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Thursday, December 26   5:51:23

क्या यह राष्ट्रपति सिर्फ भाजपा की बन कर रह जाएंगी !!!

22-07-22

एक आदिवासी महिला देश के सर्वोच्च पद पर चुनी जाए, देशभर के लिए इससे बड़ी खुशी, इससे बड़ा उत्सव और क्या हो सकता है! लेकिन किसी पार्टी के स्तर पर यह सब इस पद पर चयन होने के पहले तक तो ठीक है। राष्ट्रपति चुने जाने के बाद इस पद पर बैठने वाला व्यक्ति किसी दल का नहीं होता।

वह तमाम दलीय राजनीति से ऊपर, बहुत ऊपर होता है। अब तक देश में 14 राष्ट्रपति हुए। 15वीं द्रौपदी मुर्मू हैं। उनकी जीत पहले से तय थी। वे जीत भी गईं, लेकिन इस जीत पर भारतीय जनता पार्टी भारी-भरकम जुलूस निकाल कर क्या दिखाना चाहती है? भारत के इतिहास में पहली बार किसी राष्ट्रपति की जीत पर किसी पार्टी ने विजय जुलूस निकाला। इसके कई कारण हैं। पहला- भाजपा यह दिखाना चाहती है कि देश के आदिवासियों, गरीबों का उत्थान करने वाली वह अकेली पार्टी है।

दूसरा- वह यह दिखाना चाहती है कि विपक्षी एकता का कितना ही दम भरा जाए, कितने ही विपक्षी भाजपा को मात देने की कितनी ही कोशिश करते रहें, रणनीति के मामले में वे भाजपा से आगे नहीं जा सकते। आखिरकार विपक्षी दलों में फूट पड़ ही जाती है।

बहरहाल, भाजपा ने दिल्ली में जंगी विजय जुलूस निकाला। दरअसल, यह उत्सवों का दल है। इसकी सरकार उत्सवों की सरकार है। महंगाई, और अन्य वे मुद्दे जिनसे लोग परेशान हैं, या हो सकते हैं, इन उत्सवों के जरिए उन्हें भुलाने की कोशिश की जाती है। कोशिशें सफल भी हो रही हैं। आखिर उत्सव किसे बुरे लगते हैं भला! किसी ने सही कहा है कि आजादी के बाद के 75 साल में लोगों ने इतनी आत्ममुग्ध सरकार कभी नहीं देखी होगी।