जाति हिंसा की चपेट में रहे मणिपुर में राष्ट्रपति शासन लगे दो सप्ताह से ज्यादा का समय बीत गया है उसके बाद पहली बार नई दिल्ली में एक बैठक में केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने राज्य की ताजा स्थिति की समीक्षा की
चर्चा का विषय -: मणिपुर, जो भारत के उत्तर-पूर्वी हिस्से में स्थित एक संवेदनशील राज्य है, लंबे समय से जातीय, सामाजिक और राजनीतिक संघर्षों से जूझ रहा है। यहाँ का संघर्ष मुख्य रूप से मीतेई (Meitei) और कुकी (Kuki) समुदायों के बीच है, जिसका ऐतिहासिक और राजनीतिक आधार है।
1. मणिपुर का ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य
राजशाही काल (18वीं शताब्दी तक): मणिपुर का इतिहास कई छोटे-छोटे राजाओं और जनजातीय शासकों से जुड़ा हुआ है। 18वीं शताब्दी में यहाँ के शासकों ने हिंदू धर्म को अपनाया, जिससे सांस्कृतिक बदलाव हुआ।
ब्रिटिश शासन (1891-1947): ब्रिटिश शासन के दौरान मणिपुर को एक रियासत का दर्जा मिला, लेकिन जनजातीय क्षेत्रों पर ब्रिटिश प्रशासन का नियंत्रण था।
भारतीय संघ में विलय (1949): मणिपुर 1949 में भारत में शामिल हुआ, लेकिन कुछ समूह इस विलय का विरोध करते रहे।
2. जातीय संघर्ष के कारण
(i) मीतेई और कुकी विवाद
मीतेई समुदाय: यह मणिपुर की घाटी में बसने वाला बहुसंख्यक समुदाय (लगभग 53%) है, जो हिंदू और वैष्णव परंपरा का पालन करता है।
कुकी समुदाय: यह मुख्य रूप से पहाड़ी क्षेत्रों में रहता है और ईसाई धर्म को मानता है। कुकी समुदाय खुद को स्वायत्तता चाहने वाला आदिवासी समुदाय मानता है।
(ii) अनुसूचित जनजाति (ST) का दर्जा विवाद
मीतेई समुदाय ने अनुसूचित जनजाति (ST) दर्जे की मांग की है, जिससे उन्हें आरक्षण और विशेष अधिकार मिल सकते हैं।
कुकी और नागा जनजातियाँ इसका विरोध कर रही हैं, क्योंकि इससे उनके लिए आरक्षित संसाधनों में हिस्सेदारी बढ़ सकती है।
(iii) उग्रवादी समूह और विद्रोही आंदोलन
मणिपुर में कई विद्रोही संगठन सक्रिय हैं, जो या तो अलगाववाद या आत्मनिर्णय की मांग कर रहे हैं।
कुकी समुदाय के कई समूह अलग राज्य या प्रशासनिक स्वायत्तता की मांग कर रहे हैं।
2023 का मणिपुर संघर्ष
मई 2023 में मीतेई समुदाय को ST दर्जा देने के मुद्दे पर हिंसा भड़क उठी।
कुकी और मीतेई समुदायों के बीच झड़पें हुईं, जिससे सैकड़ों लोग मारे गए और हजारों विस्थापित हुए।
राज्य में इंटरनेट बंद कर दिया गया और सेना की तैनाती करनी पड़ी।
सरकार की भूमिका और समाधान प्रयास
मणिपुर सरकार और केंद्र सरकार ने शांति बहाली के प्रयास किए।
समझौता वार्ता के जरिए दोनों समुदायों के बीच मध्यस्थता की कोशिश की गई।
कई विद्रोही संगठनों के साथ शांति समझौते पर बातचीत हो रही है।
मणिपुर का संघर्ष केवल एक जातीय विवाद नहीं है, बल्कि यह ऐतिहासिक, राजनीतिक और सामाजिक जटिलताओं का मिश्रण है। इस समस्या का हल तभी संभव है जब सभी समुदायों को एक समान अधिकार मिले और उनके बीच संवाद हो। सरकार को एक संतुलित नीति अपनाकर शांति और विकास सुनिश्चित करना होगा।
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