा के चुनाव एक साथ हुए थे। इसके बाद कुछ राज्यों की विधानसभा और लोकसभायें भंग हो गई, अतः यह व्यवस्था टूट गई। और अलग-अलग चुनाव की शुरुआत हुई। विधि आयोग और इलेक्शन कमीशन ने भी सुझाया है कि पुनः एक बार वन नेशन वन इलेक्शन की शुरुआत होनी चाहिए।

वन नेशन वन इलेक्शन को कानून बनाने के लिए कई तब्दीलियां करनी होगी। यदि यह लागू हो जाता है, तो प्रधानमंत्री का कार्यकाल बढ़ जाएगा। लोकसभा और राज्यसभा के कार्यकाल के समय में भी कमोबेश होगा। यह बिल लागू करने के लिए काफी बदलाव की जरूरत होगी।सबसे पहले तो संविधान की पांच धाराओं 83, 85, 172, 174, 356 में सुधार करने पड़ेंगे।ये धाराएं क्या कहती है,यह जानना जरूरी है।

  • भारतीय संविधान की धारा 83 के अनुसार आपात स्थिति को छोड़कर लोकसभा का कार्यकाल 5 साल से आगे न बढ़ सकता है, और ना ही काम हो सकता है।
  • धारा 172 के अनुसार आपात हालात को छोड़कर विधानसभा का कार्यकाल 5 साल से आगे ना बढ़ सकता है ,ना ही काम हो सकता है।। आपात स्थिति में कार्यकाल का समय दो बार बढ़ाने का प्रावधान संविधान में किया गया है। पहली बार 1 साल और दूसरी बार 6 महीने।लेकिन इसके लिए इमरजेंसी होना जरूरी है।
    धारा 83 और 172 संविधान की इन दोनों धाराओं में तब्दीलियां लानी पड़ेगी।जब आपात स्थिति ना हो तब भी लोकसभा, विधानसभा का कार्यकाल सरकार बढ़ा सके, और चुनाव के लिए समय तय कर सके। यहां यह उल्लेखनीय है कि आपात स्थिति तब ही आती है,बाकी पक्षों के अविश्वास के चलते जब कोई सरकार गिर जाती है।
  • भारतीय संविधान की धारा 85 के अनुसार राष्ट्रपति के लिए हर 6 महीने में सांसद सत्र बुलाना जरूरी है।
  • धारा 174 के अनुसार राज्यों में विधानसभा सत्र हर 6 महीने में बुलाना जरूरी है । एक देश एक इलेक्शन को लागू करने के लिए धारा 85 और 174 में तब्दीलियां करनी होगी ,ताकि इमरजेंसी हो या ना हो, सांसद और विधानसभा का सत्र बुलाया जा सके।
  • धारा 356 राष्ट्रपति को एक महत्वपूर्ण ताकत देता है,और वह है कि राष्ट्रपति इमरजेंसी हो या ना हो राष्ट्रपति शासन लागू कर सकते हैं। जिसके तहत यदि सरकार अपने कार्यकाल में विश्वास खो देती है तो, लोकसभा और विधानसभा भंग की जा सकती है। इस कानून के अंतर्गत सरकार को चुनाव की तारीखों को लेकर भी बदलाव करने पड़ेंगे। इसी के साथ रिप्रेजेंटेशन ऑफ़ पीपल एक्ट में भी तब्दीलियां लानी पड़ेगी। एक देश एक चुनाव लागू करने के लिए सरकार के सामने संविधान की इन पांच धाराओं में बदलाव के साथ बाकी चुनौतियां भी है ।लोकसभा और राज्यसभा में इस बिल को पास करना जरूरी है। इतना ही नहीं सरकार को राज्यों से भी अनुमति लेनी होगी, जो आसान नहीं है। अभी हालिया भाजपा सरकार की बात करें तो लोकसभा में कुल 539 सदस्य होते हैं। भाजपा सरकार के पास तीन चौथाई बहुमत है। यहां उलझन यह है कि सत्ताधारी एनडीए के पास 333 मत है, और इस बिल को पास करने के लिए उन्हें अतिरिक्त 71 मतों की जरूरत पड़ेगी। यह मत जुटाना आसान नहीं है। अब आप सोचिए कि विपक्ष गठबंधन INDIA के पास 142 सदस्य हैं, और स्वाभाविक है कि, यह सभी पार्टियों विपक्ष में है, इसलिए यह सत्ताधारी पार्टी को अपना समर्थन नहीं देंगे। इनके अलावा लोकसभा में 10 पार्टिया ऐसी हैं जो स्वतंत्र है। ये पार्टियां है, TRS,AIMIM, aiudf sad, jds,BSP,YSRCP,BJD,TDP, और RLA.इनके पास 63 बैठके हैं।किसी तरह साम, दाम, दण्ड, भेद, के उपयोग से NDA समर्थन का जुगाड़ कर भी लेती है तो, अन्य 8 सीटों की जरूरत होगी।