हमारे समाज में सदियों से स्वर्ग और नर्क की बातें होती आ रही हैं। यह ऐसी बातें हैं जिनका किसी खास धर्म या संप्रदाय से कोई सीधा संबंध नहीं है। कहीं स्वर्ग और नर्क है तो कहीं हेवन और हेल है, तो कहीं जन्नत और जहन्नम की चर्चा होती है। यह सब आखिरकार इंसान की मृत्यु के बाद की स्थिति को दर्शाने वाली बातें हैं। हम जो धार्मिक ग्रंथ पढ़ते हैं, जो प्रवचन सुनते हैं, जिन धर्मगुरुओं की बातों का अनुसरण करने की कोशिश करते हैं, वह सब हमारे व्यक्तित्व और परिवार को श्रेष्ठ बनाने के लिए होते हैं।
हमारी सामाजिक व्यवस्था इस प्रकार से बनाई गई है कि धर्म उसका अभिन्न अंग है। अगर समाज से धर्म को हटा दिया जाए तो इंसान इस धरती पर जीवित नहीं रह सकता। दुनिया की अधिकांश आबादी अपने धर्म से बहुत गहराई से जुड़ी हुई है। धर्म का सार, जीवन का अंतिम सत्य, मृत्यु के बाद की यात्रा और बहुत कुछ हम मानते हैं और उसका अनुसरण भी करते हैं।
हम स्वर्ग और नर्क के चक्कर में इस कदर फंसे हुए हैं कि वास्तविक जीवन की ओर नजर ही नहीं डालते। जो स्वर्ग और नर्क की बातें हम सुनते हैं, उनके बारे में कहीं भी किसी का व्यक्तिगत अनुभव होने का उदाहरण नहीं मिला है। किसी ने कभी कहा है कि फलाना व्यक्ति स्वर्ग में था और वहां से उसने अपने अनुभव बताए या फिर नर्क में रहने वाले किसी व्यक्ति ने अपनी यातनाओं के बारे में आत्मकथा लिखकर नीचे भेजी। ऊपर जाने के बाद क्या होता है, यह सब बातें मात्र कल्पनाएँ हैं। ऐसी कल्पनाएँ जो व्यक्ति को अच्छे कार्य करने की प्रेरणा देती हैं और गलत रास्ते पर जाने से रोकती हैं।
एक गाँव की कहानी: राघव और स्वर्ग-नर्क का रहस्य
एक गाँव में राघव नाम का एक युवक रहता था। जन्म के समय ही उसकी माँ का निधन हो गया था। घर में उसके पिता, बड़ी बहन और राघव तीन लोग थे। राघव के पिता गाँव के शिव मंदिर के पुजारी थे और मंदिर के पास ही उनका घर था। समय के साथ राघव बड़ा हुआ और वह भी मंदिर में पूजा-पाठ कराने लगा। इस तरह उनका गुजारा चलता और वे संतुष्ट जीवन जी रहे थे। राघव लगभग 25 साल का हुआ, तभी उसके पिता का देहांत हो गया।
गाँव में उस समय एक परंपरा थी। जो व्यक्ति मरता था, उसके बाद एक मिट्टी का घड़ा लिया जाता, उसमें पत्थर रखे जाते और बीच में एक चमकता हुआ पत्थर रखा जाता। अमीर लोग उसमें सोने-चाँदी के टुकड़े रखते। इस मिट्टी के घड़े को नदी के पानी में रखा जाता और एक डंडे से मारा जाता। अगर घड़ा पानी के अंदर ही फूटकर चमकता पत्थर या धातु का टुकड़ा बाहर आ जाता तो माना जाता कि मृत व्यक्ति को स्वर्ग मिल गया है। राघव को यह परंपरा बिल्कुल पसंद नहीं थी, फिर भी उसने इसे निभाया।
एक दिन राघव पास के गाँव में गया, वहाँ एक संत अपने शिष्यों के साथ ठहरे थे। राघव उनके दर्शन के लिए पहुँचा और मौका मिलने पर संत से पूछा, “गुरुजी, मृत्यु के बाद स्वर्ग और नर्क कैसे तय होते हैं? हमें यहाँ रहते हुए कैसे पता चले कि स्वर्ग और नर्क कहाँ हैं और कैसे हैं?”
गुरुजी मुस्कुराए और कहा, “तू एक काम कर। अपने पिता की अंतिम क्रिया के बाद एक घड़ा अपने रिवाज के अनुसार भरना और दूसरा घड़ा घी से भरना। दोनों को नदी में रखना और रिवाज के अनुसार करना।”
राघव ने वैसा ही किया। उसने दोनों घड़ों को नदी में रखा और विधि के अनुसार डंडे से मारा। दोनों घड़े फूट गए। पत्थर वाला घड़ा फूटा और उससे पत्थर निकलकर पानी में डूब गए। घी पानी की सतह पर तैरता हुआ बह गया। गाँव के लोग खुश हुए कि राघव के पिता को स्वर्ग मिल गया। लेकिन राघव को संतोष नहीं हुआ।
अगले दिन वह फिर संत के पास गया और पूरी घटना सुनाई। गुरुजी मुस्कराए और बोले, “जीवन भी ऐसा ही है। स्वर्ग और नर्क मृत्यु के बाद नहीं होते। तुम्हारे कर्म ही तुम्हारे पत्थर और घी हैं। अगर तुम अच्छे कर्म करोगे तो वे घी की तरह समाज की सतह पर तैरते रहेंगे और यह स्थिति तुम्हारे लिए स्वर्ग जैसी होगी। अगर तुम बुरे कर्म करोगे तो वे पत्थर की तरह पानी में डूब जाएंगे और समाज में तुम्हारी बुरी छवि बन जाएगी। यह स्थिति तुम्हारे लिए नर्क जैसी होगी।”
गुरुजी ने समझाया, “मृत्यु के बाद कोई विधि ऐसी नहीं जो तुम्हें स्वर्ग या नर्क तक ले जाए। मृत्यु के बाद की विधि हमारे शास्त्रों में बताए गए कर्म हैं, जिन्हें हम निभाते हैं। असली स्वर्ग और नर्क हमारे अपने कर्मों में हैं। अगर तुम अच्छे काम करोगे तो अच्छे परिणाम मिलेंगे और बुरे काम करोगे तो बुरे परिणाम मिलेंगे। दोनों ही स्थितियाँ स्वर्ग और नर्क जैसी ही हैं।”
इस कहानी से यह सीख मिलती है कि हमें मृत्यु के बाद के जीवन से ज्यादा अपने वर्तमान जीवन पर ध्यान देना चाहिए। हमारे कर्म ही हमारे असली स्वर्ग और नर्क का निर्माण करते हैं।
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