लॉरेंस बिश्नोई का नाम भारतीय अपराध जगत में खासा चर्चित है। गैंगस्टर और अपराधी के रूप में पहचाने जाने वाले बिश्नोई का कई संगीन अपराधों से नाता रहा है, जिनमें मशहूर पंजाबी गायक सिद्धू मूसेवाला की हत्या शामिल है। हाल ही में, बिश्नोई के राजनीति में आने की चर्चा ज़ोर पकड़ रही है। रिपोर्ट्स के अनुसार, महाराष्ट्र से उन्हें विधानसभा चुनाव लड़ने का ऑफर दिया गया है। इसके अलावा, कुछ समर्थक उन्हें भगत सिंह जैसी क्रांतिकारी शख्सियत से भी तुलना करने लगे हैं।
कैसे होगी राजनीति में एंट्री!
सूत्रों के अनुसार, महाराष्ट्र के कुछ राजनीतिक दलों ने लॉरेंस बिश्नोई को चुनाव लड़ने का प्रस्ताव दिया है। उनके अपराध के बावजूद, कई राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि बिश्नोई की लोकप्रियता, खासकर युवाओं के बीच, उनके लिए एक राजनीतिक अवसर साबित हो सकती है। बिश्नोई का समर्थन करने वाले कुछ लोग उनके ‘साहसी’ और ‘न्यायिक’ कदमों को सराहते हैं, हालांकि इस दृष्टिकोण को समाज में व्यापक समर्थन प्राप्त नहीं है।
भगत सिंह जैसी तुलना
कुछ समर्थकों ने बिश्नोई की तुलना स्वतंत्रता सेनानी भगत सिंह से की है। उनका तर्क है कि जैसे भगत सिंह ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ क्रांति की थी, वैसे ही बिश्नोई भी समाज के ‘अपराधी तत्वों’ के खिलाफ लड़ाई लड़ रहे हैं। हालांकि, यह तुलना विवादास्पद रही है और आलोचकों ने इसे ऐतिहासिक दृष्टिकोण से असंवेदनशील बताया है। भगत सिंह ने स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण योगदान दिया था, जबकि बिश्नोई का नाम संगीन अपराधों से जुड़ा है।
अगर लॉरेंस बिश्नोई राजनीति में प्रवेश करते हैं, तो यह भारतीय राजनीति और समाज के लिए कई सवाल खड़े कर सकता है। क्या अपराध से जुड़ी पृष्ठभूमि वाला व्यक्ति जनता के बीच स्वीकृत हो सकता है? क्या वह राजनीतिक परिदृश्य को बदलने की क्षमता रखता है? इन सवालों का उत्तर भविष्य में मिल सकता है।
लॉरेंस बिश्नोई वर्तमान में जेल में हैं और उनके खिलाफ कई गंभीर मामले चल रहे हैं। उनके राजनीतिक प्रवेश पर सवाल उठाने वालों का कहना है कि किसी भी अपराधी को चुनाव लड़ने की अनुमति देना भारतीय लोकतंत्र के सिद्धांतों के खिलाफ है। इसके अलावा, उनके समर्थकों द्वारा भगत सिंह जैसी तुलना करना भी कई लोगों के लिए अस्वीकार्य है, क्योंकि दोनों की परिस्थितियां और लक्ष्य बिल्कुल अलग थे।
लॉरेंस बिश्नोई का राजनीति में आना भारतीय राजनीति के लिए एक नए अध्याय की शुरुआत कर सकता है, लेकिन यह भी स्पष्ट है कि यह कदम कानूनी और नैतिक सवालों को जन्म देगा। महाराष्ट्र चुनाव के लिए उन्हें जो प्रस्ताव मिला है, वह क्या वास्तविकता बनेगा या नहीं, यह समय के साथ स्पष्ट होगा।
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