‘ए मेरे वतन के लोगों जरा आंख में भर लो पानी, जो शहीद हुए हैं उनकी जहां याद करों कुर्बानी…’ कवि प्रदीप की कलम से लिखा हुआ ये गीत आज भी सुनते ही वो दौर याद आ जाता है जब वीर सबूतों ने हंसते-हंसते देश की आजादी के लिए अपने प्राण न्यौछावर कर दिए। कवि प्रदीप वो शख्सियत थे जिन्हें आप किसी एक रचना के लिए उनके व्यक्तित्व और कृतित्व का आकलन नहीं लगा सकते। कवि प्रदीप वो गीतकार और कवि थे जिसने जो रचा और वो अमर हो गया। इनकी वतन पर मरमिट जाने वाली रचनाएं ब्रम्हांड में अमिट है। उस दौर में वतन के लिए ब्रिटिश के खिलाफ लिखने वाले गीतों को लोगों तक पहुंचाना कोई आसान काम नहीं था। आज के दी दिन उनका जन्म हुआ था तो चलिए इस लेख में हम आपको उनसे जुड़ी ऐसी कहानी बताएंगे जिनके बारे में शायद ही आपको पता हो-
कवि प्रदीप का परिचय
कवि प्रदीप का जन्म 6 फरवरी 1915 को महाकाल की नगरी उज्जैन में हुआ था। उनका असली नाम रामचंद्र नारायणीजी द्विवेदी था। कवि प्रदीप की शिक्षा इंदौर के ही शिवाजी राव हाईस्कूल में हुई। इसके बाद उन्होंने इलाहाबाद के दारागंज हाईस्कूल से तालीम हासिल की। उन्होंने लखनऊ विश्वविद्यालय से ग्रेजुएशन किया। कवि प्रदीप का लेखन की तरफ झुकाव शुरू से ही था। हिंदी काव्य में उनकी गहन रुचि थी। छात्र जीवन में ही वे कवि सम्मेलनों में भाग लेने लगे थे और उनकी रचनाएं खूब पसंद की जाती थीं। 1952 में कवि प्रदीप का विवाह चुन्नीलाल भट्ट की पुत्री सुभद्रा बेन से हुआ था।
अध्यापक बनना चाहते थे कवि
वैसे तो कवि प्रदीप का लक्ष्य अध्यापक बनना था, लेकिन कहते हैं ना जो भाग्य में लिखा है वो हो कर ही रहता है। उन्होंने जब टीचर ट्रेनिंग कोर्स- बीटीसी में दाखिला लिया तो उस दौरान उन्हें मुंबई में एक कवि सम्मेलन में शामिल होने का न्योता मिला। यहां हिमांशु राय बाम्बे टॉकीज स्टूडियो के मालिक भी मौजूद थे और वे कवि प्रदीप की रचनाओं से प्रभावित हो गए। हिंमाशु राय ने कवि प्रदीप के सामने फिल्म ‘कंगन’ के गीत लिखने का प्रस्ताव रख दिया।
चल चल रे नौजवान
कवि प्रदीप का एक गीत चल चल रे नौजवान उस दौर का सबसे लोकप्रिय गीत हुआ करता था। क्या बच्चे, क्या बूढे, क्या नौजवान सभी इस गीत को सुनते ही मुग्ध हो उठते थे। आजादी की लड़ाई में यह गीत नौजवानों में ऊर्जा का संचार करने का काम करता था। यह गीत 1940 में आई फिल्म ‘बंधन’ के लिए कवि प्रदीप ने लिखा था। उस समय आजादी की लड़ाई भी चरम पर थी। ‘चल चल रे नौजवान’ गीत आजादी के मतवालों में नया जोश भरने का काम करता था। आलम ये था कि प्रभात फेरियों में यह गीत गाया जाने लगा। सिंध और पंजाब की विधान सभाओं में यह गीत गाया जाने लगा। बलराज साहनी ने इस गीत को बीबीसी लंदन से प्रसारित करवाने का काम किया। यह गीत 1946 के ‘नासिक विद्रोह’ के दौरान सैनिकों का अभियान गीत बन गया था।
पांच दशक के अपने पेशे में कवि प्रदीप ने 71 फिल्मों के लिए 1700 गीत लिखे. उनके देशभक्ति गीतों में, फिल्म बंधन (1940) में “चल चल रे नौजवान”, फिल्म जागृति (1954) में “आओ बच्चों तुम्हें दिखाएं”, “दे दी हमें आजादी बिना खडग ढाल” और फिल्म जय संतोषी मां (1975) में “यहां वहां जहां तहां मत पूछो कहां-कहां” है। इस गीत को उन्होंने फिल्म के लिए स्वयं गाया भी था।
लोकप्रिय गीत
“ऐ मेरे वतन के लोगों” (कंगन)
“सूनी पड़ी रे सितार” (कंगन)
“नाचो नाचो प्यारे मन के मोर” (पुनर्मिलन)
“चल चल रे नौजवान” (बंधन)
“चने जोर गरम बाबू” (बंधन)
“पीयू पीयू बोल प्राण पपीहे” (बंधन)
“रुक न सको तो जाओ” (बंधन)
“खींचो कमान खींचो” (अंजान)
“झूले के संग झूलो” (झूला)
“न जाने किधर आज मेरी नाव चली रे” (झूला)
“मैं तो दिल्ली से दुल्हन लायारे” (झूला)
“आज मौसम सलोना सलोना रे” (झूला)
“मेरे बिछड़े हुए साथी” (झूला)
“दूर हटो ऐ दुनियावालो हिंदुस्तान हमारा है” (किस्मत)
“धीरे धीरे आरे बदल” (किस्मत)
“पपीहा रे, मेरे पियासे” (किस्मत)
“घर घर में दिवाली है मेरे घर में अँधेरा” (किस्मत) और भी बहुत से हैं।
जब पाकिस्तान ने चोरी की कवि की धुन
प्रदीप ने ऐसी कई फ़िल्मों के लिए गीत लिखे जो सुपरहिट रहे, लेकिन फ़िल्म ‘जागृति’ उनके लिए मील का पत्थर साबित हुई। इसकी लोकप्रियता का आलम यह था कि इस फ़िल्म को नक़ल कर पाकिस्तान में ‘बेदारी’ नाम से बनाया गया। साथ ही इसमें जो गीत थे वो हु-ब-ह जागृति की तर्ज़ पर रखे गए थे। जागृति में एक गीत था,’आओ बच्चों तुम्हें दिखाएं झांकी हिंदुस्तान की, इस मिट्टी से तिलक करो ये धरती है बलिदान की’, तो वहीं ‘बेदारी में गीत था,’आओ बच्चों सैर कराएं तुमको पाकिस्तान की, इसकी ख़ातिर हमने दीं क़ुर्बानी लाखों जान की…।
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