हर साल 10 अप्रैल को विश्व होम्योपैथी दिवस मनाया जाता है, जो होम्योपैथी के संस्थापक डॉ. सैमुअल हैनीमैन की जयंती का प्रतीक है। डॉ. हैनीमैन का जन्म 10 अप्रैल 1755 को जर्मनी में हुआ था, और उन्होंने 1796 में होम्योपैथी चिकित्सा प्रणाली की नींव रखी।
होम्योपैथी का सिद्धांत और महत्व
होम्योपैथी “समान समान को ठीक करता है” के सिद्धांत पर आधारित है, जिसमें यह माना जाता है कि जो पदार्थ स्वस्थ व्यक्ति में किसी लक्षण का कारण बनता है, वही पदार्थ अत्यंत सूक्ष्म मात्रा में रोगी में उसी लक्षण का उपचार कर सकता है। यह चिकित्सा प्रणाली शरीर की आत्म-उपचार क्षमताओं को प्रोत्साहित करती है और इसके न्यूनतम दुष्प्रभाव होते हैं।
भारत में होम्योपैथी की स्थिति
भारत में होम्योपैथी एक प्रमुख चिकित्सा प्रणाली के रूप में स्थापित है। देश में लगभग 200,000 पंजीकृत होम्योपैथिक चिकित्सक हैं, और हर वर्ष लगभग 12,000 नए चिकित्सक इस क्षेत्र में जुड़ते हैं। इसके अलावा, भारत विश्व में होम्योपैथिक दवाओं के सबसे बड़े उत्पादकों और वितरकों में से एक है।
विश्व होम्योपैथी दिवस 2025 की थीम
इस वर्ष, विश्व होम्योपैथी दिवस 2025 की थीम “शिक्षा, अनुसंधान और अभ्यास के माध्यम से होम्योपैथी को सशक्त बनाना” है। इस थीम का उद्देश्य होम्योपैथी के क्षेत्र में शिक्षा, अनुसंधान और व्यावहारिक अनुप्रयोग को बढ़ावा देना है, ताकि यह चिकित्सा प्रणाली और अधिक प्रभावशाली और विश्वसनीय बन सके।
विश्व होम्योपैथी दिवस न केवल डॉ. सैमुअल हैनीमैन के योगदान को सम्मानित करने का अवसर है, बल्कि यह होम्योपैथी के प्रति जागरूकता बढ़ाने और इसके लाभों को समझने का भी समय है। यह दिवस हमें प्राकृतिक और समग्र चिकित्सा पद्धतियों की ओर लौटने और स्वास्थ्य के प्रति एक संतुलित दृष्टिकोण अपनाने की प्रेरणा देता है।

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