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Lalbaug cha Raja

1934-2023: ‘लालबाग के राजा’ की पूरी कहानी

देशभर में 10 दिनों तक चलने वाले गणेशोत्सव की शुरुआत हो चुकी है। इस अवसर पर लाखों की भीड़ रोजाना मुंबई के लालबाग के राजा के दर्शन मात्र के लिए उमड़ रही है। इस पावन मौके पर आज हम आपको बताने जा रहे हैं मुंबई के लालबाग के राजा की पूरी कहानी। जिनकी लोकप्रियता केवल भारत में ही नहीं बल्कि दुनिया भर में छाई रहती है।

आपसभी को पता होगा की मुंबई में सबसे बड़ी मुर्ति लालबाग के राजा की होती है। लेकिन, सिर्फ भव्यता ही लालबाग के राजा की शान नहीं बढ़ाती बल्कि ऐसी बहुत सी खुबियां हैं जिसके कारण यहां के भक्तों के बीच इनकी विशेष मान्यता है।

वैसे तो मुंबई में गणेशचतुर्थी को लेकर अलग ही माहौल देखने को मिलता है। गली-गली में बप्पा का वास होता है, लेकिन इनमें लालबाग के राजा की अमिट छाप है।

लालबाग के राजा का दरबार तब से सज रहा है जब अंग्रेजों का शासन चल रहा था। तब मुंबई के लालबाग में छत और रोजी रोटी की लड़ाई लड़ रहे मजदूरों ने अपनी मुराद पूरी करने के लिए भगवान गणेश की पूजा-अर्चना करना शुरू किया। और देखते ही देखते इस पूजा ने परंपरा का रूप धारण कर लिया। जैसे ही मजदूरों की मुराद पूरी हुई लालबाग के गणपति का ढंका मन्नत पूरी करने वाले भगवान के तौर पर बजने लगा।

मुंबई की धरती पर लालबाग के राजा के कदम सन् 1934 को पड़े थे। मुंबई सहित पूरी दुनिया के दिलों पर राज करने वाले लालबाग के राजा उन मछवारों की देन है जिनकी रोजीरोट मुश्किल भरे वक्त से जूछ रही थी।

दरअसल मुंबई के दादर और परेल से सटा हुआ लालबाग का इलाका मीलों से पटा हुआ था। ज्यादातर यहां मील मजदूर, सड़को पर सामान बेचने वाले, छोटे मोटे दुकानदार और मछुवारे ही रहते थे। इनकी कमाई का केवल एक ही जरिया था, वो था पेरू चाल में रहने वाले ग्राहक।

1932 में यहां का पेरू चाल बंद होने के बाद मछुवारे और दुकानदारों की रोजीरोटी का जरिया ठप हो गया। तब वे खुले इलाकों में ही सामान बेचने को मजबूर हो गए। तब कुछ लोगों ने मिलकर एक समूह बनाया और वे अपनी मन्नत पूरी करने के लिए गणपति की पूजा करने लगे। धीरे-धीरे इस पूजा में आसपास के लोग भी शामिल होने लगे। ऐसे में लालबाग के बाजार को बनाने के लिए चंदा भी इक्कठा होने लगा। दो साल बाद मछुवारो और दुकानदारों सहित तमाम लोगों की मन्नतें पूरी हो गई।

तब उन्होंने भगवान के प्रति अपनी आस्था प्रकट करने के लिए 12 सितंबर 1934 को भगवान गणपति की प्रतिमा की स्थापना की। ऐसे ही आहिस्ता-आहिस्ता लालबाग की प्रतिमा की दूर-दूर तक चर्चाएं बढ़ गई। मुंबई के कोने-कोने से भगवान के दर्शन मात्र के लिए श्रद्धालु उमड़ने लगे। तब लालबाग के गणपति को मराठी में एक नया नाम मिला ‘लालबागच राजा’ यानी लालबाग के राजा। और सचमुच लालबाग के गणपति की महिमा किसी राजा से कम नहीं है।

फिर क्या था गणपति की अपार श्रद्धा के साथ ही 1934 के बाद हर साल यहां गणपति की मूर्ति की स्थापना की जाने लगी। तब से लेकर अब तक रखी गई यहां की मूर्तियों में एक समानता हमेशा देखने को मिलती है। इन्हें लालबाग में रहने वाले एक ही परिवार के मूर्तिकारों द्वारा बनाया जाता है। पिछले 8 दशकों से इलाके कांबली परिवार द्वारा ही लालाबाग के राजा की मूर्ति तैयार की जा रही है।

लालबाग के राजा के दरबार में हर साल करोड़ों का चढ़ावा भी चढ़ता है। इतना ही नहीं बॉलीवुड के कई सुपर स्टार भी हर साल अपनी मन्नते लेकर लाल बाग के दरबार में हाजरी देते हैं।