रोहतक, हरियाणा की 22 साल की पहलवान रितिका हूड्डा ने इतिहास रचते हुए 76 किलोग्राम भार वर्ग में ओलंपिक के लिए क्वालीफाई करने वाली पहली भारतीय महिला बनकर एक नया कीर्तिमान स्थापित किया है। पेरिस ओलंपिक 2024, में रितिका की यात्रा संघर्ष, धैर्य और परिवार के समर्थन की अद्वितीय कहानी हैl
रितिका ने 2015 में कुश्ती की शुरुआत की, और कभी नहीं सोचा था कि वह एक दिन ओलंपिक स्तर पर प्रतिस्पर्धा करेंगी। लेकिन उनकी सफलता का मार्ग आसान नहीं था। 2022 में, जब वह राष्ट्रमंडल खेलों और एशियाई खेलों के लिए क्वालीफाई करने में असफल रहीं, तो उन्होंने कुश्ती छोड़ने का मन बना लिया था। लेकिन उनके माता-पिता, जगबीर और नीलम हूडा, ने उन्हें हार मानने से रोक दिया। उन्होंने रितिका को प्रशिक्षण जारी रखने के लिए प्रेरित किया और हर तरह से उनके साथ खड़े रहने का वादा किया। उनके इस अटूट विश्वास ने रितिका को फिर से उठ खड़े होने की ताकत दी।
नए जोश के साथ, रितिका ने अपने प्रशिक्षण में और अधिक मेहनत की। अब वह प्रतिदिन लगभग सात घंटे अभ्यास करती हैं, जिसमें शारीरिक शक्ति के साथ-साथ गति और स्मार्ट वर्क पर भी ध्यान देती हैं। उनके कोच, मंदीप, ने मैट पर उनकी तकनीकों को निखारने में अहम भूमिका निभाई है।
रितिका की मेहनत तब रंग लाई जब उन्होंने दिसंबर 2023 में तिराना, अल्बानिया में आयोजित अंडर-23 विश्व चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक जीता। यह उपलब्धि हासिल करने वाली वह पहली भारतीय महिला बनीं, जिससे उनके आत्मविश्वास और ओलंपिक के सपने को और मजबूती मिली। पेरिस ओलंपिक की तैयारी में जुटी रितिका का कहना है कि वह प्रत्येक मुकाबले को नई सोच के साथ खेलेगी और दबाव को खुद पर हावी नहीं होने देगी। उनका कहना है, “मैं स्वतंत्र रूप से खेलूंगी और अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करूंगी,” और उनकी यही कोशिश होगी कि वह भारत के लिए स्वर्ण पदक जीतकर लाएं।
उनकी मां, नीलम हूडा, अपनी बेटी की उपलब्धियों पर गर्व महसूस करती हैं और उम्मीद करती हैं कि रितिका ओलंपिक में स्वर्ण पदक जीतेगी। वह यह भी मानती हैं कि रितिका के कुश्ती करियर को समर्थन देने के लिए परिवार ने जो आर्थिक संघर्ष किया, वह पूरी तरह से सार्थक रहा है।
रितिका हूडा की कहानी, भारत के युवा खिलाड़ियों के लिए एक प्रेरणा है। यह दिखाता है कि कैसे धैर्य, पारिवारिक समर्थन और कठिन मेहनत ओलंपिक सपनों को हकीकत में बदल सकते हैं। पेरिस के लिए रवाना होते हुए रितिका न केवल अपनी उम्मीदें, बल्कि लाखों भारतीयों के सपने भी साथ लेकर जा रही हैं, जो उन्हें विश्व के सबसे बड़े खेल मंच पर सफल होते देखना चाहते हैं।
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