CATEGORIES

December 2024
M T W T F S S
 1
2345678
9101112131415
16171819202122
23242526272829
3031  
Monday, December 23   7:08:38

रामायण की नारियां: समर्पण, प्रेम, और बलिदान का संगम

रामायण में हमें हर जगह त्याग, वियोग, धर्म-अधर्म, प्रेम, छल, भक्ति, सम्मान और बलिदान के प्रसंग देखने को मिलते हैं। श्री रामजी के त्याग का प्रसंग, श्री लक्ष्मण जी के वियोग, अपने भाई के लिए प्रेम और सम्मान का प्रसंग, मंथरा के प्रपंच का प्रसंग, रावण के अहंकार का प्रसंग, और अन्य ऐसे बहुत से प्रसंग देखने को मिलते हैं। लेकिन, कभी क्या आपने ये सोचा है कि इसमें सिर्फ पुरुषों ने ही बलिदान नहीं दिए। हमारे देश की महिलाओं ने भी कई बलिदान दिए हैं। इस लेख में हम रामायण काल की महिलाओं के बलिदान के कुछ प्रसंग देखेंगे।

सबसे पहले आता है सीताजी द्वारा दिया हुआ बलिदान। सीताजी मिथिला की राजकुमारी थी। उनके पास धन, दौलत, और मिथिला जैसे राज्य का ऐश्वर्या सब कुछ था। पर उनके पति श्री राम को जब वनवास मिला तो सारे वैभव और ऐश्वर्या को त्याग कर, उनके साथ अपना पत्नी धर्म निभाने वनवास चली गई। वनवास के दौरान भी रावण की सोने की लंका से प्रभावित न होकर, सारा समय रामजी की प्रतीक्षा में गुज़ार दिया। जब वे वापस लौटी तो उनको अग्नि परीक्षा देनी पड़ी और आखिर फिरसे वनवास में ही जाना पड़ा।

फिर आता है उर्मिला द्वारा दिया हुआ बलिदान। उर्मिलाजी भी मिथिला की राजकुमारी थी। उनके पास सब कुछ था। जब उनका विवाह लक्ष्मण जी से हुआ तो उनके जीवन में प्रेम की कमी भी पूरी हो गई। पर जब राम जी को वनवास मिला तो लक्ष्मण जी भी उनके साथ जाने को तैयार हो गए। और उर्मिला जी फिर से अकेली हो गई। पर लक्ष्मण जी ने पूरे वनवास के समय राम और सीता की रक्षा का प्राण लिया था तो उनका सोना असंभव था। उनके हिस्से की 14 वर्षों की नींद भी उर्मिला जी ने लेली। इसका मतलब की उर्मिला जी भी पूरे 14 वर्षों के लिए सोती रहीं।

पत्नियों ने अपना पतिधर्म निभाने के लिए सारे बलिदान दिए। पर रामायण की माताओं ने भी कम बलिदान नहीं किये हैं।

कौशल्या मैया ने अपने पुत्र राम को वनवास जाते देखा। उसी प्रकार सुमित्रा मैया ने भी अपने पुत्र लक्ष्मण को राम जी की रक्षा के लिए उनके साथ वनवास में जाने दिया। कैकयी मैया ने भले ही रामजी को पुत्रमोह में आके वनवास दिया, पर उनको इस बात का अफ़सोस भी हुआ। और तो और भारत जी भी कैकयी मैया से नाराज़ ही रहे। अपने पुत्र के पास होकर भी उसके पास नहीं थी कैकयी मैया।

रावण की पहली बीवी मंदोदरी के बलिदान के बारे में बात करें तो उनका सबसे बड़ा बलिदान था अपने पति की मृत्यु। कहा जाता है की रावण की मृत्यु के बाद रामजी ने मंदोदरी का विवाह विभीषण के साथ करवाने का सोचा पर उन्होंने मन कर दिया। वाल्मीकि रामायण में इनका ज़्यादा ज़िक्र नहीं मिलता।

रामजी ने जिसको पत्थर की मूर्ति के रूप से आज़ाद किया था उसकी भी बलिदान की कहानी है। अहल्या महाऋषि गौतम की पत्नी थी। जब इंद्रदेव अहल्या के रूप से मोहित होकर, उनके पति का रूप धारण करके अहल्या के साथ सम्बन्ध बनाने आए तो ऋषि गौतम ने उन्हें देख लिया और अहल्या को श्राप दिया की वह पत्थर की मूर्ति बनकर रह जाएगी जब तक श्री राम स्वयं आके उन्हें इस श्राप से मुक्त नहीं करते।

हमारे देश की औरतों में हमेशा से अपने परिवार और प्रियजनों के लिए बलिदान की भावना रही है। इन महिलाओं के बलिदान के बिना शायद रामायण की कहानी हमें कभी सुनने को मिलती ही नहीं। धन्य हैं हमारी महिलाएं और नमन है उनको।