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बिहार की जाति आधारित जनगणना : राजनीतिक उठापटक के लिए गरमा गरम मुद्दा

बिहार में जनवरी 2023 में जातिगत जनगणना हुई थी, भाजपा और साथी पार्टियों ने इसका विरोध किया था , जबकि बिहार में सत्ताधारी जेडीयू, राजद,कांग्रेस समेत 9 पार्टियों ने समर्थन किया था।

एक ओर सर्व धर्म ,जाती समभाव की देश की संस्कृति में हर नागरिक भारतवासी है,और धर्म जाति से ऊपर है।लेकिन जब वर्ष 2023 के जनवरी में बिहार में जाति आधारित जनगणना की रिपोर्ट डेवलपमेंट कमिश्नर विवेक सिंह द्वारा प्रस्तुत की गई तो इसको लेकर विवाद उठा। यहां यह उल्लेखनीय है कि मनमोहन सिंह की सरकार द्वारा भी ऐसा सर्वेक्षण किया गया था।लेकिन मोदी सरकार ने इस रिपोर्ट को घोषित नहीं किया था। इस सर्वेक्षण रिपोर्ट को लेकर भाजपा समेत साथी पार्टियों ने विरोध किया था, जबकि बिहार के सत्ताधारी जदयू, राजद, और कांग्रेस समेत 9 पार्टियों ने समर्थन किया था। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने इस रिपोर्ट को ऐतिहासिक बताते हुए गांधी जयंती के दिन प्रस्तुत इस रिपोर्ट का स्वागत किया था।

इस डाटा के आधार पर पिछली जाति के विकास में मदद मिलेगी, ऐसा मुख्यमंत्री का मानना था। बिहार की कुल जनसंख्या 13करोड़ है, जिनमें से अति पिछड़ा वर्ग और अन्य पीछडे वर्ग की जनसंख्या तकरीबन 63 प्रतिशत है। बिहार में छः धर्मो को मानने वाली 215 जातियों की 13 करोड़ की जनसंख्या है। जिसमें पिछड़ा वर्ग 27%, अति पिछड़ा वर्ग 36%, एससी 19%, एस टी 1.6 %, जबकि बिनआरक्षित वर्ग की जनसंख्या 15% है। बिहार में सबसे अधिक 63% ओबीसी जातियां निवास करती हैं

जाति आधारित जनगणना को लेकर भाजपा और कांग्रेस आमने सामने कर राजनीतिक टिप्पणियां आ रही है। भाजपा के अनुसार विपक्ष समाज का जातिगत विभाजन कर रहा है। एक ओर जहां विश्व में भारत का डंका बज रहा है, ऐसे में भारत से समग्र विश्व को अनेकों अपेक्षाएं हैं। परंतु विपक्ष द्वारा जाति आधारित विभाजन करना उनकी सोच के उथलेपन को दर्शाता है।जबकि कांग्रेस का कहना है कि जाति आधारित जनगणना से गरीबों को सामाजिक न्याय मिलेगा।

इस प्रकार की जाति आधारित जनगणना से गरीब,पिछड़े लोगो को लाभ हो न हो,लेकिन 2024 की लोकसभा चुनाव के लिए एक दूसरे पर घात प्रतिघात के लिए एक मुद्दा जरूर गरमा गया है।