अपने बेटे को लिखी आखिरी चिट्ठी में औरंगजेब ने लिखा था— ‘आज़मा फ़साद बक़’, जिसका तात्पर्य था— मेरे बाद सिर्फ फसाद ही फसाद। औरंगजेब की मृत्यु को भले ही 300 साल बीत गए हो, लेकिन भारतीय राजनीति ने उन्हें अब तक जिंदा रखा है। कभी-कभी जहन में प्रश्न उठता है कि क्या पाकिस्तान भी औरंगजेब को उतना ही याद करता होगा, जितना भारत करता है? गांधी पर जितनी फिल्में नहीं बनीं, उससे अधिक औरंगजेब पर बनाई गईं। लेकिन सवाल उठता है— अगर क्रूरता ही किसी शासक के आकलन का पैमाना है, तो सिर्फ औरंगजेब ही खलनायक क्यों?
अगर सत्ता के लिए अपने अपनों को खत्म करना ही कसौटी है, तो सिर्फ औरंगजेब को ही दोषी क्यों ठहराया जाए? मंदिर तोड़ना ही अपराध है, तो क्या अन्य शासकों ने ऐसा नहीं किया? जबरन धर्म परिवर्तन अपराध है, तो क्या यह सिर्फ औरंगजेब के शासन तक सीमित था?
मंदिरों का विध्वंस और निर्माण: सच्चाई क्या है?
इतिहासकार रिचर्ड ईटन के अनुसार, 1192 से 1760 तक— यानी मोहम्मद गोरी के भारत आने से लेकर प्लासी की लड़ाई तक— लगभग 80 मंदिरों के विध्वंस के प्रमाण मिलते हैं। इनमें से केवल 11-12 मामलों में औरंगजेब का सीधा हाथ रहा।
लेकिन क्या यह पूरी तस्वीर है? स्वतंत्रता सेनानी और गांधीवादी विशंभर नाथ पांडेय की रिसर्च बताती है कि औरंगजेब ने कई मंदिरों को संरक्षण भी दिया। देश में 100 से अधिक मंदिर ऐसे हैं, जिनके निर्माण या विस्तार में औरंगजेब की भूमिका थी।
उदाहरण के लिए:
- हरदोई (यूपी) का गोपीनाथ मंदिर, जहां औरंगजेब द्वारा निर्मित एक शिलालेख मिला।
- दिल्ली का गौरी-शंकर मंदिर
- चित्रकूट का बालाजी मंदिर
- गुजरात का गिरनार मंदिर
तो फिर सवाल उठता है— क्या वह कट्टर इस्लामी शासक था, या महज़ एक व्यावहारिक शासक?
राजनीति और धर्म: लड़ाई सत्ता की थी, धर्म की नहीं
औरंगजेब की रणनीति गिफ्ट डिप्लोमेसी की तरह थी— जैसे आज भारत अन्य देशों को वैक्सीन भेजता है, वैसे ही वह मंदिरों को दान देता था। यही वजह थी कि उसके शासन में हिंदू मंत्री, प्रशासक और सेनापति बड़ी संख्या में मौजूद थे। उदाहरण के लिए,
- राजा रघुनाथ राय, उसके सबसे करीबी सलाहकार और वित्त मंत्री थे। उनके दादा राजा टोडरमल, अकबर के नवरत्नों में थे।
- जयवंत सिंह, जिसने शिवाजी को औरंगजेब के दरबार में बुलाने की साजिश रची थी।
यानी, यह हिंदू-मुसलमान की लड़ाई नहीं थी— यह सत्ता की लड़ाई थी।
धर्म और सत्ता: जब हिंदू राजा भी मंदिर तोड़ते थे
इतिहास में सिर्फ मुस्लिम शासक ही नहीं, हिंदू राजा भी अपने फायदे के लिए मंदिरों को नुकसान पहुंचाते थे।
- 10वीं शताब्दी में कश्मीर के राजा हर्षदेव ने मंदिरों में जमा संपत्ति को लूटने के लिए बाकायदा एक पद बनाया— ‘देवोत्पतन नायक’, यानी मंदिरों को नष्ट करने वाला अधिकारी।
- स्वामी विवेकानंद ने भी कहा था कि इस्लाम जबरन तलवार के बल पर नहीं, बल्कि सामाजिक कारणों से फैला। बंगाल में हिंदुओं से अधिक मुसलमान इसलिए हुए, क्योंकि वहां हिंदू जमींदारों का शोषण अधिक था।
औरंगजेब: शक्तिशाली मगर गलतियों से भरा शासन
औरंगजेब 49 वर्षों तक शासन में रहा— मुगलों का सबसे ताकतवर बादशाह। लेकिन उसकी जिद ही उसके पतन का कारण बनी।
- उसने 26 साल दक्कन की लड़ाई में बर्बाद कर दिए।
- दिल्ली-आगरा छोड़कर दक्कन को राजधानी बनाया, जिससे सत्ता कमजोर हुई।
- अपने पिता शाहजहां को कैद किया, भाइयों को मरवाया, लेकिन अंत में बेटों ने ही उससे बगावत कर दी।
आखिरी दिन: पश्चाताप और अकेलापन
आखिरी दिनों में वह बेहद कंजूस हो गया था। उसने अपनी कब्र के लिए भी पैसा नहीं छोड़ा।
- टोपियां सिलकर चार रुपए दो आने कमाए, जिससे अपनी अंतिम यात्रा के खर्चे पूरे किए।
- कुरान की प्रतियां बेचकर 305 रुपए कमाए, जिन्हें गरीबों में बंटवाने को कहा।
- चाहता था कि उसकी कब्र पर कोई इमारत न बने।
जब मौत करीब आई, तो उसके बेटे आजम ने अहमदनगर में उसे देखा— शरीर सफेद पड़ चुका था, खून की एक भी बूंद नहीं बची थी। जिसके नाम से हिंदुस्तान कांपता था, वह कांपते हाथों से अपनी अंतिम चिट्ठी लिख रहा था। उसमें लिखा था:
“शायद मेरे गुनाह ऐसे नहीं हैं जिन्हें माफ किया जा सके…”
इतिहास को सिर्फ सफेद-स्याह में देखना गलत होगा। औरंगजेब न तो पूरी तरह नायक था, न पूरी तरह खलनायक। उसने मंदिर तोड़े भी, बनाए भी। उसने हिंदुओं पर अत्याचार किए भी, उन्हें प्रशासन में ऊंचे पद भी दिए। उसने सत्ता के लिए अपने परिवार को खत्म किया, मगर वही गलती खुद भी दोहराई।
आज जरूरत इस बात की है कि हम इतिहास को राजनीतिक चश्मे से न देखें, बल्कि उसे समग्रता में समझें। वरना, औरंगजेब भले ही 300 साल पहले मर चुका हो, लेकिन हमारी राजनीति उसे जिंदा रखेगी।
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