ऐसी स्थिति में इन 8 सीटों का जुगाड़ मौजूदा सरकार कैसे करेगी, और बिल पास कैसे होगा,इस पर बहुत बड़ा प्रश्नार्थ है। राज्यसभा की बात करें तो यहां 238 सीट्स है। यहां पर एनडीए की 178 बैठके है,और समर्थन के लिए एनडीए को आवश्यकता होगी 67 बैठकों की। INDIA गठबंधन की राज्यसभा में 98 बैठके हैं। इसे समर्थन की अपेक्षा रखना NDA के लिए बिल्कुल बेकार है। तो दूसरी ओर जो स्थिति को बदल सकते हैं ऐसे सदस्य 29 है,जो गठबंधन या एनडीए दोनों में से किसी को समर्थन नहीं करते और स्वतंत्र हैं। अगर यह 29 सदस्य एनडीए को समर्थन देते हैं, तब भी 67 बैठकों का टारगेट पूरा नहीं हो पा रहा है।
    बात यहीं नहीं थमती,अभी तो राज्यों का समर्थन भी एनडीए को प्राप्त करने के लिए राज्यों में भी जाना पड़ेगा। एक देश एक चुनाव प्रस्ताव पारित करने के लिए सरकार को आधे राज्यों यानि 14 राज्यों के समर्थन की आवश्यकता है। अब राज्य में भाजपा की स्थिति देखे तो 15 राज्यों में एनडीए की सरकार है, पर पांच राज्य ऐसे हैं जहां पर क्षेत्रीय दलों के साथ गठबंधन में भाजपा सत्ता में है।इन राज्यों में क्षेत्रीय दल भाजपा पर हावी है। यह क्षेत्रीय दल भाजपा को समर्थन नहीं देते हैं, तो वन नेशन वन इलेक्शन का कानून पास नहीं करवा सकेंगे।
    चलो….. किसी तरह यह बिल पास हो भी गया तो चुनाव की प्रक्रिया इलेक्शन कमिशन आफ इंडिया यानि ECI को करनी होगी। अभी हाल ही में इलेक्शन कमिश्नर राजीव कुमार ने कहा कि वे वन नेशन वन इलेक्शन के लिए पूर्णतया तैयार है।इस बिल के पास होने के बाद जो कानूनी बदलाव होंगे,वे इसके लिए तैयार है। अब सवाल उठता है कि क्या यह प्रैक्टिकल रूप में संभव हो पाएगा?
    एक साथ चुनाव कराने के लिए नए EVM की जरूरत होगी, इन पर कितना खर्च होगा? सभी EVM को एक जगह एक साथ रखने होंगे, इसके लिए सुरक्षा बल इतना होगा कि चुनाव हो सके? वहीं ,चुनावी केंद्र भी निश्चित करने होंगे।
    एक साथ चुनाव करवाने के प्रस्तावित प्रस्ताव के लिए एनडीए का मुख्य मुद्दा यह है कि इससे सरकार का पैसा बचेगा। आचार संहिता के कारण विकास कार्य रुकेंगे।लोकसभा और विधानसभा चुनावों में विजय पाने के लिए सभी पार्टियां एड़ी चोटी का जोर लगाती है।मतदाताओं को लुभाने हरेक उम्मीदवार लाखो करोड़ों खर्च करता है।जिसकी जितनी हैसियत।रेलियां,पोस्टर्स,जैसे प्रचार माध्यमों के लिए वक्त और पैसे की बरबादी नही होने से नेता जनता के लिए काम कर पाएंगे,ऐसा कहना है NDA का। तो विपक्ष का कहना है कि पैसा बचेगा नहीं लेकिन बहुत ज्यादा खर्च होगा।इलेक्शन कमिशन को हर 15 सालों में EVM बदलने पड़ते है, जिसका खर्च करोड़ों का है।यह पैसा जनता का है।एक देश एक चुनाव के कारण नेता जनता को बार बार जवाब देने से बच जायेंगे, और लापरवाहियां बढ़ेंगी।
    यहां यह उल्लेखनीय है कि जर्मनी,हंगरी,दक्षिण अफ्रीका,इंडोनेशिया, स्पेन,स्लोवानिया, अलबानिया,पोलैंड,
    स्वीडन,बेल्जियम,ब्राजील,कोस्टारिका,बोलीविया,कोलंबिया,ग्वाटेमाला, गु याना,होंडुरास में राष्ट्रपति और विधायी चुनाव एक साथ होते है।भारत में भी आजादी के बाद चार बार एक साथ चुनाव हुए थे।इसलिए विधि आयोग और चुनाव आयोग ने भारत में भी एक साथ चुनाव शुरू करने सुझाव दिया है।
    जिन देशों में एक साथ चुनाव किए जाते है ,वे देश भारत की तरह विशाल नही है,और जनसंख्या भी इतनी नही है। चलो…..भारत में एक साथ चुनाव बिल सभी किसी दिक्कतों के बावजूद पारित हो गया,और चुनाव हो भी गए।पर … अगर कभी सरकार गिरने की स्थिति आई तो क्या चुनाव तीर से होंगे? या फिर कानूनविद इसका भी कोई जुगाड़ ढूंढ लेंगे।
    यह तो यह प्रस्ताव पारित होने के बाद की लंबी कवायत से ही पता चलेगा।