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Sunday, December 22   4:20:03

हर मोड़ पर चुनौतियां फिर भी नहीं मानी हार, जानें कौन हैं Paris Olympics में ब्रॉन्ज जीतने वाले Aman Sehrawat

“अगर यह इतना आसान होता, तो हर कोई इसे कर लेता।” छत्रसाल स्टेडियम के कमरे की दीवार पर लिखे ये शब्द अमन सहरावत के जीवन का मूलमंत्र थे। हरियाणा के झज्जर जिले के बिरोहर गाँव के साधारण से दिखने वाले इस युवा ने, जो बचपन में मिट्टी के अखाड़े में पसीना बहाता था, उसने आज इतिहास रच दिया है । 2024 पेरिस ओलंपिक में 57 किलोग्राम वर्ग में कांस्य पदक जीतकर अमन ने न केवल अपनी बल्कि देश की भी नई पहचान बनाई।

अमन का सफर आसान नहीं था। हर कदम पर मुश्किलें थीं, हर मोड़ पर चुनौतियां थीं । 16 जुलाई 2003 को जन्मे अमन जब केवल 11 साल के थे, तब उन्होंने अपने माता-पिता को खो दिया। गरीबी की काली छाया और दुखों के भंवर में उनके दादा ही उनके जीवन की एकमात्र रोशनी बने। उनके दादा ने न केवल अमन का पालन-पोषण किया, बल्कि उन्हें आगे बढ़ने की प्रेरणा भी दी।

अमन का जीवन बदलने वाला क्षण 2012 के लंदन ओलंपिक में आया, जब उन्होंने सुशील कुमार को सिल्वर मेडल जीतते हुए देखा। इस प्रेरणा से भरपूर अमन ने दिल्ली के छत्रसाल स्टेडियम में दाखिला लिया, जहां उनके कोच ललित कुमार ने उन्हें प्रशिक्षण दिया। वहां उन्होंने न केवल कुश्ती की तकनीक सीखी, बल्कि उन्होंने अपने संघर्षों को भी अपनी ताकत बना लिया।

2021 में अमन ने पहली बार राष्ट्रीय चैंपियनशिप का खिताब जीता। लेकिन, यह तो बस शुरुआत थी। 2022 में उन्होंने अंडर-23 विश्व चैम्पियनशिप में गोल्ड मेडल जीतकर इतिहास रच दिया, ऐसा करने वाले वे पहले भारतीय बने। इसके बाद, 2023 में एशियाई कुश्ती चैम्पियनशिप में गोल्ड मेडल जीतकर उन्होंने अपनी क्षमता का प्रमाण दिया।

2024 में, पेरिस ओलंपिक के लिए क्वालिफाई करने के बाद, अमन ने पूरे देश की उम्मीदों को अपने कंधों पर लिया। सेमीफाइनल में हारने के बावजूद, उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और कांस्य पदक जीतकर देश को गर्व से भर दिया। 21 साल की उम्र में ओलंपिक पदक जीतने वाले वे सबसे युवा भारतीय बने। यहां तक कि सेमीफाइनल के बाद उनका वजन बढ़कर 61.5 किलोग्राम हो जाने से, वह ओलंपिक में 57 किलोग्राम वर्ग में प्रतिस्पर्धा नहीं कर सकते थे। लेकिन, यहाँ अमन ने वो किया जो शायद किसी और के लिए मुमकिन नहीं था—उन्होंने केवल 10 घंटों में 4.6 किलोग्राम वजन घटाया। यह सिर्फ शारीरिक नहीं, मानसिक ताकत का भी एक अद्वितीय उदाहरण था।

अमन सहरावत ने ये साबित किया कि जब हौसले बुलंद हों, तो कोई भी मुश्किल इतनी बड़ी नहीं होती जो सपनों को रोक सके। संघर्ष की आग में तपकर ही असली चैंपियन जन्म लेते हैं।

उनका सफर संघर्ष से शुरू हुआ और पदक पर जाकर खत्म हुआ। लेकिन , अमन का सपना अभी भी अधूरा है, और वह सपना 2028 के ओलंपिक में गोल्ड मेडल जीतने का है।

अमन सहरावत की कहानी हमें सिखाती है कि सपनों की ऊँचाइयों तक पहुँचने के लिए केवल प्रतिभा नहीं, बल्कि अडिग साहस और असीम संघर्ष की भी ज़रूरत होती है। उन्होंने हर कठिनाई को मात दी और विश्वास और मेहनत के बल पर अपनी पहचान बनाई। उनकी यात्रा यहीं समाप्त नहीं होती; यह तो बस एक नए सफर की शुरुआत है.