“अब जुदाई के सफ़र को मेरे आसान करो
तुम मुझे ख़्वाब में आ कर न परेशान करो”
साहित्य अकादमी अवार्ड से सम्मानित मुनव्वर राना, उर्दू शायरी जगत के बदसूर शायर, का देहांत 14 जनवरी 2024 के रोज़ हुआ। पर उनकी शायरियों के ज़रिये वह सबके दिलों में हमेशा ज़िंदा रहेंगे। आज इस लेख में हम आपको उनकी सोच और उनकी ज़िन्दगी के बारे में रूबरू करने जा रहे हैं।
मुनव्वर राना का जन्म 1 नवंबर 1952, उत्तर प्रदेश के रायबरेली में हुआ था। उनका अधिकांश जीवन कोलकाता में बीता। उन्होंने अपनी शिक्षा B कॉम डिग्री में ग्रहण की। राना अपने कई बोले हुए शब्दों के कारण हमेशा चर्चा में बने रहते थे।
राना का विवादित बयान
उन्होंने राम मंदिर के फैसले के ऊपर भी एक आपत्तिजनक बयान दिया था। जिसकी वजह से उनकी काफी बदनामी हुई थी।
राम मंदिर के पक्ष में लिए गए फैसले पर उन्होंने पूर्व चीफ जस्टिस रंजन गोगई पर आरोप लगाया कि अयोध्या में विवादित जमीन पर फैसला सुनाने में हिंदुओ का पक्ष लिया है। इसलिए यह फैसला कही न कही हिंदुओं के पक्ष में गया है।
इतना ही नहीं उन्होंने ऋषि वाल्मीकि की तालिबान से तुलना की, जिसकी वजह से उनके खिलाफ FIR भी दर्ज की गई। देखें तो वे भारतीय विरोधी थे। मुनव्वर जी आज तक के सबसे विवादित शायर थे। उनके ऊपर कवि आलोक श्रीवास्तव ने रचना की चोरी का इलज़ाम लगाया था। उनका जीवन काफी विवादित और संघर्षों से भरा रहा है।
उन्होंने कई सारी कविताएं, नज़्मे, और ग़ज़लें लिखी हैं। राना उनकी “माँ” पर लिखी हुई कविताओं से मशहूर हैं। उन्होंने जिस तरीके से माँ पर लिखा, वैसा आज तक कोई लिख नहीं पाया। वह अपनी माँ से बहुत प्रेम करते थे।
“किसी को घर मिला हिस्से में या कोई दुकां आई
मैं घर में सब से छोटा था मेरे हिस्से में मां आयी।”
मुनव्वर राना की कुछ रचनाएं
उनकी कुछ और मशहूर रचनाएं जैसे की “शहदाबा”, जिसकी वजह से उन्हें साहित्य अकादमी अवार्ड मिला, “कभी ख़ुशी से ख़ुशी की तरफ़ नहीं देखा”, “मुख़्तसर होते हुए भी ज़िंदगी बढ़ जाएगी”, इत्यादि यह साफ़ दर्शाते हैं की उन्हें अपने जज़्बातों को बयां करना अच्छे से आता था।
राना की ज़िन्दगी और कविताओं से, उनके बयानों से हमें यह सीखने को मिलता है कि डरे बिना अपनी बात पर भरोसा रखो, और जो आपके लिए सच है वह ज़रूर बोलो।
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