दिवाली एक ऐसा त्योहार है जो हमे याद दिलाता है की बुराई पर हमेशा अच्छाई की ही जीत होती है। इस दिन को बुराई पर अच्छाई की जीत के तौर पर मनाया जाता है। दिए की रोशनी और पटाखों के साथ इस जश्न को दुनिया भर में मनाया जाता है।
दिवाली क्यों मनाई जाती है इसे लेकर कई कहानियां है लेकिन सबसे ज्यादा प्रसिद्ध नरकासुर की कथा है। अब आपके मन में सवाल उठ रहा है की एक असुर के लिए क्यों इस दिन को मनाया जाता है।
तो आज के इस वीडियो में आपको बताएंगे दिवाली से जुड़ी ये प्रसिद्ध कथा।
नरकासुर की कहानी द्वापर युग से पहले की है। ये असुर भूदेवी और भगवान विष्णु के वराह अवतार के पुत्र थे। नरकासुर ने एक बार भगवान ब्रह्मा को प्रसन्न करने के लिए घोर तपस्या की थी।
तपस्या से प्रसन्न हो कर जब भगवान भरहमा वराह के सामने प्रकट हुए तो उन्होंने एक वरदान मांगा। की उनकी मृत्यु उनकी माता भुदेवी के हाथो ही हो। जिसके बाद भगवान ब्रह्मा ने उन्हें वरदान दे दिया।
वरदान पाने के बाद उसने लोगो पर अत्याचार करना शुरू कर दिया। यहां तक की वो स्वर्ग को भी जितना चाहता था। उस राक्षस ने कई राज्यों को हरा कर 16,000 राज कुमारिओ को कैद कर लिया। पृथ्वी में सबको हराने के बाद नरकासुर ने अब इंद्र देव के द्वार पर दस्तक दी। लेकिन नरकासुर इतना खतरनाक दानव था की उसके सामने इंद्र देव भी लड़ नही पाए और उनकी जगह नरकासुर ने ले ली। साथ ही इंद्र देव की मां अदिति सहित स्वर्ग की सभी अप्सराओं को बंधी बना लिया। इंद्र देव हाथ जोड़ कर भगवान विष्णु से मदद मांगने पहुंचे।
चलिए जानते है की भगवान विष्णु ने क्या किया। भगवान विष्णु ने इंद्र देव को समझाया और कहा की हर समस्या का समाधान होता ही है। भगवान विष्णु ने इंद्र को बताया की भगवान कृष्ण के साथ उनकी पत्नी सत्यभामा का ये अवतार नरकासुर के नाश का ही हिस्सा है। इंद्र देव ये सुन कर आश्चर्यचकित हो गए की सत्यभामा भूदेवि का ही अवतार थी।
अब इंद्र देव कृष्ण से मदद मांगने उनके पास पहुंचे। इंद्र देव ने हाथ जोड़ कर श्री कृष्ण और सत्यभामा से विनती की और उन्हें ये सभी बाते बताई। नरकासुर द्वारा किए गए अत्याचारों को सुन सत्यभामा क्रोधित हो उठी। और श्री कृष्ण के साथ गरुड़ पर विराजमान हो कर नरकासुर से युद्ध करने पहुंची। भगवान कृष्ण ने नरकासुर की सेना के साथ साथ नरकासुर से भी युद्ध किया लेकिन नरकासुर ने कृष्ण को अस्त्र से कुछ वक्त के लिए बेहोश कर दिया । अपने पति की ये हालत देख सत्यभामा और क्रोधित हो उठी और उन्होंने अपने बाण से नरकासुर को बुरी तरह घायल कर दिया। लेकिन, नरकासुर की मृत्यु के कुछ क्षण पहले ही श्री कृष्ण ने सत्यभामा को बताया की नरकासुर उन्ही का पुत्र था। और वही नरकासुर ने अपनी मां सत्यभामा को देखते हुए एक अंतिम इच्छा जाहिर की। वो चाहता था की संसार उसे खुशियों के लिए याद करे। सत्यभामा ने भी उसे ये आशीर्वाद दे दिया और उस दिन को नरक चतुर्दशी के नाम से जाना जाने लगा ।
नरक चतुर्दशी महिला और पुरुष दोनों के बराबरी मान और सम्मान के लिए, और बुराई पर अच्छाई की विजय के रूप में मनाया जाता है।
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