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चुनावी चहल पहल: कहीं अकल्पनीय उदय, तो कहीं सालों के दबदबे का अस्त

चुनावी माहौल में कई नेताओं का आकस्मिक उदय होने की घटनाएं हुई है, तो कई उम्मीदवार बड़ी उम्र में भी जनता पर अपनी पकड़ बनाए रखने में कमियाब नजर आए है। और जस तस पार्टी का यह जुआ कई बार बाजी पलट गया है।

भारत देश के चुनाव विश्व में सबसे बड़े लोकतंत्र के चुनाव माने जाते हैं। इन चुनावों में कई रेकॉर्ड्स भी बने है। जैसे सन 2004 में भाजपा की टिकट पर कर्नाटक के बीदर लोकसभा क्षेत्र से दलित नेता रामचंद्र विरप्पा ने 96 वर्ष की उम्र में लोकसभा चुनाव जीतने का हुंकार भरा था। और 5 साल बाद लोकसभा का चुनाव जीतने वाले विश्व के सबसे उम्र दराज सांसद माने जाते हैं।

तो गुजरात में जहां मुस्लिम समाज के उम्मीदवार का जितना नामुमकिन माना जाता था , तो मुस्लिम महिला के जीतने का तो सवाल ही नहीं पैदा होता था। लेकिन, सन 1962 के लोकसभा चुनाव में गुजरात में कांग्रेस की ओर से बनासकांठा की बैठक से चुनी गई जोहरा बेन अकबर अली चावड़ा गुजरात लोकसभा के चुनाव में जीतने वाली एकमात्र मुस्लिम महिला नेता है। उन्होंने स्वतंत्र पार्टी के कन्हैयालाल मेहता को 54,956 वोटो से हराया था ।उन्हें कुल मतों में से 56% अधिक मत मिले थे। जोहरा बेन के पति अकबर अली वर्ष 1952 और 1957 में बनासकांठा बैठक से सांसद चुने गए थे। उस समय बनासकांठा बैठक मुंबई स्टेट में गिनी जाती थी। लोकसभा चुनाव के इतने साल के इतिहास में गुजरात से जोहरा बेन के जीतने के बाद किसी मुस्लिम महिला ने चुनाव नहीं जीता है।

अब बात करते है, किसी नेता के आकस्मिक उदय और दबदबे की। आज तृणमूल कांग्रेस की सर्वेसर्वा नेता ममता बनर्जी को कौन नहीं जानता ! आज वह अकेली महिला है जो सभी पार्टियों के लिए खतरा बनी हुई है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि ममता बनर्जी का उदय कैसे हुआ? पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी आज भले ही भाजपा को हिला कर रख रही हो, लेकिन 1984 में लोकसभा के चुनाव के वक्त पश्चिम बंगाल में लेफ्ट का दबदबा था। उस समय के दिग्गज लेफ्ट नेता सोमनाथ चटर्जी जादवपुर बैठक से चुनाव लड़ रहे थे। यह बैठक उनका गढ़ था, जहां उन्हें हरा पाना अकल्पनीय था।

ऐसे में राजीव गांधी ने एक बहुत बड़ा जुआ खेला, और 29 वर्षीय ममता बंदोपाध्याय को सोमनाथ चटर्जी के सामने मैदान में उतार कर सभी पार्टियों को बहुत बड़ा झटका दिया । उस वक्त राजीव गांधी के इस चयन पर उनका मजाक उड़ाया जा रहा था, लेकिन उनका यह तुक्का का काम कर गया। ममता के करियर का इस चुनाव से जहां उदय हुआ, वह भारी बहुमत से जीती। वही सोमनाथ चट्टोपाध्याय को बुरी तरह हराया । 1984 के चुनाव में अपना दमखम दिखाने वाली ममता बनर्जी पिछले 35 सालों से पश्चिम बंगाल पर एक चकरी शासन कर रहे हैं।